Hindi Newsविदेश न्यूज़How Kachchativu island became centre of arrest of Indian fishermen Sri Lankan Navy atrocities

कैसे भारतीयों की गिरफ्तारी का केंद्र बना कच्चातिवु द्वीप, खूब जुल्म कर रही श्रीलंकाई नौसेना

  • 2024 में रिकॉर्ड 535 भारतीय मछुआरों को श्रीलंका ने गिरफ्तार किया, जो पिछले वर्षों के मुकाबले लगभग दोगुना है। इनमें से 141 मछुआरे नवंबर तक श्रीलंकाई जेलों में बंद थे और 198 ट्रॉलर जब्त किए जा चुके हैं।

Amit Kumar लाइव हिन्दुस्तान, चेन्नईThu, 2 Jan 2025 04:13 PM
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पिछले महीने दिसंबर में श्रीलंका के राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मछुआरों के मुद्दे को मानवीय दृष्टिकोण से निपटाने पर सहमति जताई थी। लेकिन इसके एक सप्ताह बाद ही, श्रीलंकाई नौसेना ने रामेश्वरम द्वीप से 17 भारतीय मछुआरों को कथित तौर पर उनकी सीमा में प्रवेश करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। इसके साथ, 2024 की शुरुआत से श्रीलंका द्वारा गिरफ्तार किए गए तमिलनाडु के रामनाथपुरम, पुदुक्कोट्टई और नागपट्टिनम जिलों के मछुआरों की संख्या 535 हो गई। अकेले 2024 में श्रीलंकाई नौसेना द्वारा 71 भारतीय नौकाओं को जब्त किया गया और 2018 में लागू हुए एक नए कानून के तहत उनका राष्ट्रीयकरण किया गया है। यानी ये नावें श्रीलंका की हो गईं।

अल-जजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक, श्रीलंकाई नौसेना (एसएलएन) के जवानों ने तमिलनाडु के पंबन द्वीप के मछुआरों को उनकी नाव पर चढ़कर पीटा, हथकड़ी लगाई और उन्हें जेल में बंद कर दिया। भारतीय मछुआरे अशोक और उनके साथ आठ अन्य मछुआरों को श्रीलंका के करैनगर नौसेना शिविर में 15 दिन तक रखा गया। पिछले साल सितंबर में श्रीलंकाई जलक्षेत्र में घुसने वाले पांच मछुआरे गिरफ्तार होने के बाद सिर मुंडाकर पंबन लौटे। मछुआरों के अनुसार उनके साथ अपराधियों जैसा व्यवहार किया गया। उन्हें अपनी रिहाई के लिए 50,000 श्रीलंकाई रुपये ($170) का जुर्माना भरना पड़ा। भारतीय मछुआरों की गिरफ्तारी के मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है। 2024 में रिकॉर्ड 535 भारतीय मछुआरों को श्रीलंका ने गिरफ्तार किया, जो पिछले वर्षों के मुकाबले लगभग दोगुना है। इनमें से 141 मछुआरे नवंबर तक श्रीलंकाई जेलों में बंद थे और 198 ट्रॉलर जब्त किए जा चुके हैं। इस बीच, श्रीलंका में तीन अन्य भारतीय मछुआरों को जुर्माने के साथ छह महीने की कैद की सजा सुनाई गई।

कच्चातिवु द्वीप विवाद और मछुआरों की दुर्दशा

कच्चातिवु द्वीप कभी भारत-श्रीलंका के मछुआरों का साझा मछली पकड़ने का क्षेत्र था। इसे 1974 में भारत ने श्रीलंका को सौंप दिया था। इसके बाद से भारतीय मछुआरों के लिए यह क्षेत्र विवाद का केंद्र बन गया। 1976 में इस क्षेत्र में भारतीयों के मछली पकड़ने के अधिकार समाप्त कर दिए गए थे। आज, कच्चातिवु भारतीय मछुआरों की लगातार गिरफ्तारियों का स्थल है। भारतीय जल क्षेत्र में मछलियों की घटती संख्या और आजीविका के संकट ने मछुआरों को श्रीलंकाई जल क्षेत्र में जाने पर मजबूर किया है। मछुआरों का कहना है कि उनके पास कोई विकल्प नहीं है। अगर मछली नहीं पकड़ेंगे, तो परिवार कैसे चलेगा? मछुआरों की समस्याएं सिर्फ गिरफ्तारी तक सीमित नहीं हैं। श्रीलंका के मछुआरों को डर है कि भारतीय ट्रॉलर उनकी समृद्ध मरीन आबादी को भी खत्म कर देंगे।

