Hindi Newsजम्मू और कश्मीर न्यूज़Halal and Haram awakens again creating chaos in the politics of Jammu and Kashmir Mehbooba and Omar face to face

फिर जागा 'हलाल' और 'हराम' का जिन्न, जम्मू-कश्मीर की सियासत में मचा बवाल; महबूबा और उमर आमने-सामने

  • जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनावों की तैयारियों के बीच अब 'हलाल' और 'हराम' अब एक नया विवाद उभर आया है। इसे लेकर अब महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला आमने सामने हैं।

Himanshu Tiwari लाइव हिन्दुस्तानFri, 30 Aug 2024 06:24 PM
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जैसे-जैसे जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं वैसे-वैसे राज्य में सियासी खेल और दिलचस्प हो गया है। विधानसभा चुनावों की तैयारियों के बीच अब 'हलाल' और 'हराम' अब एक नया विवाद उभर आया है। ये इस्लामी शब्द आमतौर पर काफी मशहूर हैं, जहां हलाल- का अर्थ होता है कोई चीज जो जरूरी हो वहीं हराम- का अर्थ होता है वो चीज जो वर्जित हो। फिलहाल दोनों शब्द जम्मू-कश्मीर की सियासत में भी छा गए हैं।

हाल ही में जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने आरोप लगाया कि नेशनल कांफ्रेंस (नेकां) ने 'हलाल' और 'हराम' की राजनीति की शुरुआत की। महबूबा मुफ्ती का कहना है कि नेकां ने सत्ता में रहने पर चुनावों को 'हलाल' मान लिया और सत्ता से बाहर रहने पर 'हराम' कर दिया।

महबूबा मुफ्ती ने कहा, “मैं हैरान हूं कि नेकां जम्मू-कश्मीर को अपना साम्राज्य मानती है। उन्होंने ही हलाल/हराम की राजनीति शुरू की। 1947 में जब शेख मोहम्मद अब्दुल्ला (नेकां के संस्थापक और उमर अब्दुल्ला के दादा) को जम्मू-कश्मीर का मुख्य प्रशासनिक अधिकारी बनाया गया, तब चुनाव हलाल थे। जब वह प्रधानमंत्री बने, तो चुनाव फिर से हलाल हो गए। जब उन्हें हटा दिया गया, तो चुनाव 22 साल तक हराम हो गए और वह जनमत संग्रह की बात करते रहे। और जब 1975 में वह मुख्यमंत्री बने तो चुनाव फिर से हलाल हो गए।”

महबूबा मुफ्ती ने यह भी कहा कि 1987 के चुनावों में भी चुनावी धांधली की गई थी, जिसने मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट (एमयूएफ) के चुनावी अधिकारों को समाप्त कर दिया। जमात-ए-इस्लामी (जेईआई) उस समय के चुनावों में प्रमुख दल था और उसके चुनावी अधिकारों को बंद करने का आरोप भी नेकां पर लगा था। अब जमात-ए-इस्लामी ने पांच साल के प्रतिबंध के बाद विधानसभा चुनावों में हिस्सा लेने का फैसला किया है। पूर्व मुख्यमंत्री और नेकां के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने हाल ही में जमात के चुनाव लड़ने के फैसले का स्वागत किया, लेकिन उन्होंने उनके चुनावों के बहिष्कार के पुराने रुख की आलोचना की। उन्होंने कहा, “पहले कहा जाता था कि चुनाव हराम हैं। अब यह कहा जा रहा है कि चुनावों में भाग लेना बेहतर है।”

इस बीच, पूर्व श्रीनगर नगर निगम के मेयर जुलैनिद आजिम मट्टू ने नेकां और पीडीपी दोनों की राजनीति पर सवाल उठाए हैं। मट्टू ने कहा, “परंपरागत मुख्यधारा पूरी तरह से विरोधाभास से भरी हुई है। अन्य राज्यों में विरोधाभासों के राजनीतिक परिणाम होते हैं, लेकिन कश्मीर में ये जीवन और स्थिरता की कीमत पर होते हैं।” इस विवाद के बीच, जम्मू और कश्मीर में राजनीतिक दलों के बीच 'हलाल' और 'हराम' की शब्दावली का इस्तेमाल चुनावी राजनीति में एक नई दिशा और जटिलता का संकेत दे रहा है। यह देखना होगा कि ये विवाद आगामी चुनावों पर किस तरह का असर डालते हैं।

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