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वादे निकले खोखले, यूनुस के हाथों से फिसल रहा बांग्लादेश, हसीना को हटाने वालों को अब पछतावा

  • शेख हसीना की सत्ता से विदाई और लोकतंत्र की बहाली के लिए सड़कों पर उतरे छात्र अब रोजगार की तलाश में जूझ रहे हैं। उनके सपनों की लड़ाई अब हकीकत के कड़वे अनुभवों में बदल गई है।

Himanshu Tiwari लाइव हिन्दुस्तानThu, 23 Jan 2025 04:40 PM
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वादे निकले खोखले, यूनुस के हाथों से फिसल रहा बांग्लादेश, हसीना को हटाने वालों को अब पछतावा

बांग्लादेश में पिछले साल शेख हसीना की सत्ता से विदाई और लोकतंत्र की बहाली के लिए सड़कों पर उतरे छात्र अब रोजगार की तलाश में जूझ रहे हैं। उनके सपनों की लड़ाई अब हकीकत के कड़वे अनुभवों में बदल गई है। पिछले साल आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने वाले ढाका यूनिवर्सिटी के छात्र मोहम्मद रिजवान चौधरी अब मायूस हैं। उनका कहना है कि नोबेल पुरस्कार विजेता और मौजूदा प्रधानमंत्री मोहम्मद यूनुस की सरकार ने बेरोजगारी दूर करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए।

एएफपी को दिए इंटरव्यू में चौधरी ने कहा, "हमने सोचा था कि बदलाव के बाद युवाओं के लिए रोजगार के अवसरों की बाढ़ आ जाएगी। लेकिन सरकार ने अब तक कोई ठोस पहल नहीं की।"

बढ़ती बेरोजगारी

बांग्लादेश ब्यूरो ऑफ स्टैटिस्टिक्स (बीबीएस) के अनुसार, देश में बेरोजगारी का आंकड़ा सितंबर 2024 तक 2.66 मिलियन तक पहुंच गया, जो पिछले साल के मुकाबले छह प्रतिशत अधिक है। वहीं, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने चेतावनी दी है कि देश की आर्थिक गतिविधियां सुस्त पड़ी हैं, जबकि महंगाई दो अंकों पर बनी हुई है।

युवाओं के भविष्य पर संकट

बीबीएस के आंकड़ों के मुताबिक, बेरोजगारों में 87 प्रतिशत हिस्सा शिक्षित युवाओं का है। साहित्य स्नातक 31 साल के सुक्कुर अली अपने परिवार का पेट पालने के लिए छोटे-मोटे काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा, "अब किसी भी तरह का काम मेरे लिए ठीक है। मुझे बस नौकरी चाहिए।" ढाका स्थित वर्ल्ड बैंक के पूर्व प्रमुख अर्थशास्त्री जहीद हुसैन का कहना है कि देश की एक तिहाई श्रमशक्ति जो भी काम मिल सके, वही करने पर मजबूर है।

किधर है यूनुस सरकार का ध्यान?

प्रधानमंत्री यूनुस के प्रेस सचिव शफीकुल आलम ने कहा कि बेहतर टैक्स कलेक्शन से सरकार सार्वजनिक क्षेत्र में नौकरियां पैदा करेगी। लेकिन यूनुस सरकार का ध्यान अभी लोकतांत्रिक संस्थाओं की बहाली और संविधान में सुधार पर है। वेबसाइट Bdjobs के प्रमुख ए.के.एम. फहीम मशरूर के अनुसार, "हर साल करीब 7 लाख स्नातक कॉलेजों से निकलते हैं, लेकिन सरकारी क्षेत्र सिर्फ 20-25 हजार को नौकरी दे पाता है।"

युवा पीढ़ी की हताशा

युवाओं के लिए नौकरियों की कमी ने आंदोलन के बाद की उम्मीदों को तोड़ दिया है। वित्त स्नातक सुबीर रॉय ने बताया कि उन्हें सरकार द्वारा नामांकित किया गया था, लेकिन बिना किसी कारण के उनका नाम वापस ले लिया गया। रॉय ने कहा, "मेरे पिता ने मुझे पढ़ाने के लिए अपनी जमीन बेच दी थी। अब मैं खाली हाथ घर लौट रहा हूं। खेत में उनके साथ काम करूंगा।"

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