सुना है...अंतरिक्ष में लकड़ी की सैटेलाइट? जी हां, ये सच है; किस देश ने किया कमाल, कैसे है यह बड़ी क्रांति
मेटल यानी धातु से बनी सैटेलाइट पुनः प्रवेश के दौरान एल्युमिनियम ऑक्साइड छोड़ते हैं, जबकि लकड़ी के उपग्रहों के मामले में ऐसा नहीं है। इससे अंतरिक्ष प्रदूषण की समस्या पर रोक लग सकती है।
जापान ने एक अनोखा कारनामा करते हुए लकड़ी की सैटेलाइट बनाई है और उसे अंतरिक्ष में रवाना भी कर दिया है। मंगलवार को जापान ने दुनिया की पहली लकड़ी की सैटेलाइट लिग्नोसैट (LignoSat) को लॉन्च कर इंटरनेशनल स्पेस सेंटर (ISS) भेजा है। इसके बाद उसे 400 किलोमीटर की ऊंचाई वाली कक्षा में स्थापित किया जाएगा। जापान की क्योटो यूनिवर्सिटी और सुमितोमो फॉरेस्ट्री ने मिलकर इस सैटेलाइट का निर्माण किया है। दरअसल, जापान के वैज्ञानिक यह जानना चाहते थे कि क्या लकड़ी की सैटेलाइट अंतरिक्ष में टिक सकती है और काम कर सकती है या नहीं?
जापानी वैज्ञानिकों का मानना था कि अगर लकड़ी की सैटेलाइट अंतरिक्ष में सर्वाइव कर सकती है तो भविष्य में लकड़ी की मदद से चंद्रमा और मंगल जैसे ग्रहों पर इंसानों के लिए घर बनाना आसान हो जाएगा। दरअसल, लकड़ी किसी भी धातु की तुलना में हल्की होती है और रिन्यूबल होती है। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए जापानी वैज्ञानिकों ने भविष्य के अंतरिक्ष आवास और अन्वेषण में सकड़ी की व्यवहार्यता का परीक्षण करने के लिए मिनी-सैटेलाइट लिग्नोसैट लॉन्च किया है। इसका आकार हथेली के आकार भर है।
क्योटो यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और अंतरिक्ष यात्री ताकाओ दोई लकड़ी को अंतरिक्ष में दीर्घकालिक मानव बस्ती का समर्थन करने वाले एक स्थायी संसाधन के रूप में देखते हैं। अंतरिक्ष में लकड़ी की स्थिरता के बारे में बताते हुए दोई ने कहा, "लकड़ी, एक ऐसी सामग्री जिसे हम खुद बना सकते हैं। इसके अलावा इसकी मदद से अंतरिक्ष में हम अनिश्चित काल तक घर बना सकते हैं, जहां रह सकते हैं और काम भी कर सकते हैं।" दोई ने कहा कि अगर लिग्नोसैट इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन और अंतरिक्ष के रेडिएशन को बर्दाश्त कर लेता है, तो भविष्य में इससे काफी मदद मिलेगी। उन्होंने बताया कि अगले चरण में लकड़ी को चंद्रमा और मंगल ग्रह पर उगाने की तैयारी की जा रही है। अगले 50 साल में ये काम भी किया जा सकता है।
लकड़ी के विमान से प्रेरित है लिग्नोसैट
वैज्ञानिकों की टीम ने होनोकी वुड से लिग्नोसैट तैयार किया हैय़ यह प्रयोग शुरुआती समय के लकड़ी के विमानों से प्रेरित है। इस्तेमाल की गई लकड़ी जापानी मैगनोलिया प्रजाति की है, जिसका इस्तेमाल पारंपरिक रूप से तलवारों के म्यान के लिए किया जाता रहा है। वैज्ञानिकों ने इस लकड़ी से सैटेलाइट बनाने का फैसला 10 महीने के आईएसएस अध्ययन के बाद लिया है, जिसमें होनोकी के अंतरिक्ष में लचीलेपन की पुष्टि की गई। लकड़ी से बने सैटेलाइट में न तो कील और न ही गोंद का इस्तेमाल किया गया है। इसमें पारंपरिक काष्ठ शिल्प कौशल का इस्तेमाल किया गया है। नासा ने भी इस सैटेलाइट को बनाने में मदद की है।
मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि दोई की टीम चांद और मंगल ग्रह पर भी लकड़ी के ढांचे भेजने की एक महत्वाकांक्षी 50-वर्षीय रणनीति की योजना बना रही है। अंतरिक्ष यान को नासा द्वारा प्रमाणित लकड़ी के उपग्रह के साथ विकसित किया गया है, जो लकड़ी को अंतरिक्ष के लिए उपयुक्त सामग्री के रूप में मान्य करता है।
अंतरिक्ष का तापमान बहुत तेजी से बदलता है
यह अंतरिक्ष यान छह महीने तक पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाएगा और यह मापेगा कि लकड़ी अंतरिक्ष के कठोर वातावरण को कैसे और कितना सामना कर सकती है। अंतरिक्ष में तापमान -100 डिग्री और 100 डिग्री सेल्सियस के बीच नाटकीय रूप से बदलता है, जो चरम स्थितियों में लकड़ी के स्थायित्व का परीक्षण करेगा। अंतरिक्ष में अपने कार्यकाल के दौरान, यह सैटेलाइट ब्रह्मांडीय विकिरण से बचाने की लकड़ी की क्षमता का भी परीक्षण और विश्लेषण करेगी। इससे अंतरिक्ष के लिए भविष्य के डेटा सेंटर डिज़ाइन में मदद मिलेगी।
अंतरिक्ष विज्ञान में बड़ी क्रांति कैसे
बता दें कि मेटल यानी धातु से बनी सैटेलाइट पुनः प्रवेश के दौरान एल्युमिनियम ऑक्साइड छोड़ते हैं, जबकि लकड़ी के उपग्रहों के मामले में ऐसा नहीं है। इससे अंतरिक्ष प्रदूषण की समस्या पर रोक लग सकती है। इसके परिणामस्वरूप पर्यावरण पर कम प्रभाव पड़ सकता है। दोई के अनुसार, लकड़ी के विकल्पों की सफलता के परिणामस्वरूप भविष्य में "धातु उपग्रहों पर प्रतिबंध" लग सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर लिग्नोसैट उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन करता है तो टीम स्पेसएक्स जैसी कंपनियां लकड़ी के उपग्रहों को बढ़ावा दे सकती है। यह उपग्रह पर्यावरण के अनुकूल सामग्रियों के साथ अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में क्रांति ला सकता है।
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