How Indian Student At Cambridge Solves 2500-Year-Old Sanskrit Puzzle Read - International news in Hindi कैंब्रिज में भारतीय छात्र ने महीनों में सुलझा दी 2,500 साल पुरानी संस्कृत पहेली, दुनिया हैरान, International Hindi News - Hindustan
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कैंब्रिज में भारतीय छात्र ने महीनों में सुलझा दी 2,500 साल पुरानी संस्कृत पहेली, दुनिया हैरान

विश्वविद्यालय ने कहा कि भारत में एक अरब से अधिक की आबादी में से अनुमानित 25,000 लोग ही संस्कृत बोलते हैं। इसने कहा कि दुनिया की इस सबसे प्राचीनतम भाषा को केवल भारत ही में बोला जाता है।

Amit Kumar लाइव हिन्दुस्तान, कैंब्रिजThu, 15 Dec 2022 10:14 PM
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कैंब्रिज में भारतीय छात्र ने महीनों में सुलझा दी 2,500 साल पुरानी संस्कृत पहेली, दुनिया हैरान

5वीं शताब्दी ईसा पूर्व से विद्वान भी जिस पहेली को नहीं सुलझा सके उसे एक 27 वर्षीय भारतीय छात्रा ने सुलझा दिया है। संस्कृत व्याकरण की इस समस्या को कैंब्रिज विश्वविद्यालय के पीएचडी के छात्र 27 वर्षीय ऋषि राजपोपत ने हल करके दुनिया के विद्वानों को चौंका दिया। बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, राजपोपत ने लगभग 2,500 साल पहले रहने वाले प्राचीन संस्कृत भाषा के एक महान ज्ञानी पाणिनि द्वारा सिखाए गए एक नियम को डिकोड किया है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि राजपोपत, सेंट जॉन्स कॉलेज (कैम्ब्रिज) में एशियाई और मध्य पूर्वी अध्ययन संकाय में पीएचडी के छात्र हैं। विश्वविद्यालय ने कहा कि भारत में एक अरब से अधिक की आबादी में से अनुमानित 25,000 लोग ही संस्कृत बोलते हैं। इसने कहा कि दुनिया की इस सबसे प्राचीनतम भाषा को केवल भारत ही में बोला जाता है। पहेली को हल करने वाले भारतीय छात्र ने कहा कि पहले 9 महीनों की मेहनत बेकार गई और कुछ समझ नहीं आ रहा था। लेकिन फिर अचानक सब समझ आने लगा। 

उन्होंने कहा, "मैंने एक महीने के लिए किताबें बंद कर दीं और बस गर्मियों का आनंद लिया। तैराकी, साइकिलिंग, खाना बनाना, प्रार्थना करना और मेडिशन करते हुए समय बिताया। फिर, अनिच्छा से मैं काम पर वापस चला गया। काम के दौरान मिनटों के भीतर, जैसे ही मैंने पन्ने पलटे, एक पैटर्न उभरने लगे, और यह सब समझ में आने लगा।" उन्होंने कहा कि वह "आधी-आधी रात लाइब्रेरी में बिताने लगे।" लेकिन फिर भी समस्या पर ढाई साल तक काम करना पड़ा। 

गौरतलब है कि संस्कृत भाषा व्यापक रूप से नहीं बोली जाती है, लेकिन यह हिंदू धर्म की पवित्र भाषा है और सदियों से भारत के विज्ञान, दर्शन, कविता और अन्य धर्मनिरपेक्ष साहित्य में इसका इस्तेमाल किया जाता रहा है। 

पाणिनि के व्याकरण की बात करें तो इसे अष्टाध्यायी के रूप में जाना जाता है। पाणिनि का व्याकरण एक ऐसी प्रणाली पर निर्भर करता है जो किसी शब्द के आधार और प्रत्यय को व्याकरणिक रूप से सही शब्दों और वाक्यों में बदलने के लिए एक एल्गोरिथ्म की तरह कार्य करता है। हालांकि, पाणिनि के दो या अधिक नियम अक्सर एक साथ लागू होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप नतीजा स्पष्ट नहीं निकलता।

पाणिनि ने एक "मेटारूल" (एक ऐसा नियम जो बताए कि अन्य नियमों का इस्तेमाल कैसे किया जाना चाहिए) सिखाया था। लेकिन विद्वान इसकी अपनी तरह से व्याख्या करते थे। हालांकि ऋषि अतुल राजपोपत ने अपने डिसर्टेशन में तर्क दिया है कि शब्द बनाने के पाणिनि के मेटारूल को गलत समझा गया था। इस नियम से पाणिनि का मतलब यह था पाठक वो नियम चुने, जो एक वाक्य को फ्रेम करने के लिए ठीक होती।

उन्होंने कहा कि इस असिद्ध नियम को ऐतिहासिक रूप से गलत समझा गया था। इसके बजाए, पाणिनि का मतलब किसी शब्द के बाएं और दाएं पक्ष पर लागू होने वाले नियमों से था। वह चाहते थे कि पाठक दाईं ओर लागू होने वाले नियम को चुने। खबर के मुताबिक, राजपोपत ने बताया कि पाणिनि के अष्टाध्यायी में मूल शब्दों से नए शब्द गढ़ने या बनाने संबंधी नियमों का एक पूरा समूह दिया गया है। इसमें अक्सर नए शब्द बनाने से जुड़े नियम परस्पर विरोधी नजर आते हैं।  

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