5 अफगानियों को मारकर खम्भे पर टांग दिया, पाकिस्तान ने शव भी बड़ी मुश्किल से लौटाए
- इस्लामाबाद में काबुल के दूतावास ने कहा कि पिछले हफ्ते दक्षिण-पश्चिमी पाकिस्तान में बिजली के खंभे से लटके हुए पांच गोलियों से छलनी शव अफगान नागरिकों के थे और उन्हें उनके परिवारों को सौंप दिया गया है।
तालिबान और पाकिस्तान के तल्ख रिश्ते कम होने का नाम नहीं ले रहे हैं। इस बीच पाकिस्तानी धरती में पांच अफगानियों की क्रूर हत्या कर दी गई। बलूचिस्तान प्रांत में अफगानिस्तान और ईरान की सीमा के पास दुलबंदिन शहर में एक कॉलेज के पास इन पांच लोगों के शव खम्भे पर टंगे मिले थे। इन शवों को बड़ी मुश्किल से लौटाया गया है। इस्लामाबाद में काबुल के दूतावास ने गुरुवार को कहा कि पिछले हफ्ते दक्षिण-पश्चिमी पाकिस्तान में बिजली के खंभे से लटके हुए पांच गोलियों से छलनी शव अफगान नागरिकों के थे और उन्हें उनके परिवारों को सौंप दिया गया है।
दरअसल, ईरान स्थित प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन जैश अल-अदल के एक प्रमुख नेता मुराद नोटेज़ई की हत्या के बारे में इकबालिया बयान दिए गए थे। सूत्रों के अनुसार, ईरान के सिस्तान-बलूचिस्तान क्षेत्र में सक्रिय आतंकवादी समूह ने संभवतः अपने नेता की हत्या के प्रतिशोध में इन लोगों का अपहरण कर उन्हें मार डाला। दलबंदिन शहर में एक कॉलेज के पास शुक्रवार को शव पाए गए थे।
शव लौटाने में पाकिस्तान के छूटे पसीने
पाकिस्तान की राजधानी में अफगान दूतावास के एक बयान में कहा गया है कि बुधवार को पड़ोसियों के बीच साझा की जाने वाली स्पिन बोल्डक-चमन सीमा पर शवों को परिवारों को सौंप दिया गया। बलूचिस्तान में उनके वाणिज्य दूतावास ने अफगानिस्तान में इंतजार कर रहे रिश्तेदारों को शव लौटाने के लिए "गंभीर प्रयास" किए।
गुरुवार को एएफपी के साथ साझा किए गए बयान में कहा गया, "अज्ञात लोगों ने पांच अफगानियों की बेरहमी से हत्या कर दी।" बलूचिस्तान, पाकिस्तान का सबसे कम आबादी वाला लेकिन सबसे बड़ा प्रांत, कई आतंकवादी समूहों का घर है, कुछ स्वतंत्रता या क्षेत्र के खनिज संसाधनों में बड़ी हिस्सेदारी के लिए लड़ रहे हैं, सुरक्षा बल अक्सर बमबारी का निशाना बनते हैं। क्षेत्र में सांप्रदायिक हिंसा के पीछे इस्लामी समूह भी हैं।
गौरतलब है कि 2021 में तालिबान द्वारा सत्ता वापस लेने के बाद से लगभग 600,000 अफगानों ने पाकिस्तान की यात्रा की है, और इस्लाम के अपने कठोर संस्करण को लागू किया है। हालांकि, पिछले साल से, इस्लामाबाद ने बड़ी संख्या में बिना दस्तावेज़ वाले अफ़गानों को निकालने के लिए एक अभियान चलाया है, क्योंकि सुरक्षा को लेकर काबुल के साथ संबंधों में खटास आ गई है।
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