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प्लीज हेल्प! पनामा के होटल में कैद भारतीयों समेत 300 लोग, खिड़कियों पर खड़े होकर मांग रहे मदद

  • ये प्रवासी ईरान, भारत, नेपाल, श्रीलंका, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और चीन सहित अन्य देशों से हैं। अमेरिका को इनमें से कुछ देशों में सीधे निर्वासित करने में कठिनाई होती है।

Amit Kumar भाषा, पनामाWed, 19 Feb 2025 07:41 PM
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प्लीज हेल्प! पनामा के होटल में कैद भारतीयों समेत 300 लोग, खिड़कियों पर खड़े होकर मांग रहे मदद

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन द्वारा निर्वासित किए गए विभिन्न देशों के लगभग 300 लोगों को पनामा ने एक होटल में हिरासत में रखा है तथा अंतरराष्ट्रीय प्राधिकारियों द्वारा उनकी स्वदेश वापसी की व्यवस्था किए जाने तक उन्हें वहां से जाने की अनुमति नहीं दी जा रही है। अधिकारियों ने कहा कि 40 प्रतिशत से ज्यादा प्रवासी अपने वतन स्वेच्छा से लौटना नहीं चाहते और होटल के कमरों की खिड़कियों पर इन प्रवासियों ने ‘‘मदद करें’’ और ‘‘हम अपने देश में सुरक्षित नहीं हैं’’ जैसे संदेश लिख रखे हैं।

ये प्रवासी ईरान, भारत, नेपाल, श्रीलंका, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और चीन सहित अन्य देशों से हैं। अमेरिका को इनमें से कुछ देशों में सीधे निर्वासित करने में कठिनाई होती है, इसलिए पनामा को एक पड़ाव के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। पनामा के सुरक्षा मंत्री फ्रैंक अब्रेगो ने मंगलवार को कहा कि पनामा और अमेरिका के बीच प्रवास समझौते के तहत प्रवासियों को चिकित्सकीय देखभाल और भोजन मुहैया कराया जा रहा है।

पनामा सरकार अब निर्वासितों के लिए एक ‘‘सेतु’’ के रूप में सेवा करने के लिए सहमत हो गई है, जबकि अमेरिका इस अभियान का सारा खर्च वहन करेगा। इस समझौते की घोषणा इस महीने की शुरुआत में अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो की यात्रा के बाद की गई थी।

पनामा नहर पर नियंत्रण वापस लेने की ट्रंप की धमकियों के कारण राजनीतिक दबाव का सामना कर रहे पनामा के राष्ट्रपति जोस राउल मुलिनो ने पिछले बृहस्पतिवार को निर्वासितों की पहली उड़ान के आगमन की घोषणा की थी।

अमेरिका से निर्वासित लोगों ने खतरनाक 'डंकी रूट' के बारे में बताया

पूर्व सैनिक मंदीप सिंह से वादा किया गया था कि उन्हें अमेरिका में कानूनी रूप से प्रवेश दिलाया जाएगा, लेकिन उनका जीवन खतरे में पड़ गया और उन्हें मगरमच्छों व सांपों से निपटना पड़ा, सिख होने के बावजूद दाढ़ी कटवानी पड़ी और कई दिनों तक बिना भोजन के रहना पड़ा।

मगर अमृतसर में अपने परिवार के लिए बेहतर जीवन सुनिश्चित करने का उनका सपना 27 जनवरी को उस समय टूट गया, जब मैक्सिको के तिजुआना के रास्ते अमेरिका में घुसने की कोशिश करते समय उन्हें अमेरिकी सीमा गश्ती दल ने गिरफ्तार कर लिया।

मनदीप उन 116 भारतीयों में शामिल थे जिन्हें अमेरिकी सैन्य विमान द्वारा वापस भेजा गया। विमान शनिवार देर रात अमृतसर हवाई अड्डे पर उतरा। यह अवैध प्रवासियों के खिलाफ डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन की कार्रवाई के बीच पांच फरवरी के बाद वापस भेजा गया भारतीयों का दूसरा जत्था था।

रविवार रात को 112 निर्वासितों का तीसरा जत्था अमृतसर पहुंचा

मनदीप (38) ने अमृतसर में पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि वह एक पूर्व सैनिक है। उन्होंने अपने परिवार को बेहतर जिंदगी देने के लिए अमेरिका में अपनी किस्मत आजमाने का फैसला किया और सोचा कि एजेंट उन्हें कानूनी तौर पर वहां भेज देगा। उन्होंने अपने ट्रैवल एजेंट और उप-एजेंटों द्वारा कराई गई खतरनाक यात्रा के कई वीडियो दिखाए। वादे के अनुसार कानूनी प्रवेश के बजाय मनदीप के ट्रैवल एजेंट ने उन्हें 'डंकी रूट' पर डाल दिया। यह प्रवासियों द्वारा अमेरिका में प्रवेश करने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक अवैध और जोखिम भरा मार्ग है।

