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कभी एक देश था कोरिया, फिर कैसे नॉर्थ और साउथ में बंट गई सीमा? हैरान करने वाला है इतिहास

  • कोरिया का इतिहास 5,000 वर्षों से भी अधिक पुराना है। कोरियाई प्रायद्वीप पर गोगुर्यो, शिला, और बैकजे जैसे प्राचीन साम्राज्यों ने समृद्ध सभ्यता का निर्माण किया। 20वीं सदी की शुरुआत में, जापान की विस्तारवादी नीतियों ने कोरिया को अपने कब्जे में ले लिया।

Amit Kumar लाइव हिन्दुस्तानWed, 4 Dec 2024 06:51 PM
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कोरिया एक समय पर सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और राजनीतिक रूप से समृद्ध देश था। लेकिन यह 20वीं सदी में उन कई देशों में से एक था, जो विश्व की महान शक्तियों के बीच खींचतान का शिकार हुआ। आज, यह उत्तर और दक्षिण कोरिया में विभाजित है, और इस विभाजन की कहानी उस इतिहास का हिस्सा है, जो द्वितीय विश्व युद्ध और शीत युद्ध के दौरान की भू-राजनीतिक हलचलों से गहराई से जुड़ी हुई है।

कोरिया का प्राचीन इतिहास और औपनिवेशिक युग

कोरिया का इतिहास 5,000 वर्षों से भी अधिक पुराना है। कोरियाई प्रायद्वीप पर गोगुर्यो, शिला, और बैकजे जैसे प्राचीन साम्राज्यों ने समृद्ध सभ्यता का निर्माण किया। समय के साथ, यह क्षेत्र एकीकृत कोरिया के तहत आया, जिसमें जोसियन राजवंश (1392-1900) ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जोसियन राजवंश ने 1392 से 1910 तक कोरिया पर शासन किया। यह राजवंश, 20वीं सदी की शुरुआत में जापानी उपनिवेशीकरण से पहले कोरिया पर शासन करने वाला आखिरी राजवंश था।

20वीं सदी की शुरुआत में, जापान की विस्तारवादी नीतियों ने कोरिया को अपने कब्जे में ले लिया। 1910 में कोरिया को जापान ने औपचारिक रूप से गुलाम बना दिया गया। इसने कोरियाई संस्कृति, भाषा और अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव डाला। कोरियाई लोग अपनी आजादी के लिए संघर्ष करते रहे, लेकिन यह सपना तब तक पूरा नहीं हुआ, जब तक कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान की हार नहीं हुई।

द्वितीय विश्व युद्ध और कोरिया का विभाजन

1945 में, द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हुआ और जापान ने आत्मसमर्पण कर दिया। कोरियाई प्रायद्वीप में जापानी कब्जे का अंत हो गया, लेकिन कोरिया के भविष्य को लेकर एक नई समस्या खड़ी हो गई। युद्ध के बाद, अमेरिका और सोवियत संघ, जो द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान मित्र राष्ट्र थे, शीत युद्ध के दौरान दुश्मन बन गए।

कोरियाई प्रायद्वीप पर नियंत्रण के मुद्दे को हल करने के लिए, अमेरिका और सोवियत संघ ने 38वीं समानांतर रेखा (38th Parallel) को एक अस्थायी सीमा के रूप में चुना। उत्तरी भाग को सोवियत संघ ने संभाला और दक्षिणी भाग को अमेरिका ने। यह विभाजन अस्थायी था, लेकिन यह कोरिया के स्थायी विभाजन का आधार बन गया।

दो सरकारें, दो विचारधाराएं

1948 तक, कोरिया में दो अलग-अलग सरकारों का गठन हुआ। उत्तर में सोवियत समर्थित कम्युनिस्ट नेता किम इल-सुंग के नेतृत्व में डेमोक्रेटिक पीपल्स रिपब्लिक ऑफ कोरिया (नॉर्थ कोरिया) की स्थापना हुई। वहीं दक्षिण में अमेरिकी समर्थित स्यूंगमैन री के नेतृत्व में रिपब्लिक ऑफ कोरिया (नॉर्थ कोरिया) का निर्माण हुआ। दोनों सरकारें पूरे कोरिया पर अपना अधिकार जताती थीं, लेकिन विचारधारा और वैश्विक समर्थन के आधार पर वे एक-दूसरे के विरोधी बन गए।

कोरियाई युद्ध और स्थायी विभाजन

1950 में, उत्तर कोरिया ने दक्षिण कोरिया पर हमला कर दिया। यह हमला सोवियत संघ और चीन के समर्थन से हुआ, और इसके जवाब में संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व में अमेरिका ने दक्षिण कोरिया की मदद की। इस संघर्ष ने कोरियाई प्रायद्वीप को युद्ध के मैदान में बदल दिया। 1953 में युद्धविराम समझौते के साथ यह युद्ध खत्म हुआ, लेकिन कोरिया औपचारिक रूप से कभी भी शांति संधि पर हस्ताक्षर नहीं कर पाया। युद्ध के बाद, 38वीं समानांतर रेखा के पास एक डिमिलिटराइज्ड जोन (DMZ) बनाया गया, जो आज भी उत्तर और दक्षिण कोरिया के बीच की सीमा है।

विभाजन के बाद का घटनाक्रम

उत्तर कोरिया

उत्तर कोरिया ने एक कठोर तानाशाही और आत्मनिर्भरता की नीति अपनाई। किम इल-सुंग और उनके वंशजों ने इस देश पर शासन किया। उत्तर कोरिया एक बंद अर्थव्यवस्था और सैन्य-प्रधान देश बन गया, जिसकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना होती है।

दक्षिण कोरिया

दूसरी ओर, दक्षिण कोरिया ने लोकतंत्र, खुली अर्थव्यवस्था और तकनीकी विकास की ओर कदम बढ़ाए। यह देश आज वैश्विक मंच पर अपनी संस्कृति (के-पॉप, के-ड्रामा) और अर्थव्यवस्था (सैमसंग, एलजी) के लिए प्रसिद्ध है।

विभाजन के प्रभाव और वर्तमान स्थिति

आज, उत्तर और दक्षिण कोरिया न केवल राजनीतिक रूप से, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से भी पूरी तरह अलग हैं। विभाजन ने लाखों परिवारों को अलग कर दिया और दोनों देशों के बीच गहरी शत्रुता पैदा कर दी। हालांकि कई बार शांति वार्ताओं के प्रयास हुए हैं, लेकिन यह विभाजन आज भी एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है।

कोरिया का विभाजन केवल भौगोलिक सीमा नहीं है, बल्कि यह 20वीं सदी की भू-राजनीतिक खींचतान और शीत युद्ध के प्रभावों का प्रतीक है। यह कहानी हमें सिखाती है कि बाहरी शक्तियों के हस्तक्षेप का एकीकृत देशों और उनके नागरिकों पर कितना गहरा प्रभाव पड़ सकता है। आज, यह उम्मीद बनी हुई है कि भविष्य में कोरियाई प्रायद्वीप के लोग शांति और एकता के किसी नए रास्ते पर आगे बढ़ सकेंगे।

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