पाकिस्तान से बढ़ी रार तो अफगानिस्तान ने अपनाया भारत वाला रास्ता, छिड़ सकता है युद्ध
- पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच तनाव बढ़ने के बाद काबुल ने व्यापार के लिए भी भारत वाला रास्ता अपना लिया है। अफगानिस्तान ने ईरान के पोर्ट्स का इस्तेमाल शुरू कर दिया है।
पाकिस्तान और तालिबान कभी दोस्त हुआ करते थे लेकिन आज एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए हैं। अफगान इलाके में पाकिस्तान एयरस्ट्राइक के बाद दोनों देशों में संबंध बेहद खराब हो गए हैं। अफगानिस्तान के तालिबानी लड़ाके डूरंड लाइन पार कर पाकिस्तान पर हमला कर रहे हैं। पाकिस्तान ने कहा है कि सीमा के पास उनकी चौकियों पर बड़े हमले किए गए हैं। इसके अलावा कई चौकियों पर कब्जा भी कर लिया गया है। पाकिस्तानी सेना के कम से कम 19 सैनिकों की मौत हुई है, वहीं सैकड़ों सैनिक भाग खड़े हुए। इतना ही नहीं अफगानिस्तान ने डिप्लोमैटिक स्तर पर भी यह लड़ाई शुरू कर दी है। अफगानिस्तान अब पाकिस्तान के कराची पोर्ट का भी इस्तेमाल नहीं करना चाहता। विकल्प के तौर पर उसने ईरान के बांदर अब्बास और चाबहार पोर्ट का इस्तेमाल शुरू कर दिया है। भारत भी इन पोर्ट्स का इस्तेमाल करता है। ऐसे में कहा जा सकता है कि तालिबान ने पाकिस्तान से युद्ध की तैयारी कर ली है।
गौर करने वाली बात यह है कि हाल ही में चीन ने भी ईरान के अब्बास पोर्ट के जरिए ही अफगानिस्तान को निर्यात किया है। अफगानिस्तान के लिए रवाना किए गए कंटेनर में लोहे के 1000 रोल थे। यह पोर्ट भारत को ईरान के रास्ते रूस को जोड़ने का माध्यम है। भारत अफगानिस्तान के लिए मानवीय सहयाता भेजने के वास्ते चाबहार पोर्ट का इस्तेमाल करता रहा है। भारत ईरान और अफगानिस्तान ने चाबहार पोर्ट को लेकर समझौता भी किया था। ईरान के इस पोर्ट के रास्ते भारत और अफगानिस्तान के बीच व्यापार के मार्ग खुल गए हैं।
अब यह भी पता चला है कि काबुल ईरान के लिए अपने रेल नेटवर्क को भी मजबूत करना चाहता है। ऐसे में अफगानिस्तान के लिए भारत का रास्ता और आसान हो जाएगा। बता दें कि 1990 के दशक में उत्तर पाकिस्तान में ही तालिबान का जन्म हुआ था। तालिबान का अर्थ उन छात्रों से था जो कि कट्टर इस्लामी धार्मिक शिक्षा से प्रेरित थे। सुन्नी कट्टरपंथियों ने ही इसको जन्म दिया था।
पहले कहा गया है कि तालिबान इस्लामी इलाकों में विदेशी शासन के खिलाफ पड़ेगा और शरिया कानून लागू करके इस्लामिक स्टेट बनाएगा। पहले इसे अधिकारों के लिए लड़ने वाले संगठन के तौर पर देखा गया। उस दौरान आदिवासी इलाकों में तालिबान का खूब स्वागत होता था। हालांकि बाद में तालिबान की कट्टरता और हिंसा की वजह से इसकी लोकप्रियता खत्म हो गई। आज अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता है।
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