पंजाब के रहने वाले कई निर्वासितों ने भी मनदीप जैसी ही पीड़ाएं साझा कीं। शनिवार को लौटे निर्वासित लवप्रीत सिंह ने 'डंकी रूट' से गुजरने की कठिनाइयों को साझा करते हुए बताया, "पनामा के जंगलों से होकर गुजरना बहुत खतरनाक था। हम किसी तरह सांपों, मगरमच्छों और अन्य जानवरों से खुद को बचाने में कामयाब रहे।" अमृतसर जिले के जसनूर सिंह के परिवार ने कहा कि उन्होंने जसनूर को अमेरिका भेजने के लिए 55 लाख रुपये खर्च किये।

परिवार के एक सदस्य ने बताया, "हमने धन जुटाने के लिए अपनी संपत्तियां, वाणिज्यिक वाहन और एक भूखंड बेच दिया।" जसनूर उस अमेरिकी सैन्य विमान में सवार थे जो रविवार को अमेरिका में अवैध रूप से रह रहे 112 भारतीयों को वापस लाया था। अपनी आपबीती बताते हुए मनदीप ने कहा, "जब मैंने अपने एजेंट से बात की तो उसने कहा कि एक महीने के भीतर मुझे कानूनी तरीके से अमेरिका ले जाया जाएगा।"

एजेंट ने 40 लाख रुपए मांगे, जो उन्होंने दो किस्तों में चुकाए। यात्रा पिछले साल अगस्त में अमृतसर से दिल्ली की उड़ान से शुरू हुई थी। मनदीप ने बताया, "दिल्ली से मुझे मुंबई, फिर नैरोबी और फिर दूसरे देश के रास्ते एम्स्टर्डम ले जाया गया। वहां से हमें सूरीनाम ले जाया गया। जब मैं वहां पहुंचा तो उप-एजेंट ने 20 लाख रुपये मांगे जो मेरे परिवार ने घर पर चुकाए।" मनदीप ने कहा, "सूरीनाम से हम एक वाहन में सवार हुए, जिसमें मेरे जैसे कई लोग सवार थे। हमें गयाना ले जाया गया। वहां से कई दिनों तक लगातार यात्रा हुई। हम गयाना और फिर बोलीविया से होते हुए इक्वाडोर पहुंचे।"

इसके बाद समूह को पनामा के जंगलों को पार कराया गया। उन्होंने कहा, "यहां हमें साथी यात्रियों ने बताया कि अगर हम बहुत अधिक सवाल पूछेंगे तो हमें गोली मार दी जाएगी। 13 दिनों तक हम खतरनाक रास्ते से गुजरे जिसमें 12 नहरें शामिल थीं। मगरमच्छ, सांप - हमें सब कुछ सहना पड़ा। कुछ लोगों को खतरनाक सरीसृपों से निपटने के लिए लाठियां दी गईं।"

मनदीप ने कहा, "हम अधपकी रोटियां और कभी-कभी नूडल्स खाते थे, क्योंकि उचित भोजन तो दूर की बात थी। हम दिन में 12 घंटे यात्रा करते थे।" मनदीप ने बताया कि पनामा पार करने के बाद समूह ने कोस्टा रिका में रुककर होंडुरास की यात्रा शुरू की, जहां, "हमें अंततः चावल खाने को मिला।" मनदीप ने बताया, "लेकिन निकारागुआ से गुजरते समय हमें कुछ खाने को नहीं मिला। हालांकि ग्वाटेमाला में हमें किस्मत से दही चावल मिल गया। जब हम तिजुआना पहुंचे तो मेरी दाढ़ी जबरन काट दी गई।"

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उन्होंने बताया कि 27 जनवरी की सुबह उन्हें बॉर्डर पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया, जब वे अमेरिका में घुसने के लिए सीमा पार कर रहे थे। उन्होंने कहा, "अधिकारियों ने हमें बताया कि हमें निर्वासित कर दिया जाएगा। वापस भेजे जाने से पहले हमें कुछ दिनों तक हिरासत केंद्र में रखा गया।" गुरदासपुर जिले के रहने वाले लवप्रीत ने बताया कि वह एक साल पहले घर से चले गए थे।

लवप्रीत ने कहा, "मेरे ट्रैवल एजेंट ने मुझे डंकी रूट से जाने को कहा, जो सुरक्षित नहीं था। पनामा के जंगलों से गुजरना बहुत खतरनाक था। हम किसी तरह खुद को सांपों, मगरमच्छों और दूसरे जानवरों से बचाने में कामयाब रहे।" लवप्रीत ने कहा, "हमें एक कंटेनर में मेक्सिको ले जाया गया। हमें शौच के लिए भी नहीं जाने दिया गया। अगर हम शौच के लिए कहते तो वे हमें पीटते थे।"

कपूरथला जिले के बीस वर्षीय निशान सिंह ने भी ऐसी ही आपबीती सुनाई। निशान के परिवार ने उन्हें अमेरिका भेजने के लिए 40 लाख रुपए खर्च किए थे। निशान ने कहा, "हमें पीटा गया, खाना नहीं दिया गया। हमने 16 दिन जंगल में बिताए, मुख्य रूप से पानी पर जीवित रहे। हमारे मोबाइल फोन और अन्य सामान छीन लिए गए।" इससे पहले पांच फरवरी को 104 अवैध भारतीय प्रवासियों को लेकर पहला अमेरिकी सैन्य विमान अमृतसर हवाई अड्डे पर उतरा था।

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