सामान्य वर्ग का आरक्षण घटाया, आरक्षितों का बढ़ाया; नई नीति को लेकर घमासान, दिल्ली आ रहे छात्र
- केंद्र शासित प्रदेश में चुनाव जीतने वाली नेशनल कांफ्रेंस (NC) इस मुद्दे पर असमंजस में है। NC ने अपने चुनावी घोषणापत्र में आरक्षण नीति की समीक्षा का वादा किया था।
जम्मू-कश्मीर में आरक्षण नीति के खिलाफ आवाजें तेज हो रही हैं। उपराज्यपाल प्रशासन द्वारा इस साल की शुरुआत में लागू की गई इस नीति ने सामान्य वर्ग के लिए आरक्षण को घटाकर 40% कर दिया है, जबकि आरक्षित वर्गों के लिए इसे 60% तक बढ़ा दिया गया है। यह बदलाव अब राजनीतिक विवाद और जन असंतोष का कारण बनता जा रहा है।
जम्मू-कश्मीर स्टूडेंट्स एसोसिएशन (जेकेएसए) ने नई दिल्ली में 5 दिसंबर 2024 को शांतिपूर्ण धरना देने की घोषणा की है। हाल ही में केंद्र शासित प्रदेश में चुनाव जीतने वाली नेशनल कांफ्रेंस (NC) इस मुद्दे पर असमंजस में है। NC ने अपने चुनावी घोषणापत्र में आरक्षण नीति की समीक्षा का वादा किया था। पार्टी के नेताओं का कहना है कि मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली सरकार और उपराज्यपाल कार्यालय के बीच कई मुद्दों पर अधिकारों के बंटवारे को लेकर स्पष्टता नहीं है, जिसमें आरक्षण नीति भी शामिल है।
आरक्षण नीति से नाराजगी और उमर अब्दुल्ला सरकार पर दबाव
हाल ही में उमर अब्दुल्ला सरकार द्वारा स्कूल शिक्षा विभाग में 575 प्रवक्ता पदों की भर्ती के लिए विज्ञापन जारी किया गया, जिसमें केवल 238 पद सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों के लिए थे। इससे नाराजगी और विरोध और तेज हो गया। नेशनल कांफ्रेंस के वरिष्ठ नेता और श्रीनगर से सांसद रुहुल्ला मेहदी ने भी इस मुद्दे पर अपनी चिंता जाहिर की और यहां तक कहा कि यदि सरकार ने आरक्षण नीति को तर्कसंगत नहीं बनाया तो वह मुख्यमंत्री के निवास के बाहर प्रदर्शनकारियों के साथ धरने पर बैठेंगे।
मेहदी ने सोशल मीडिया मंच एक्स पर लिखा, "मैंने इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला से दो बार और अन्य सहयोगियों से कई बार बात की है। मैं न तो इस मुद्दे को भूला हूं और न ही पीछे हटा हूं। यदि समाधान नहीं निकला तो मैं प्रदर्शनकारियों के साथ मुख्यमंत्री के कार्यालय या निवास के बाहर बैठूंगा।"
जेकेएसए की मांग: जातिगत जनगणना और नई नीति
जेकेएसए के राष्ट्रीय संयोजक नासिर खुहामी ने कहा, “हम जम्मू-कश्मीर में अन्यायपूर्ण आरक्षण नीति को समाप्त करने के लिए 5 दिसंबर को दिल्ली के जंतर-मंतर पर शांतिपूर्ण प्रदर्शन करेंगे। यह प्रदर्शन हमारी आवाज को संसद तक पहुंचाने और जम्मू-कश्मीर के युवाओं की आवाज को शक्ति देने के लिए है।” खुहामी ने मांग की है कि जम्मू-कश्मीर में सभी आरक्षित समुदायों की जातिगत जनगणना कराई जाए। उन्होंने कहा, “हम आरक्षण के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन हम संतुलन और निष्पक्षता चाहते हैं। जातियों की सही संख्या और उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति का आकलन करना जरूरी है।” उन्होंने यह भी मांग की कि जब तक आरक्षण नीति की व्यापक समीक्षा नहीं होती, तब तक भर्ती प्रक्रिया पर अस्थायी रोक लगाई जाए।
नई आरक्षण नीति पर विवाद
2024 की शुरुआत में, एलजी ने जम्मू और कश्मीर आरक्षण अधिनियम 2004 में संशोधन किया, जिसमें पहाड़ियों सहित नई शामिल जनजातियों के लिए आरक्षण को मंजूरी दी गई और ओबीसी में नई जातियों को जोड़ा गया। इसका बाद आरक्षित श्रेणियों को कुल मिलाकर 60% आरक्षण प्रदान किया गया, जबकि सामान्य श्रेणी को 40% तक कम कर दिया गया, जिसे आबादी में बहुसंख्यक माना जाता है।
इस साल मई में संशोधित आरक्षण नीति में अनुसूचित जाति (एससी) के उम्मीदवारों के लिए 8%, अनुसूचित जनजाति (गुज्जर और बकरवाल के लिए 10 और पहाड़ी भाषी लोगों (पीएसपी) के लिए 10%, ईडब्ल्यूएस को 10%, पिछड़े क्षेत्रों के निवासियों (आरबीए) को 10% और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 8% कोटा प्रदान किया गया था, जिसमें 15 नई जातियां शामिल थीं। वहीं वास्तविक नियंत्रण रेखा (एएलसी) और अंतर्राष्ट्रीय सीमा (आईबी) के साथ रहने वाले लोगों को 4% आरक्षण दिया गया था। विपक्षी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) ने भी इस नीति का विरोध किया है।
आरक्षण पर जल्द निर्णय की उम्मीद
सांसद रुहुल्ला मेहदी ने बताया कि उपराज्यपाल कार्यालय और नई चुनी गई सरकार के बीच अधिकारों के बंटवारे को लेकर भ्रम है, जिसके कारण अभी तक आरक्षण नीति पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। उन्होंने उम्मीदवारों से धैर्य रखने की अपील की और कहा कि संसद सत्र (25 नवंबर से 22 दिसंबर) के बाद भी समाधान नहीं निकला तो वह मुख्यमंत्री के निवास के बाहर धरने पर बैठेंगे। जेकेएसए का कहना है कि यह मुद्दा सिर्फ जम्मू-कश्मीर तक सीमित नहीं है, बल्कि इसे राष्ट्रीय स्तर पर उठाया जाना चाहिए ताकि आरक्षण नीति को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाया जा सके।
मेहदी ने उम्मीदवारों से नई सरकार को कुछ समय देने का आग्रह किया। उन्होंने कहा, "मैं निर्वाचित सरकार की संस्था और उनके निर्णय लेने के अधिकार का सम्मान करता हूं और मुझे लगता है कि उन्हें समाधान खोजने के लिए कुछ समय देना उचित और तार्किक है। साथ ही, मैं मामले की गंभीरता को भी समझता हूं। इसलिए, मैं आप सभी से अनुरोध करता हूं कि आप संसद सत्र में शामिल होने तक प्रतीक्षा करें, जो 25 नवंबर से शुरू होकर 22 दिसंबर को समाप्त होगा। यदि तब तक निर्णय नहीं लिया जाता है, तो मैं आप सभी के साथ मुख्यमंत्री के आवास या कार्यालय के बाहर बैठूंगा।"
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