प्राइवेट पार्ट से भी बहने लगता है खून, क्या जानलेवा मारबर्ग वायरस, भारत में भी हो सकती है एंट्री?
- रवांडा में इन दिनों जानलेवा मारबर्ग वायरस का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। गुरुवार को इस वायरस से 11 लोगों की मौत हो गई। इस वायरस से मृत्युदर काफी ज्यादा है। यह तरल पदार्थ से फैलने वाला इबोला फैमिली का ही वायरस है।
कोरोना के बाद एक और जानलेवा वायरस का प्रकोप सामने आया है। रवांडा में इस वायरस की वजह से लोगों की जान जा रही है। गुरुवार की रिपोर्ट के मुताबिक रवांडा में इस वायरस की वजह से 11 लोगों की जान चली गई। स्वास्थ्य मंत्री वायरस के लिए क्लीनिकल ट्रायल का आदेश दिया है ताकि वैक्सीन तैयार की जा सके। मारबर्ग इबोला फैमिली का ही वायरस है। हालांकि यह इबोला से भी ज्यादा खतरनाक है।
क्या है मारबर्ग वायरस?
मारबर्ग बेहद संक्रामक बीमारी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि यह वायरस ज्यादा जानलेवा है। इबोला और मारबर्ग दोनों ही फिलोवायरस परिवार के वायरस हैं। 1967 में मारबर्ग पहली बार पहचान में आया था । अफ्रीकी देशों में इस वायरस का प्रकोप देखने को मिला था। बताया जाता है कि यह वायरस बंदरों से संबंधित है। WHO का कहना है कि इस वायरस से मृत्यु दर 24 से 88 फीसदी के बीच हो सकती है। वायरस के संक्रमण में आने वाले औसतन आधे लोगों की मौत हो जाती है।
क्या हैं मारबर्ग के लक्षण
यह वायरस सूअरों औऱ अफ्रीकी हरे बंदरों को भी संक्रिमति करता है। यह वाचरस शारीरिक तरल बदार्थ जैसे कि उल्टी, खून या फिर लार से फैलता है। इसके अलावा संक्रमित वीर्य से भी यह फैल सकता है। संक्रमित व्यक्ति द्वारा इस्तेमाल किए गए तरल पदार्थ के संपर्क में आने से भी यह वायरस संक्रमित कर सकता है।
इस वायरस का संक्रमण होने के बाद तेज बुखार आता है जो कि आंतरिक अंगों को नुकसान पहुंचा सकता है। इस संक्रमण में डेंगी या फिर येलो फीवर जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। वायरस की जगह से अलग-अलग अंगों से रक्त स्राव होने लगता है। पांच से 21 दिनों के अंदर इसके लक्षण सामने आने लगते हैं। नाक से खून आना, मसूढ़ों और प्राइवेट अंगों से खून आना और उल्टी होना इसके लक्षण हैं। कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले लोग वायरस की चपेट में जल्दी आते हैं।
क्या है इसका उपचार?
विशेषज्ञों के मुताबिक इस वायरस के प्रसार को नियंत्रित किया जा सकता है। यह वायरस चमगादड़ों और उनके मूत्र से भी फैल सकता है। इसमें पर्याप्त नींद लेना, हाइड्रेटेड रहना, ऑक्सीजन और ब्लड प्रेशर को निरंतर मापते रहना चाहिए। इसके अलावा द्वितीयक इलाज के जरिए इसका उपचार किया जा सकता है।
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