कच्चातिवु द्वीप विवाद

कच्चातिवु एक छोटा द्वीप है जो भारत और श्रीलंका के बीच लंबे समय से विवाद का केंद्र रहा है। यह द्वीप श्रीलंका के जाफना प्रायद्वीप के पास, पाक जलडमरूमध्य में स्थित है। इस विवाद का मुख्य कारण ऐतिहासिक, भौगोलिक और आर्थिक है, जो मछली पकड़ने के अधिकारों और समुद्री सीमा से जुड़ा हुआ है। कच्चतीवु पर दावा पहले ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान किया गया था। जब भारत और श्रीलंका स्वतंत्र हुए, तब इस द्वीप को लेकर कोई स्पष्ट निर्णय नहीं था।

1964 और 1974 के समझौते

1964 और 1974 में भारत और श्रीलंका के बीच हुए समझौतों में भारत ने औपचारिक रूप से कच्चातिवु द्वीप को श्रीलंका को सौंप दिया। समझौते के तहत भारतीय मछुआरों को द्वीप पर जाकर पारंपरिक रूप से मछली पकड़ने और सेंट एंथनी चर्च के त्योहार में भाग लेने की अनुमति दी गई। इस क्षेत्र में मछली पकड़ने वाले भारतीय मछुआरों को अक्सर श्रीलंकाई नौसेना द्वारा गिरफ्तार किया जाता है। भारत का कहना है कि इन मछुआरों को पारंपरिक रूप से इस क्षेत्र में मछली पकड़ने का अधिकार है, लेकिन श्रीलंका इसे अपनी समुद्री सीमा का उल्लंघन मानता है। भारतीय मछुआरों के खिलाफ श्रीलंका की कार्रवाई और विवादास्पद समुद्री सीमा के कारण यह मुद्दा दोनों देशों के बीच एक संवेदनशील राजनीतिक और कूटनीतिक समस्या बना हुआ है। तमिलनाडु राज्य के लोग और नेता इस द्वीप को भारत का हिस्सा मानते हैं और इसे वापस लेने की मांग करते हैं।

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पर्यावरणीय संकट और जलवायु परिवर्तन का असर

मछुआरों की समस्याओं का एक बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन और समुद्री प्रदूषण है। प्लास्टिक कचरा, असमय बारिश और चक्रवातों की बढ़ती घटनाएं मछली उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव डाल रही हैं। पंबन के एक मछुआरे मरिवेल बताते हैं, "पहले जाल में सिर्फ मछलियां आती थीं, अब जाल में मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक आता है।" महिलाएं भी अपनी आजीविका के लिए समुद्र की गहराई में जाकर सीवीड (समुद्री शैवाल) इकट्ठा करती हैं। लेकिन समुद्री तापमान में वृद्धि और जलवायु परिवर्तन के कारण सीवीड उत्पादन में भी गिरावट आई है।

सरकारी उपेक्षा और मछुआरों की नाराजगी

भारतीय मछुआरों का आरोप है कि केंद्र सरकार उनकी समस्याओं को सुलझाने में असफल रही है। श्रीलंका में गिरफ्तार मछुआरों की रिहाई के लिए बातचीत होती है, लेकिन जब्त ट्रॉलर वापस नहीं मिलते। यह ट्रॉलर मछुआरों के लिए एक जीवनभर की पूंजी होती है। गिरफ्तारी, आर्थिक संकट और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों ने मछुआरों की अगली पीढ़ी के लिए गहरा सवाल खड़ा कर दिया है।

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