Hindi Newsजम्मू और कश्मीर न्यूज़banned Jamaat e Islami launch new party Justice and Development Front to fight municipal and urban local bodies election

जम्मू-कश्मीर में निकाय चुनाव से पहले प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी का बड़ा कदम, बनाई पॉलिटिकल पार्टी

  • आतंकियों से सांठगांठ के आरोपों में प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी संगठन ने नई पार्टी के गठन का ऐलान किया। साथ ही घोषणा की कि वे जम्मू-कश्मीर नगर निकाय चुनाव में हिस्सा लेंगे।

Gaurav Kala श्रीनगर, आशिक हुसैन, हिन्दुस्तान टाइम्सSun, 23 Feb 2025 06:46 PM
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जम्मू-कश्मीर में निकाय चुनाव से पहले प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी का बड़ा कदम, बनाई पॉलिटिकल पार्टी

जम्मू-कश्मीर में रविवार को बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम देखने को मिला। प्रतिबंधित इस्लामिक संगठन जमात-ए-इस्लामी (JeI) से जुड़े कुछ उम्मीदवारों ने "जस्टिस एंड डेवलपमेंट फ्रंट (JDF)" नाम से एक नई राजनीतिक पार्टी की घोषणा की। इस पार्टी का उद्देश्य आगामी नगर निकाय और शहरी स्थानीय निकाय चुनावों में भाग लेना है।

आतंकी संगठनों से कथित सांठगांठ के आरोपों के बाद जमात-ए-इस्लामी को 2019 में केंद्र सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया था। इस वजह से पिछले साल सितंबर-अक्टूबर में पार्टी से जुड़े 10 उम्मीदवारों ने निर्दलीय रूप से चुनावी मैदान में किस्मत आजमाई थी। इनमें से प्रमुख उम्मीदवार सैय्यद अहमद रेशी और तलत मजीद थे। ये दक्षिण कश्मीर से चुनावी मैदान में थे, लेकिन वे किसी भी सीट पर जीत हासिल नहीं कर सके।

चुनावों से दूर रहने का इतिहास

1989 में आतंकवाद के बढ़ने के बाद, जमात-ए-इस्लामी और अलगाववादी नेताओं ने जम्मू और कश्मीर में चुनावों का बहिष्कार किया था और वोटिंग के खिलाफ रैलियां आयोजित की थीं। सैय्यद अहमद रेशी ने रविवार को दक्षिण कश्मीर में एक सम्मेलन के दौरान इस नई पार्टी के गठन की घोषणा की और इसे लोगों के बीच पेश किया। रेशी ने कहा, "हम लोगों के लिए काम करना चाहते हैं। आने वाले दिनों में, विचार-विमर्श के बाद हम हर जगह चुनाव लड़ेंगे, शहरी स्थानीय निकाय चुनावों में भाग लेंगे, ताकि शिक्षित और ईमानदार लोग सामने आएं और लोगों के लिए काम करें।"

नए चेहरे से चुनावों में वापसी

जमात-ए-इस्लामी का इलेक्टोरल पॉलिटिक्स में यह 37 वर्षों के बाद पहला कदम है। इनमें से सैय्यद अहमद रेशी (कुलगाम) एकमात्र उम्मीदवार थे, जिन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वियों को कड़ी टक्कर दी। रेशी ने चुनाव प्रचार के दौरान लोकतंत्र और कश्मीरी पंडितों की वापसी के मुद्दे पर जोर दिया। उन्होंने 25796 वोट हासिल किए और सीपीआईएम के नेता एम.वाई. तारिगामी से लगभग 8000 वोटों से हार गए। रैशी ने कहा, "आपने पिछले 70 वर्षों में बहुत से लोगों को आजमाया है, अब एक पार्टी सामने आई है जो ईमानदार है। आइए और हमें एक नई क्रांति शुरू करने में मदद करें।"

सामान्य लोगों को राजनीति में लाएंगे

पार्टी के एक अन्य सदस्य ने कहा, "हम आज JDF का अनौपचारिक परिचय देना चाहते हैं। हम उन लोगों को राजनीति में शामिल करना चाहते हैं जो राजनीति या वोटिंग से जुड़े नहीं हैं। हम उन्हें राजनीति में लाकर आम लोगों की समस्याओं को हल करने की कोशिश करेंगे।" उन्होंने कहा, “लोगों को जमीन पर कई मुद्दों का सामना करना पड़ रहा है, जैसे नशा, पर्यावरणीय समस्याएं, हमारे पानी के झरने सूख गए हैं या ड्रेनेज सिस्टम बर्बाद हो गया है। हम इन सभी समस्याओं पर काम करने की कोशिश करेंगे और सरकार की मदद करेंगे। हम शहरी और नगर निकाय चुनावों के बारे में विचार-विमर्श करेंगे और हर चुनाव में भाग लेने की कोशिश करेंगे।”

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जमात-ए-इस्लामी का इतिहास

जमात-ए-इस्लामी ने 1987 के चुनावों में मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट (MUF) का हिस्सा बनकर भाग लिया था। यह नेशनल कांफ्रेंस (NC) के खिलाफ एक गठबंधन था। हालांकि, इस चुनाव में धांधली का आरोप लगाया गया था, जिससे घाटी में लोगों के बीच असंतोष पैदा हुआ और 1989 में संपूर्ण संघर्ष की स्थितियां बन गईं। जमात-ए-इस्लामी का दक्षिण कश्मीर के जिलों, कुलगाम, शोपियां और अनंतनाग में मजबूत गढ़ रहा है। 1987 के MUF चुनाव में इन जिलों में जीत दर्ज की गई थी।

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