मोदी की दोस्ती का इम्तिहान ले सकता है ट्रंप का 'अमेरिका-फर्स्ट' एजेंडा, भारत पर पड़ेगा असर?
- ट्रंप ने वादा किया था कि वह उन देशों पर रिसिप्रोकल टैरिफ लगाएंगे, जिनका अमेरिका के साथ व्यापार अधिशेष (ट्रेड सरप्लस) है। इससे भारत की कई औद्योगिक कंपनियां प्रभावित हो सकती हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप एक-दूसरे को दोस्त कहते हैं, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि व्यापार विवादों के संभावित मुद्दे उनके संबंधों की परीक्षा ले सकते हैं। पीएम मोदी और ट्रंप के बीच गहरी मित्रता है। सार्वजनिक मुलाकातों में दोनों नेताओं की गले मिलने की तस्वीरें भी इस ओर संकेत करती हैं, लेकिन ट्रंप का भारत को "टैरिफ किंग" और "ट्रेड एब्यूजर" कहना उनकी आक्रामक व्यापार नीति को दर्शाता है।
ट्रंप ने वादा किया था कि वह उन देशों पर "रिसिप्रोकल" टैरिफ लगाएंगे, जिनका अमेरिका के साथ व्यापार अधिशेष (ट्रेड सरप्लस) है। इससे भारत की कई औद्योगिक कंपनियां प्रभावित हो सकती हैं। दिल्ली स्थित थिंक-टैंक अनंता एस्पेन सेंटर की प्रमुख इंद्राणी बागची ने बताया कि "अगर ट्रंप अमेरिका को आत्मनिर्भर बनाने का रुख अपनाते हैं, तो इसका असर उन देशों पर पड़ेगा जिनका अमेरिका के साथ व्यापार अधिशेष है।"
यहां व्यापार अधिशेष का मतलब है कि भारत अमेरिका को जितना सामान और सेवाएं निर्यात करता है, उससे कहीं कम का आयात अमेरिका से करता है। दूसरे शब्दों में कहें, तो भारत और अमेरिका के बीच व्यापार में भारत का लाभ अधिक है क्योंकि वह अमेरिका को अधिक बेच रहा है और उससे कम खरीद रहा है। उदाहरण के लिए, 2023-24 वित्तीय वर्ष में भारत का अमेरिका के साथ व्यापार अधिशेष $30 बिलियन से अधिक था। इसका अर्थ है कि भारत ने अमेरिका को इतने मूल्य का सामान और सेवाएं निर्यात कीं जो आयात के मूल्य से $30 बिलियन अधिक थीं।
"मेक इन इंडिया" अभियान के तहत मोदी सरकार ने घरेलू उद्योग को बढ़ावा देने के लिए नई नीतियां अपनाई हैं, जिनमें एप्पल जैसी कंपनियों की भारत में बढ़ती उपस्थिति शामिल है। इसके साथ ही, भारतीय आईटी कंपनियों जैसे टीसीएस और इंफोसिस ने अमेरिकी कंपनियों को किफायती श्रमबल के रूप में आउटसोर्सिंग के लिए एक मंच प्रदान किया है। अगर ट्रंप अपने कार्यकाल में नौकरियों को वापस लाने के उद्देश्य से "टैरिफ युद्ध" छेड़ते हैं, तो इन कंपनियों पर भी इसका असर पड़ सकता है।
ट्रंप और मोदी के बीच व्यक्तिगत गर्मजोशी के बावजूद, व्यापार और अप्रवासन (इमिग्रेशन) जैसे मुद्दे भविष्य में दोनों देशों के बीच कूटनीतिक तनाव बढ़ा सकते हैं। भारत अमेरिका में कानूनी रूप से प्रवासियों के सबसे बड़े स्रोतों में से एक है, लेकिन हाल के वर्षों में कनाडाई और मैक्सिकन सीमाओं से अवैध रूप से अमेरिका में प्रवेश करने वाले भारतीयों की संख्या भी बढ़ी है। ट्रंप के अवैध अप्रवासन पर सख्ती के वादों के चलते इस मुद्दे पर भारत को संभावित "पीआर डिजास्टर" का सामना करना पड़ सकता है।
बिजनेस कंसल्टेंसी द एशिया ग्रुप के अशोक मलिक ने एएफपी को बताया कि अगर ट्रंप नौकरियों को वापस लाने और "टैरिफ युद्ध" शुरू करने के अपने वादे को पूरा करना चाहते हैं, तो सभी को नुकसान हो सकता है। उन्होंने कहा कि ट्रंप की अपनी पहली अवधि की आक्रामक व्यापार नीति का बदला फिर से मुख्य रूप से चीन को निशाना बनाकर लिया जाएगा "लेकिन भारत को इससे अछूता नहीं छोड़ा जाएगा।" विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रंप के "अनपेक्षित" और "व्यापारिक दृष्टिकोण" के चलते यह कहना मुश्किल है कि भारत-अमेरिका के बीच सहयोग की यह दिशा बरकरार रहेगी या नहीं।
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