US में चुनाव के बाद हिंसा संभव, 6 जनवरी से भी बदतर हो सकते हैं हालात; क्या बोले एक्सपर्ट
- चुनाव नतीजों के बारे में झूठ बोलना कोई मामूली बात नहीं है। यह ट्रंप की रणनीति का आधार है कि वे खुद को एक अभिजात वर्ग के राज्य के गहरे शिकार के रूप में चित्रित करें।
डोनाल्ड ट्रंप अगर 2024 का राष्ट्रपति चुनाव हार जाते हैं तो क्या अमेरिकियों को खून-खराबे के लिए तैयार रहना चाहिए? अमेरिकी राजनीति का अध्ययन करने वाले राजनीतिक वैज्ञानिक ने इसकी आशंका जताई है। उन्होंने कहा, 'मैं आसानी से कल्पना कर सकता हूं कि नवंबर के राष्ट्रपति चुनाव के बाद 6 जनवरी 2021 को ‘कैपिटल विद्रोह’ दोबारा हो सकता है या उससे भी बदतर स्थिति हो सकती है।' 4 साल पहले 2020 के राष्ट्रपति चुनाव में अपनी हार को पलटने के प्रयास में तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनके सहयोगियों ने इसके नतीजों को उग्र रूप से चुनौती दी थी। 63 मुकदमे दायर करके ट्रंप और उनके सहयोगियों ने 9 राज्यों में मतगणना, चुनाव प्रक्रिया और प्रमाणन मानकों को बदनाम करने या उन पर अंकुश लगाने का प्रयास किया।
इनमें से कोई भी प्रयास सफल नहीं हुआ। कई मामलों को निराधार बताकर खारिज कर दिया गया। चुनाव में व्यापक धोखाधड़ी का कोई सबूत नहीं मिली। यहां तक कि ट्रंप की ओर से नियुक्त मतदाता आंकड़ा विशेषज्ञ ने भी निष्कर्ष निकाला कि 2020 के चुनाव में हेराफेरी नहीं हुई थी। अमेरिकी न्याय व्यवस्था ने इस पर सहमति जताई, जिससे यह पता चला कि अदालतें अमेरिकी लोकतंत्र की रक्षा करने वाली महत्वपूर्ण ताकत बनी हुई हैं। 6 जनवरी 2021 को 2000 से अधिक लोगों ने संसद को 2020 के राष्ट्रपति चुनाव को प्रमाणित करने से जबरन रोकने के लिए अमेरिकी संसद परिसर पर धावा बोल दिया। दंगे के दौरान 4 लोगों की मौत हो गई और 138 पुलिस अधिकारी घायल हो गए। इससे करीब 30 लाख अमेरिकी डॉलर का नुकसान हुआ। भीड़ उसी दिन ट्रंप के वाशिंगटन डीसी में दिए गए भड़काऊ भाषण से उद्वेलित हो गई थी। कई कानूनी विद्वानों ने इसे उकसावे का मामला माना।
'नतीजे को नकारने का ट्रंप का लंबा इतिहास'
क्लार्कसन यूनिवर्सिटी के पॉलिटिकल एक्सपर्ट अलेक्जेंडर कोहन ने लिखा, 'ट्रंप का किसी भी प्रतियोगिता के नतीजे को नकारने का लंबा इतिहास रहा है, जिसका रिजल्ट उन्हें पसंद नहीं आता। राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश करने से पहले ट्रंप ने 2012 के ‘एमी’ को बेईमानी कहा था क्योंकि उनका शो 'द अप्रेन्टिस' पुरस्कार नहीं जीत सका था। उन्होंने 2012 में तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा के फिर से जीतने को पूर्णतया दिखावा करार दिया था। उन्होंने मतों की गिनती और मतदान मशीनों की सटीकता पर सवाल उठाया था। ट्वीट की बौछार करते हुए ट्रंप ने नागरिकों से घृणित अन्याय के खिलाफ पूरी ताकत से लड़ने का आग्रह किया था।'
