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सीरिया से मजबूरी में निकला, लड़ना चाहता था... रूस भाग चुके तानाशाह बशर अल-असद का पहला बयान

  • सीरिया में अपनी सत्ता गंवाने के बाद बशर अल-असद ने पहला सार्वजनिक बयान दिया है। उन्होंने कहा कि वो सीरिया से प्लानिंग के तहत नहीं निकले, उन्हें मजबूरी में ऐसा करना पड़ा। वह आतंकियों से लड़ना चाहते थे।

Gaurav Kala लाइव हिन्दुस्तानMon, 16 Dec 2024 07:16 PM
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सीरिया में अपने परिवार की 50 साल से ज्यादा पुरानी सत्ता खोकर रूस की शरण लिए तानाशाह बशर अल-असद का पहला बयान आया है। उन्होंने बताया कि वो सीरिया से प्लानिंग के तहत नहीं निकले, उन्हें मजबूरी में ऐसा करना पड़ा। वो आतंकियों से लड़ना चाहते थे। देश अब "आतंकवाद के हाथों में है"। बता दें कि बीते 8 दिसंबर को सीरिया के विद्रोही गुट हयात तहरीर अल-शाम (एचटीएस) ने 11 दिन की लड़ाई में देश पर कब्जा कर लिया और बशर अल-असद की सालों पुरानी हुकूमत को उखाड़ फेंका। हालांकि एचटीएस और असद के बीच यह जंग 2011 से चली आ रही थी, तब असद ने रूस और ईरान की मदद से विद्रोहियों को खदेड़ दिया था, लेकिन इस बार मात खा गए।

सीरियाई राष्ट्रपति के टेलीग्राम चैनल द्वारा जारी एक बयान में उन्होंने कहा, "मैंने कभी भी व्यक्तिगत लाभ के लिए पद की लालसा नहीं की, बल्कि हमेशा खुद को एक देश का संरक्षक माना है। मैंने सीरियाई लोगों का विश्वास हासिल किया है। सीरियाई लोग उनके दृष्टिकोण में विश्वास करते हैं। मुझे राज्य की रक्षा करने, इसकी संस्थाओं की रक्षा करने तथा अंतिम क्षण तक उनके निर्णयों को कायम रखने की उनकी इच्छाशक्ति और क्षमता पर अटूट विश्वास है।"

सीरिया फिर आजाद होगा

असद ने बयान में कहा, “जब देश आतंकवाद के हाथों में पड़ जाता है और सार्थक योगदान देने की क्षमता खो जाती है, तो कोई भी पद उद्देश्यहीन हो जाता है, और उस पर कब्जा निरर्थक हो जाता है। असद ने कहा कि मुझे 8 दिसंबर की शाम को सीरिया में खमीमिम बेस से रूस ले जाया गया था। सीरिया से भागना कभी भी मेरा विकल्प नहीं था, मैं आतंकियों से लड़ना चाहता था। लगातार ड्रोन हमले हो रहे थे, तो रूस ने मुझे निकलवाया। बता दें कि असद ने जब दमिश्क छोड़ा, तब एचटीएस लड़ाके उनके भवन की ओर पहुंच रहे थे।

सीरिया की सत्ता से अपदस्थ होने के बाद असद का यह पहला सार्वजनिक बयान है। उन्होंने जोर देते हुए कहा, "इतना कुछ हो जाने के बाद भी सीरिया और उसके लोगों के प्रति मेरी गहरी भावना कम नहीं होगी। यह एक ऐसा बंधन है जो किसी भी स्थिति या परिस्थिति से अडिग रहेगा। यह एक ऐसा जुड़ाव है जो इस उम्मीद से भरा है कि सीरिया एक बार फिर से आजाद होगा।"

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