जब भारत की घुड़सवार सेना ने 'इजरायल' को कराया आजाद, भालों से किया मुस्लिम शासन का अंत
- हाइफा की लड़ाई प्रथम विश्व युद्ध के दौरान 1918 में लड़ी गई थी। इस युद्ध में ब्रिटिश भारतीय सेना की जोधपुर लांसर्स ने तुर्की साम्राज्य के नियंत्रण वाले शहर हाइफा (वर्तमान इजरायल) को मुक्त किया था।
इजरायल दुनिया का एकमात्र यहूदी देश है। लेकिन आज जहां पर इजरायल है वहां कई दशकों पहले मुस्लिम शासन था। इजरायल का गठन 14 मई 1948 को हुआ था। इस दिन यहूदियों के नेता डेविड बेन-गुरियन ने इजरायल को एक स्वतंत्र यहूदी राज्य के रूप में घोषित किया, और इसे "State of Israel" नाम दिया गया। इजरायल के बनने से 30 साल पहले यहां एक ऐसा युद्ध हुआ जिसमें भारतीय सेना ने अहम भूमिका निभाई। इसे हाइफा की लड़ाई (Battle of Haifa) के नाम से जाना जाता है।
हाइफा की लड़ाई (Battle of Haifa) प्रथम विश्व युद्ध के दौरान 23 सितंबर 1918 को लड़ी गई थी। इस युद्ध में ब्रिटिश भारतीय सेना की जोधपुर लांसर्स ने तुर्की साम्राज्य के नियंत्रण वाले शहर हाइफा (वर्तमान इजरायल) को मुक्त किया था। हाइफा की यह लड़ाई इतिहास के पन्नों में इसलिए भी विशेष स्थान रखती है क्योंकि यह अंतिम बार था जब कैवलरी (घुड़सवार सेना) द्वारा बड़ी विजय प्राप्त की गई।
क्या था पूरा मामला?
प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) में मुस्लिम तुर्क साम्राज्य ने जर्मनी का साथ दिया था। मिडिल ईस्ट में स्थित तुर्क साम्राज्य के क्षेत्रों को ब्रिटिश सेनाओं द्वारा निशाना बनाया गया, जिनमें से एक था हाइफा शहर, जो अपने बंदरगाह के लिए महत्वपूर्ण था। भारतीय सैनिक भी ब्रिटिश सेना के साथ शामिल थे, जिसमें जोधपुर और मैसूर लांसर्स का विशेष योगदान रहा।
हाइफा की लड़ाई का आयोजन और रणनीति
लॉर्ड एलनबी के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना ने हाइफा पर कब्जा करने की योजना बनाई थी। इस लड़ाई को “मैगिडो अभियान” भी कहा जाता है। यह तीन मुख्य स्थानों हाइफा, नजारेथ और मेगिडो पर केंद्रित थी। जोधपुर लांसर्स को हाइफा पर कब्जा करने की जिम्मेदारी दी गई। 23 सितंबर 1918 को, जोधपुर लांसर्स के सैनिकों ने अपनी तलवारों और भालों के साथ तुर्की और जर्मनी की सशस्त्र मशीनगन से लैस सेना पर आक्रमण किया। जोधपुर लांसर्स के पास आधुनिक हथियार नहीं थे, लेकिन उनके साहस और घुड़सवारी कौशल ने इस कमी को पूरा कर दिया।
रणनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण बिंदु
हाइफा बंदरगाह पर कब्जा करना ब्रिटिश साम्राज्य के लिए महत्वपूर्ण था क्योंकि यह उनके व्यापार मार्गों के लिए एक प्रमुख केंद्र था। हाइफा की लड़ाई में विजय प्राप्त करने से ब्रिटिश साम्राज्य ने तुर्कों को महत्वपूर्ण मोर्चे से पीछे हटने पर मजबूर कर दिया।
जोधपुर लांसर्स की वीरता
जोधपुर लांसर्स ने अपने भालों और तलवारों से सुसज्जित होकर दुश्मन की मशीनगन और मोर्टार का सामना किया। इस टुकड़ी का नेतृत्व मेजर ठाकुर दलपत सिंह ने किया, जिन्होंने अपनी अंतिम सांस तक मोर्चा संभाले रखा। इस युद्ध में ठाकुर दलपत सिंह वीरगति को प्राप्त हुए और उन्हें मरणोपरांत मिलिट्री क्रॉस से सम्मानित किया गया।
विजय का प्रभाव और मान्यता
इस युद्ध में विजय के बाद जोधपुर लांसर्स की शौर्यगाथा पूरे ब्रिटिश साम्राज्य में चर्चित हो गई। इसके सम्मान में हर साल 23 सितंबर को भारतीय सेना में हाइफा मुक्ति दिवस मनाया जाता है। यह दिन जोधपुर लांसर्स के साथ-साथ उस अद्वितीय साहस की याद दिलाता है जिससे उन्होंने विदेशी भूमि पर भारतीयों का नाम ऊंचा किया।
हाइफा के युद्ध स्मारक
आज भी हाइफा में भारतीय सैनिकों के योगदान को याद करने के लिए एक युद्ध स्मारक है। इसे "हाइफा वॉर मेमोरियल" कहा जाता है, जो उन सभी सैनिकों को श्रद्धांजलि देता है जिन्होंने हाइफा को मुक्त कराने में अपनी जान गंवाई थी। हाइफा की लड़ाई न केवल भारतीय सेना के साहस और रणनीति का प्रतीक है बल्कि यह दिखाती है कि भारतीय सैनिकों ने विश्व स्तर पर अपने कौशल का प्रदर्शन किया।
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