इस मुस्लिम देश के निरंकुश होने का खतरा मंडराया, 5 साल में 4 बार संसद भंग; सांसत में क्यों पड़ोसी मुल्क
Kuwait Crisis: इससे पहले कुवैत की संसद 1976 और 1986 में भी दो बार भंग हो चुकी है लेकिन इस बार संसद अप्रैल में हुए चुनावों के महीने भर के अंदर ही भंग कर दी गई है। नई संसद की पहली बैठक 13 मई को होनी थी
Kuwait Crisis: कुवैत के नए अमीर शेख मिशाल अल-अहमद-अल-सबा ने देश की संसद को चार साल के लिए भंग कर दिया है। इसके बाद से इस देश के निरंकुश होने का खतरा बढ़ गया है। हालंकि, अमीर ने संसद भंग करने की घोषणा करते हुए कहा कि वह देश के लोकतंत्र का गलत इस्तेमाल होने नहीं देंगे। इसके साथ ही उन्होंने देश का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया है। फारस की खाड़ी के पश्चिमी किनारे पर बसा पश्चिमी एशिया का यह देश खाड़ी देशों में अकेला ऐसा देश है, जहां निर्वाचित संसद है। मौजूदा संसद भंग करने की कार्रवाई लंबे समय से चले आ रहे राजनीतिक गतिरोध का नतीजा है। राजनीतिक गतिरोध की वजह से ही पिछले पांच साल में चार बार संसद भंग हो चुकी है।
अपने संबोधन में अमीर ने भी कहा, "कुवैत के राजनीतिक परिदृश्य में हालिया उथल-पुथल उस स्तर पर पहुंच गई है जहां हम चुप नहीं रह सकते हैं, इसलिए हमें देश और इसके लोगों के सर्वोत्तम हित को ध्यान में रखते हुए सभी आवश्यक उपाय करने चाहिए।" उन्होंने कहा कि वह किसी भी कीमत पर लोकतंत्र का इस्तेमाल कर देश को बर्बाद करने की अनुमति नहीं दे सकते। बता दें कि कुवैत में अमीर सबसे प्रभावशाली और ताकतवर पद होता है।
इससे पहले कुवैत की संसद 1976 और 1986 में भी दो बार भंग हो चुकी है लेकिन इस बार संसद अप्रैल में हुए चुनावों के महीने भर के अंदर ही भंग कर दी गई है। खासकर तब जब नई संसद की पहली बैठक 13 मई को होनी थी। दरअसल, चुनाव के बाद प्रभाव में आई नई संसद के सांसदों ने सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने शुरू कर दिए थे, तो दूसरी तरफ कैबिनेट के मंत्री गण संसद पर आर्थिक फैसले लेने की राह में रोड़े अटकाने के आरोप लगा रहे थे।
अब संसद भंग होने से नेशनल असेंबली (संसद) की सारी शक्तियां अमीर के पास चली गई हैं। उन्होंने शासन में सहयोग के लिए एक कैबिनेट का गठन किया है। बता दें कि राजनीतिक संकट और गतिरोध की वजह से कुवैत की सरकार कर्ज नहीं ले पा रही थी, जिसकी वजह से सरकारी कर्मचारियों को वेतन तक नहीं मिल पा रहा था। दूसरी तरफ इस देश के कच्चा तेल बेचकर भारी मुनाफा होता है। बावजूद इसके वहां आर्थिक संकट है। इसकी बड़ी वजह भ्रष्टाचार है।
मिडिल ईस्ट आई ने टेंपल यूनिवर्सिटी में मध्य पूर्व की राजनीति के विशेषज्ञ शॉन योम के हवाले से कहा है कि मौजूदा अमीर ने संकेत दिया है कि वह व्यक्तिगत रूप से राष्ट्रीय विकास और देश में स्थिरता के मुद्दों को अधिक प्राथमिकता दे रहे हैं और पिछले दो शासकों के उलट वह देशहित में कठोर कदम उठाने से पीछे नहीं रहेंगे। दिसंबर में अपने पूर्ववर्ती नवाफ़ अल-अहमद अल जाबेर की मौत के बाद सत्ता में आए अमीर ने अभी तक राजकुमार का चयन नहीं किया है।
विश्लेषकों का मानना है कि अमीर राजनीतिक विरोधियों पर कठोर कार्रवाई कर सकते हैं। योम के मुताबिक,अगर अमीर ऐसा करते हैं तो ना सिर्ऱ देश निरंकुशता की ओर बढ़ेगा बल्कि यह कदम कुवैत की बहुलवाद और उदारवाद की अनूठी परंपरा को नुकसान पहुंचा सकता है, जो न केवल खाड़ी बल्कि पूरे अरब वर्ल्ड के लिए असाधारण और खतरनाक हो सकता है। इस बात की भी आशंका है कि कुवैत संयुक्त अरब अमीरात की सिस्टम अपना सकता है। अगर ऐसा होता है तो यह कुवैत की लोकतांत्रिक मूल्यों और परंपरा के लिए बड़ा खतरा हो सकता है, जहां लोकतंत्र और चुनाव की लंबी और पुरानी परंपरा रही है।
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