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ISRO के सामने बौनी है पाक की स्पेस एजेंसी, चीन के दम पर भेजा पहला स्वदेशी सैटेलाइट

  • पाकिस्तान की स्पेस एजेंसी सुपारको ने हाल ही में अपना पहला स्वदेशी इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल (ईओ-1) सैटेलाइट चीन के जिउक्वान सैटेलाइट लॉन्च सेंटर से लॉन्च किया। इस उपलब्धि के पीछे चीन की अहम भूमिका है, जिसने अपने लॉन्ग मार्च-2डी रॉकेट से इस सैटेलाइट को अंतरिक्ष में भेजा।

Himanshu Tiwari लाइव हिन्दुस्तानFri, 17 Jan 2025 07:59 PM
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पाकिस्तान के अंतरिक्ष एजेंसी स्पेस एंड अपर एटमॉस्फेयर रिसर्च कमीशन (सुपारको) ने हाल ही में अपना पहला स्वदेशी इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल (ईओ-1) सैटेलाइट चीन के जिउक्वान सैटेलाइट लॉन्च सेंटर से लॉन्च किया। यह सैटेलाइट पाकिस्तान को प्राकृतिक संसाधनों की निगरानी, आपदा प्रबंधन और शहरी नियोजन में मदद करेगा। हालांकि, इस उपलब्धि के पीछे चीन की अहम भूमिका है, जिसने अपने लॉन्ग मार्च-2डी रॉकेट से इस सैटेलाइट को अंतरिक्ष में भेजा।

डॉन की रिपोर्ट की मानें तो पाकिस्तान ने अपनी इस सफलता को आत्मनिर्भरता और तकनीकी उत्कृष्टता की दिशा में एक बड़ा कदम बताया है। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या यह वास्तव में आत्मनिर्भरता है? जबकि भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने 1969 में अपनी स्थापना के बाद से स्वदेशी तकनीकों के माध्यम से खुद को विश्व स्तरीय अंतरिक्ष संगठन के रूप में स्थापित किया है, पाकिस्तान ने आज भी चीन पर अपनी निर्भरता बनाए रखी है।

भारत ने जहां 1975 में अपने पहले सैटेलाइट आर्यभट्ट को लॉन्च किया था, आज अपने खुद के लॉन्च वाहनों और तकनीकी विशेषज्ञता के माध्यम से चंद्रमा और मंगल जैसे अभियानों को सफलतापूर्वक अंजाम दे रहा है। वहीं पाकिस्तान, जो 1947 में भारत के साथ ही आजाद हुआ था, अब भी चीन के सहारे अंतरिक्ष में अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रहा है।

इसरो के सामने बौनी है पाक की स्पेस एजेंसी

इसरो ने अपने सीमित संसाधनों के बावजूद अंतरिक्ष में जो उपलब्धियां हासिल की हैं, जो विश्व स्तर पर सराहनीय हैं। चंद्रयान और मंगलयान जैसे मिशन इसरो की स्वदेशी क्षमता और विज्ञान में आत्मनिर्भरता को दर्शाते हैं। इसके विपरीत, सुपारको की प्रगति धीमी और बाहरी सहायता पर निर्भर रही है। पाकिस्तान के पास न तो अपने रॉकेट हैं और न ही पर्याप्त तकनीकी विशेषज्ञता। हर बार उसे चीन जैसे देशों की मदद की आवश्यकता पड़ती है। सुपारको की यह उपलब्धि भले ही पाकिस्तान के लिए गर्व की बात हो, लेकिन इसकी तुलना इसरो की आत्मनिर्भरता और स्वदेशी तकनीकी क्षमता से करना अनुचित होगा।

ईओ-1 की लॉन्चिंग पाकिस्तान के लिए यह एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है, लेकिन जब तक वह अपनी तकनीकी और वैज्ञानिक क्षमताओं को स्वतंत्र रूप से विकसित नहीं करता, तब तक वह इसरो की तरह एक विश्वसनीय और आत्मनिर्भर अंतरिक्ष एजेंसी बनने से दूर ही रहेगा। चीन की सहायता से मिली यह सफलता, पाकिस्तान की वास्तविक स्थिति को नहीं बदल सकती।

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