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अधिक विकास बना बोझ, अब चीन के लिए सिरदर्दी बन गई है बुलेट ट्रेन; बंद करने पड़े कई स्टेशन

चीन ने विकास की गाड़ी को बढ़ाने के लिए अपने देश में कई बुलेट ट्रेन के स्टेशनों को बनाया मगर उन स्टेशनों से अब यात्री नदारद हैं। चीन द्वारा किए गए इन स्टेशनों के निर्माण से अब उसे ही घाटा हो रहा है।

Himanshu Tiwari लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीSat, 25 May 2024 05:18 PM
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अपने देश में विकास को लेकर पूरी दुनिया में दंभ भरने वाले चीन के सामने अब मुश्किलें आने लगी हैं। दुनिया की सबसे तेज बुलेट ट्रेन वाले देश में यात्रियों के न मिलने से वहां की स्टेशनों को बंद किया जा रहा है। चीन ने विकास की गाड़ी को बढ़ाने के लिए अपने देश में कई बुलेट ट्रेन के स्टेशनों को बनाया मगर उन स्टेशनों से अब यात्री नदारद हैं। चीन द्वारा किए गए इन स्टेशनों के निर्माण से अब उसे ही घाटा हो रहा है। चाइना बिजनेस जर्नल की रिपोर्ट में बताया गया है कि चीन में 26 हाई स्पीड रेल स्टेशनों को बंद किया जा रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक, ये स्टेशन दूर होने के कारण, आसपास कम सुविधाओं और कम यात्रियों की वजह से खाली पड़े हैं।

रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि कई शहरों ने हाई-स्पीड रेल इंफ्रास्ट्रक्चर में भारी निवेश किया है, लेकिन कई स्टेशन या तो बंद हैं या कभी चालू ही नहीं हुए। इसका एक उदाहरण है हैनान डैनझोउ हाईटौ हाई-स्पीड रेलवे स्टेशन है, जिसके निर्माण में 40 मिलियन युआन ($5.61 मिलियन) से अधिक की लागत आई थी, लेकिन इसका उपयोग सात वर्षों से अधिक समय से नहीं किया गया है। स्थानीय अधिकारियों ने निष्क्रियता के लिए प्रतिदिन 100 से कम यात्रियों की आवाजाही को जिम्मेदार ठहराया, जिसके परिणामस्वरूप यदि स्टेशन चालू होता तो काफी वित्तीय नुकसान होता।

पर्यवेक्षकों का कहना है कि हाई-स्पीड रेल का बड़े पैमाने पर निर्माण चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) की अंधाधुंध बुनियादी ढांचे के विकास की प्रवृत्ति को दर्शाता है, जिससे क्षमता से अधिक उत्पादन होता है। इन परियोजनाओं में निवेश केंद्र और स्थानीय सरकारों द्वारा व्यापक उधार के माध्यम से किया गया है, जिससे ऋण संकट गहरा गया है।

दक्षिण कैरोलिना विश्वविद्यालय के ऐकेन स्कूल ऑफ बिजनेस के प्रोफेसर फ्रैंक ज़ी ने इस तरह की बड़ी परियोजनाओं को शुरू करने से पहले यात्रियों की आवाजाही और सार्वजनिक ज़रूरतों का आकलन करने जैसे व्यवहार्यता अध्ययनों की कमी की आलोचना की। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि ये उपक्रम जीडीपी और स्थानीय राजनीतिक प्रोफाइल को बढ़ावा देते हैं, लेकिन अक्सर देश के धन की महत्वपूर्ण बर्बादी का कारण बनते हैं।

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