Hindi Newsविदेश न्यूज़Why are relations between Pakistan and the Taliban so tense now

कभी मिलाया था हाथ, अब क्यों एक-दूसरे के खून के प्यासे बन बैठे हैं तालिबान और पाकिस्तान?

  • लगभग दो दशकों तक तालिबान और पाकिस्तान एक-दूसरे के करीबी सहयोगी रहे थे। हालांकि हाल ही में दोनों के बीच तनाव बढ़ गया है। दोनों ने एक दूसरे को नुकसान पहुंचाने के लिए बड़ा कदम भी उठाया है। पाकिस्तान और तालिबान के बीच रिश्ते इतने तनावपूर्ण कैसे हो गए?

Jagriti Kumari लाइव हिन्दुस्तानMon, 30 Dec 2024 10:17 AM
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अफगानिस्तान की तालिबानी हुकूमत और पाकिस्तान के बीच जंग छिड़ गई है। पाकिस्तान के एयरस्ट्राइक में अपने लड़ाकों को खोने के बाद से तालिबान तिलमिलाया हुआ है। तालिबान ने बीते शनिवार अफगान पाक सीमा पर बड़ा हमला कर दिया। खबरों के मुताबिक इस हमले के बाद पाकिस्तान को अपनी दो सीमा चौकियों को छोड़कर पीछे हटना पड़ा। तालिबान का दावा है कि हमले में पाकिस्तान के करीब 19 सैनिक भी मारे गए हैं। हालांकि एक समय था जब दोनों पक्षों ने एक-दूसरे से हाथ मिलाया था। दोनों के रिश्ते उस वक्त नई ऊंचाइयों पर भी पहुंच गए थे। फिर तालिबान और पाकिस्तान के बीच स्थित कैसे बिगड़ गई?

लगभग 20 सालों तक अफगान तालिबान ने अमेरिका के नेतृत्व वाली 40 से ज्यादा देशों का सामना किया। इस दौरान तालिबान नेताओं और लड़ाकों ने अफगानिस्तान की सीमा से लगे इलाकों में पाकिस्तान के अंदर शरण ली थी। तालिबान के बड़े नेता पाकिस्तान के क्वेटा, पेशावर और बाद में कराची जैसे शहरों में रहे उनके साथ संबंध भी बनाए। पाकिस्तान के साथ रिश्तों की वजह से तालिबान को दुबारा संगठित होने और 2003 के आसपास विद्रोह को शुरू करने में काफी मदद मिली। यह भी कहा जाता है कि पाकिस्तान की मदद और शरण के बिना, तालिबान के विद्रोह के सफल होने की संभावना बेहद कम होती।

जब अगस्त 2021 में तालिबान ने काबुल में सत्ता पर कब्जा किया तो पाकिस्तान के गृह मंत्री शेख रशीद अहमद ने अफगानिस्तान के साथ मिलकर न्यूज कांफ्रेंस किया था। उन्होंने दावा किया था कि तालिबान के सत्ता में आने से एक नया अध्याय शुरू होगा और जल्द ही इसे वैश्विक महत्व भी मिलेगा। उस समय पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने तालिबान की सत्ता में वापसी की तुलना को गुलामी की बेड़ियां तोड़ने जैसा बताया था।

डूरंड लाइन पर संघर्ष

अफगानिस्तान का पाकिस्तान के साथ एक जटिल इतिहास रहा है। एक तरफ जहां पाकिस्तान ने काबुल में तालिबान का एक स्वाभाविक सहयोगी के रूप में स्वागत किया, वहीं दूसरी तरफ तालिबान सरकार पाकिस्तान की उम्मीद से कम सहयोगी साबित हो रही है। तालिबान इस वक्त एक लड़ाकू समूह से सत्ताधारी सरकार में बदलने के की कोशिश कर रही है। अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच स्थित डूरंड लाइन को 1947 में पाकिस्तान की स्थापना के बाद कभी भी किसी अफगान सरकार ने औपचारिक रूप से मान्यता नहीं दी है। वहीं डूरंड रेखा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दोनों देशों के बीच की सीमा के रूप में मान्यता प्राप्त है और पाकिस्तान ने इसे लगभग पूरी तरह से बाड़ लगा दिया है। वहीं अफगानिस्तान में डूरंड रेखा एक भावनात्मक मुद्दा है क्योंकि यह सीमा के दोनों तरफ रह रहे पश्तूनों को दो हिस्सों में बांट देती है। 1990 के दशक में तालिबान सरकार ने डूरंड रेखा का समर्थन नहीं किया था और वर्तमान तालिबान शासन का रुख भी यही रहा है। ऐसे में पाकिस्तान के लिए यह एक चुनौती के रूप में देखा जाता है।

पाकिस्तान की मांगें

अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के बाद इन इलाकों में तालिबानी सशस्त्र विद्रोह का कब्जा हो गया है। 2022 के बाद से पाकिस्तानी सुरक्षा और पुलिस बलों पर आतंकवादी हमले बड़े हैं। खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान प्रांतों में यह और भी ज्यादा देखा गया है। अधिकांश हमलों का दावा तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) यानी पाकिस्तान तालिबान ने किया है। पाकिस्तान ने मांग की है कि तालिबान अफगानिस्तान सीमावर्ती क्षेत्रों में टीटीपी नेताओं के खिलाफ कार्रवाई करे। हालांकि तालिबान ऐसा नहीं करेगा। इसका कारण यह है कि इस तरह की कोई भी कार्रवाई टीटीपी के साथ तालिबान के संतुलन को बिगाड़ देगी और इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रांत (ISKP) जैसे दूसरे चरमपंथी समूहों को न्योता दे देगी। तालिबान तर्क देता है कि टीटीपी एक आंतरिक पाकिस्तानी मुद्दा है और इस्लामाबाद को अपनी समस्याओं को घरेलू स्तर पर ही सुलझाना चाहिए।

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