Hindi Newsविदेश न्यूज़Saudi Arabia was once the leader of the Muslim world Why it becoming weak

तेल का बादशाह, अकूत दौलत; कभी मुस्लिम दुनिया का था रहनुमा, आज अपनों के बीच ही क्यों बना बेगाना

  • एक समय था जब मक्का-मदीना की सरजमीं से निकलने वाली हर बात को मुस्लिम जगत में गंभीरता से लिया जाता था, लेकिन बदलते वैश्विक समीकरणों और सऊदी अरब की अलग महत्वाकांक्षा ने उसकी साख को गहरा नुकसान पहुंचाया है।

Himanshu Tiwari लाइव हिन्दुस्तानFri, 21 Feb 2025 03:29 PM
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तेल का बादशाह, अकूत दौलत; कभी मुस्लिम दुनिया का था रहनुमा, आज अपनों के बीच ही क्यों बना बेगाना

कभी इस्लामी दुनिया की अगुआई करने वाला सऊदी अरब आज खुद अपने पड़ोसियों और साथी मुस्लिम देशों में अलग-थलग पड़ता जा रहा है। इसका बड़ा कारण प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की नीतियां मानी जा रही हैं, जिन्होंने कई बार ऐसे फैसले लिए जो पारंपरिक इस्लामिक सहयोग को कमजोर कर गए। एक समय था जब सऊदी अरब अपने तेल के दम पर पूरी दुनिया में अपनी धाक जमाए बैठा था, लेकिन अब उसके कई पुराने साथी उससे किनारा करने लगे हैं। खासतौर पर फिलिस्तीन समर्थकों की नजर में सऊदी अब पहले जैसा नहीं रहा।

फिलिस्तीन को लेकर सऊदी अरब की नीति में बदलाव आया, जिससे अरब जगत में उसकी साख गिरी। पहले सऊदी अरब खुले तौर पर इजरायल के खिलाफ और फिलिस्तीन के समर्थन में खड़ा दिखता था, लेकिन अब उसने इजरायल के साथ संबंध सुधारने की दिशा में कदम बढ़ा लिए हैं। अब्राहम समझौते के तहत संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, सूडान और मोरक्को पहले ही इजरायल से हाथ मिला चुके हैं, और सऊदी भी इसी रास्ते पर बढ़ रहा है। इस नीति से फिलिस्तीन समर्थक गुटों में नाराजगी फैल गई, जो सऊदी को अब एक भरोसेमंद इस्लामिक नेतृत्व नहीं मानते।

अपनों में बढ़ा मतबेद

सऊदी अरब और ईरान के रिश्ते तो पहले ही कटु थे, लेकिन हाल के वर्षों में कतर, तुर्किये और अन्य इस्लामी देशों से भी उसके मतभेद बढ़े हैं। 2017 में कतर पर आर्थिक प्रतिबंध लगाकर उसे अलग-थलग करने की कोशिश की गई, लेकिन यह कदम उलटा पड़ गया। कतर ने ईरान के साथ अपने संबंध मजबूत कर लिए और धीरे-धीरे आर्थिक मोर्चे पर और ताकतवर बन गया। इसके अलावा, तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगान भी इस्लामी दुनिया में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे सऊदी के वर्चस्व को सीधी चुनौती मिल रही है।

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प्रिंस सलमान की एक और बड़ी नाकामी यमन में देखी गई, जहां उन्होंने 2015 से हूती विद्रोहियों के खिलाफ युद्ध छेड़ा, लेकिन आज तक उसे खत्म नहीं कर सके। यमन युद्ध में सऊदी अरब को भारी नुकसान उठाना पड़ा, लेकिन हौथी विद्रोही लगातार मजबूत होते गए। यहां तक कि उन्होंने सऊदी अरब के तेल प्रतिष्ठानों पर हमले भी कर दिए, जिससे रियाद की सुरक्षा नीतियों पर सवाल खड़े हो गए। इस असफलता ने सऊदी अरब को और कमजोर कर दिया, और उसकी क्षेत्रीय ताकत पहले जैसी नहीं रही।

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प्रिंस सलमान ने बदल दी अपनी नीति

अब सवाल यह उठता है कि सऊदी अरब आगे किस दिशा में जाएगा। प्रिंस सलमान का 'विजन 2030' प्रोजेक्ट देश की अर्थव्यवस्था को तेल पर निर्भरता से हटाकर पर्यटन और अन्य सेक्टरों में निवेश बढ़ाने पर जोर देता है। मगर ऐसा बताया जा रहा है कि इस योजना को पूरा करने के लिए सऊदी के पास पर्याप्त संसाधन नहीं हैं। अगर भविष्य में तेल की मांग और कम हुई, तो सऊदी की वैश्विक भूमिका और कमजोर हो सकती है। कुल मिलाकर, जहां कभी सऊदी अरब को इस्लामिक दुनिया का निर्विवाद नेता माना जाता था, वहीं आज उसकी नीतियां उसे अपने ही साथियों से दूर कर रही हैं।

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