डोनाल्ड ट्रंप ने इस चुनाव चक्र में अपने ‘अस्वीकार’ को तेज कर दिया है। मई 2024 तक न्यूयॉर्क टाइम्स ने 550 ऐसे बयान दर्ज किए थे, जबकि पूरे 2020 अभियान में लगभग 100 बयान दर्ज किए गए थे। ट्रंप लगातार इस बात पर जोर देते रहे कि 2020 का चुनाव धांधली वाला था। उन्होंने 2024 में भी इसके दोहराए जाने की भविष्यवाणी की। व्यापक उत्पीड़न की इस कहानी को पूर्व राष्ट्रपति के खिलाफ दायर मुकदमों और आपराधिक जांचों की झड़ी ने और मजबूत कर दिया है। 2020 से अब तक राज्य और संघीय अभियोजकों ने ट्रंप पर 94 अपराधों का आरोप लगाया है। इनमें व्यापार धोखाधड़ी, वर्गीकृत दस्तावेजों को गलत तरीके से संभालना और संघीय चुनाव में हस्तक्षेप करना शामिल है।
ट्रंप ने आरोपों को राजनीति से प्रेरित बताया
न्यूयॉर्क में ट्रंप को कॉर्पोरेट धोखाधड़ी के 34 मामलों में दोषी ठहराया गया। लेखिका ई. जीन कैरोल की ओर से दायर दीवानी मामले में यौन शोषण के लिए उत्तरदायी पाया गया। ट्रंप ने इन कानूनी चुनौतियों को राष्ट्रपति जो बाइडन की ओर से 2024 के चुनाव में हस्तक्षेप करने का जानबूझकर किया गया प्रयास बताया है। वह 350 से अधिक बार ऐसा कर चुके हैं। पूर्व राष्ट्रपति ने जनवरी 2024 में न्यूयॉर्क शहर में लोगों की भीड़ से कहा, 'मेरे सभी कानूनी मुद्दे, चाहे वे दीवानी हों या आपराधिक, सभी जो बाइडन की ओर से तय किए गए हैं। वे चुनाव में हस्तक्षेप के लिए ऐसा कर रहे हैं।'
चुनाव नतीजों के बारे में झूठ बोलना कोई मामूली बात नहीं है। यह ट्रंप की रणनीति का आधार है कि वे खुद को एक अभिजात वर्ग के राज्य के गहरे शिकार के रूप में चित्रित करें। एक ऐसी छवि जो उनके मतदाता आधार को आकर्षित करती है, विशेष रूप से श्वेत श्रमिक वर्ग के मतदाताओं के बीच, जिनमें से कुछ को लगता है कि वे खुद वैश्वीकरण और छायादार अभिजात वर्ग के शिकार हैं। स्वतंत्र सर्वेक्षणकर्ता पीआरआरआई की ओर से सितंबर 2023 में सर्वे किया गया। इससे पता चला कि 32 प्रतिशत अमेरिकियों का मानना है कि 2020 के चुनाव में हेराफेरी हुई थी। मगर, इस प्रश्न पर व्यापक रूप से मुकदमा चलाया गया और अदालतों में इसे खारिज कर दिया गया है। इसके बावजूद, कई अमेरिकी नागरिक किसी भी परिस्थिति में यह विश्वास नहीं करते हैं कि ट्रंप निष्पक्ष चुनाव में हार सकते हैं।
'2024 के चुनाव में अमेरिकी लोकतंत्र खतरे में'
यह तथ्य, उसी सर्वे के अन्य आंकड़ों के साथ मिलकर स्पष्ट करता है कि मैं क्यों मानता हूं कि एक बार फिर 6 जनवरी संभव है। लगभग 23 प्रतिशत अमेरिकी और 33 प्रतिशत रिपब्लिकन मानते हैं कि सच्चे अमेरिकी देशभक्तों को हमारे देश को बचाने के लिए हिंसा का सहारा लेना पड़ सकता है। 2021 के बाद से ऐसा मानने वाले रिपब्लिकन के बीच 5 प्रतिशत और आम जनता के बीच 8 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इस बीच, 75 प्रतिशत अमेरिकियों का मानना है कि 2024 के चुनाव में अमेरिकी लोकतंत्र खतरे में है। यह भी, लड़ाई के लायक बात हो सकती है। खासकर तब जब 39 प्रतिशत ट्रंप समर्थक और 42 प्रतिशत बाइडन समर्थक कहते हैं कि उनके कोई भी मित्र विरोधी उम्मीदवार का समर्थन नहीं करते। जब लोग अपने से भिन्न लोगों पर भरोसा नहीं करते या उनसे मेलजोल नहीं रखते, तो समूहों के बीच हिंसा की आशंका अधिक होती है। मुझे डर है कि ऐसी हिंसा को रोकने के लिए बहुत उपाय नहीं हैं।
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