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चोरी-छिपे खतरनाक जहाज बना रहा चीन, किसी के पास नहीं है ऐसा एयरक्राफ्ट कैरियर; सैटेलाइट से खुलासा

  • पूर्व अमेरिकी नौसेना पनडुब्बी कमांडर थॉमस शुगार्ट का कहना है कि यह नया एयरक्राफ्ट कैरियर कुछ हद तक असामान्य साइज और डिजाइन का है। यह चीन के पिछले नौसैनिक विमानवाहक पोतों की तुलना में छोटा है।

Madan Tiwari लाइव हिन्दुस्तान, बीजिंगSun, 3 Nov 2024 11:19 PM
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Chinese Aircraft Carrier: दूसरे देशों से बिना वजह टकराने के लिए कुख्यात चीन चोरी-छिपे एक ऐसा खतरनाक जहाज बना रहा है, जिसे देखकर एक्सपर्ट्स के होश उड़ गए हैं। सैटेलाइट इमेज से पता चला है कि चीन का यह एयरक्राफ्ट कैरियर अपने आप में पहला होगा और किसी और देश के पास इस तरह का एयरक्राफ्ट नहीं है। चीन पिछले कुछ सालों से अपनी सेनाओं को लगातार ताकतवर बना रहा है और समुद्री सीमा को लेकर कई देशों के निशाने पर भी बना हुआ है। प्लेनेट लैब्स की सैटेलाइट इमेज से पता चलता है कि दक्षिणी प्रांत गुआंगडोंग के लोंगक्सुए द्वीप पर गुआंगझोउ शिपयार्ड इंटरनेशनल में एक बड़ा, खुला और सपाट तरीके से दिखने वाला जहाज खड़ा हुआ है और इस पर काम हो रहा है।

सीएनएन की रिपोर्ट के अनुसार, चीन के नए एयरक्राफ्ट पर अमेरिका की भी नजरें हैं। पूर्व अमेरिकी नौसेना पनडुब्बी कमांडर और अब सेंटर फॉर ए न्यू अमेरिकन सिक्योरिटी के फेलो थॉमस शुगार्ट ने कहा कि यह संभावित नया एयरक्राफ्ट कैरियर कुछ हद तक असामान्य साइज और डिजाइन का है। यह चीन के पिछले नौसैनिक विमानवाहक पोतों की तुलना में काफी छोटा है। उन्होंने आगे कहा, ''लेकिन यह जहाज बीजिंग की नौसेना द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले टाइप 075 उभयचर हमलावर जहाजों से भी छोटा है, जिससे पता चलता है कि चीन संभवतः दुनिया का पहला विमान वाहक को किसी प्रकार के समुद्र विज्ञान अनुसंधान पोत के रूप में बना रहा है।''

चीन का अब तक का सबसे बड़ा और सबसे मॉर्डन जहाज फुजियान इस साल की शुरुआत में अपने पहले टेस्ट के लिए समुद्र में रवाना हुआ था। एक्सपर्ट का कहना है कि यह साल 2026 तक पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी (PLAN) बेड़े में शामिल हो सकता है। 80,000 टन का यह जहाज PLAN के दो सक्रिय जहाज, 66,000 टन के शांडोंग और 60,000 टन के लियाओनिंग से कहीं ज्यादा भारी है, जो इसे सुपरकैरियर की कैटेगरी में रखता है। केवल अमेरिकी नौसेना ही फुजियान से बड़े विमानवाहक पोतों का संचालन करती है। वहीं, चीन का यह नया जहाज मानवीय क्षमता में मददगार साबित हो सकता है, क्योंकि यह गैर-युद्ध स्थितियों में तुरंत और लागत प्रभावी राहत और निकासी प्रदान कर सकता है। यह रसद सहायता में भी चीन की मदद कर सकता है, लेकिन समुद्र तट क्षेत्रों में प्रवेश करने के लिए बहुत कमजोर है।

अमेरिका-भारत समेत कई देशों से चीन का लंबे समय से टकराव चल रहा है। भले ही पूर्वी लद्दाख में एलएसी विवाद हाल में सुलझा हो, लेकिन चीन की अतीत की गतिविधियों को देखते हुए भारत हमेशा चौंकन्ना बना हुआ है। इसी तरह कोरोना की शुरुआत के बाद से अमेरिका और चीन के बीच भी संबंध और खराब हो गए हैं। चीन लगातार खुद को अमेरिका से मजबूत बनाने की जुगत में लगा रहता है। वाशिंगटन थिंक टैंक, सेंटर फॉर स्ट्रेटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज के अनुसार, चीन ने दुनिया के सबसे बड़े हमलावर जहाज के निर्माण पर भी तेजी से प्रगति की है।

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