अब बिना 'सुरक्षा मंजूरी' के बांग्लादेश जा सकते हैं पाकिस्तानी, यूनुस सरकार का सभी दूतावासों को संदेश
- इसे राजनीतिक और राजनयिक तनाव के कारण शामिल किया गया था। नई नीति के तहत अब पाकिस्तानी नागरिकों को वीजा प्राप्त करने से पहले एसएसडी से 'नो ऑब्जेक्शन' क्लियरेंस की जरूरत नहीं होगी।
बांग्लादेश ने पाकिस्तानी नागरिकों के लिए वीजा आवेदन प्रक्रिया को सरल बनाते हुए सुरक्षा मंजूरी की शर्त हटा दी है। बांग्लादेश के गृह मंत्रालय के सुरक्षा सेवा विभाग (एसएसडी) ने 2 दिसंबर को एक आधिकारिक पत्र में इस नई नीति की घोषणा की। सुरक्षा मंजूरी की यह आवश्यकता 2019 में लागू की गई थी। इसे राजनीतिक और राजनयिक तनाव के कारण शामिल किया गया था। नई नीति के तहत अब पाकिस्तानी नागरिकों को वीजा प्राप्त करने से पहले एसएसडी से 'नो ऑब्जेक्शन' क्लियरेंस की जरूरत नहीं होगी।
इसके अलावा, ढाका में बांग्लादेशी विदेश मंत्रालय (MOFA) ने विदेश में सभी बांग्लादेशी मिशनों को एक संदेश भेजा है, जिसमें उन्हें पाकिस्तानी नागरिकों और पाकिस्तानी मूल के लोगों के लिए वीजा की सुविधा प्रदान करने का निर्देश दिया गया है। यह निर्देश बांग्लादेशी गृह मंत्रालय के सुरक्षा सेवा प्रभाग (SSD) द्वारा सोमवार को भेजे गए पत्र के बाद आया है। विदेश में बांग्लादेश के मिशनों से आग्रह किया गया है कि वे निर्देशों का तुरंत पालन करें।
राजनीतिक और कूटनीतिक संबंधों में बदलाव का संकेत
इस नीति परिवर्तन की घोषणा पाकिस्तान के उच्चायुक्त सैयद अहमद मारूफ और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की नेता खालिदा जिया की मुलाकात के एक दिन पहले हुई। यह मुलाकात ढाका के गुलशन क्षेत्र में जिया के आवास पर हुई और इसे बांग्लादेश की राजनीति में एक बड़ा बदलाव माना जा रहा है। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री रह चुकीं खालिदा जिया पाकिस्तान के प्रति अपेक्षाकृत दोस्ताना दृष्टिकोण रखती हैं। इसके विपरीत, प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार की नीति पाकिस्तान के प्रति कठोर रही है। जिया के दिवंगत पति और बांग्लादेश के पूर्व राष्ट्रपति जियाउर रहमान ने देश की राजनीति को इस्लामी पहचान की ओर ले जाने का प्रयास किया था और पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारने का समर्थन किया था।
क्षेत्रीय राजनीति में संतुलन साधने की कोशिश
अब माना जा रहा है कि बांग्लादेश का ताजा कदम बदलाव नहीं बल्कि संतुलन साधने का प्रयास है। पाकिस्तान के साथ संबंध सामान्य कर बांग्लादेश यह संकेत दे रहा है कि वह दक्षिण एशियाई राजनीति को केवल भारतीय दृष्टिकोण से नहीं देखेगा। इस फैसले से पहले 19 नवंबर को एक पाकिस्तानी कार्गो जहाज पहली बार 1971 के बाद बांग्लादेश के चिटगांव पोर्ट पर पहुंचा। यह आर्थिक और कूटनीतिक संबंधों में सुधार की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।
सितंबर में, पाकिस्तान के उच्चायुक्त मारूफ ने अंतरिम सरकार के सूचना और प्रसारण सलाहकार नाहिद इस्लाम से मुलाकात की थी। इस दौरान 1971 के मुक्ति संग्राम के विवादित मुद्दे को हल करने पर चर्चा हुई। इस्लाम ने कहा, "हम पाकिस्तान के साथ 1971 के मुद्दे को हल करना चाहते हैं। एक लोकतांत्रिक दक्षिण एशिया के लिए हमारे संबंधों को मजबूत करना आवश्यक है।"
1971 का सवाल और ऐतिहासिक घाव
1971 का मुक्ति संग्राम बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच तनाव का मुख्य कारण रहा है। बांग्लादेश ने पाकिस्तान से उस समय की सैन्य क्रूरता के लिए माफी की मांग की है और इसे नरसंहार के रूप में अंतरराष्ट्रीय मान्यता दिलाने की कोशिश की है। हाल ही में, 11 सितंबर को पाकिस्तान के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्ना की 76वीं पुण्यतिथि पर ढाका में राष्ट्रीय प्रेस क्लब में एक कार्यक्रम आयोजित हुआ, जिसमें जिन्ना की भूमिका को लेकर चर्चा की गई।
एक वक्ता ने कहा, “जिन्ना के बिना पाकिस्तान का निर्माण नहीं होता और पाकिस्तान के बिना बांग्लादेश भी जन्म नहीं लेता।” इस नीति बदलाव को दक्षिण एशिया में कूटनीतिक संतुलन साधने के बांग्लादेश के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। आगे यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि भारत और पाकिस्तान इस घटनाक्रम पर कैसे प्रतिक्रिया देते हैं।
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