क्या है बच्चा बाजी? लड़कों को लड़की बनाकर नचवाना और फिर जबरदस्ती, तालिबान राज में भी गंदा खेल
- तालिबानी हुकूमत के मुताबिक, शरिया कानून में होमोसेक्सुअल इस्लाम में हराम है। बावजूद इसके अफगानिस्तान में बच्चा बाजी कुप्रथा का गंदा खेल बदस्तूर जारी है। तालिबान लड़ाकों और कमांडरों पर भी बच्चों के यौन शोषण के इल्जाम लगते रहते हैं।
अफगानिस्तान में कई ऐसी कुप्रथाएं हैं जो तालिबानी राज में प्रतिबंधों के बावजूद धड़ल्ले से चली आ रही हैं। इन्हीं में एक है- बच्चा बाजी। इस कुप्रथा में मासूम बच्चों को अगवा करके या लालच देकर घिनौने खेल में झोंक दिया जाता है। उन्हें लड़कियों के कपड़े पहनाकर और मेकअप कराकर नचवाया जाता है और फिर यौन शोषण भी होता है। हालिया जारी किए नए कानून में तालिबान ने एक बार फिर बच्चा बाजी के खिलाफ और सख्ताई लागू करने का फैसला लिया है। तालिबानी हुकूमत के मुताबिक, शरिया कानून में होमोसेक्सुअल इस्लाम में हराम है। बावजूद इसके अफगानिस्तान में बच्चा बाजी कुप्रथा का गंदा खेल बदस्तूर जारी है। यहां तक कि तालिबानी लड़ाकों और कमांडरों पर भी बच्चों के यौन शोषण के इल्जाम लगते रहते हैं।
बच्चा बाजी में शिकार बच्चों को बच्चा बेरिश के नाम से जाना जाता है। इसमें 8 से 16 साल की उम्र के बच्चों को शामिल किया जाता है। इन बच्चों की दाढ़ी आने तक इनका यौन शोषण होता है और जब इनकी दाढ़ी आ जाती है तो इन्हें छोड़ दिया जाता है। हालांकि तबतक इनका समाज से बहिष्कार हो जाता है और न ही इनके परिवारवाले इन्हें अपनाते हैं। ऐसे में ये बच्चे मजबूरी में या तो नशे के कारोबार में धकेल दिए जाते हैं या फिर तालिबान या किसी और आतंकी समूह में भर्ती हो जाते हैं।
कब शुरू हुई बच्चा बाजी की कुप्रथा
बच्चा बाजी एक पर्शियन शब्द है, जिसका अर्थ होता है- बच्चों का खेल। 19वीं सदी में जब अफगानिस्तान में हैजा फैला और लोगों की बड़े पैमाने पर मौतें हुईं तो रसूखदार लोगों और धर्म के ठेकेदारों ने जोर दिया कि हमें सार्वजनिक कार्यक्रमों में महिलाओं के नाच-गाने पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए। अल्लाह इस गुनाह की हमें सजा दे रहा है। महिलाओं के सार्वजनिक स्थानों या शादी समारोह में नाचने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया। ऐसे में अपनी वासना को शांत करने के लिए लड़कियों के बजाय लड़कों का शिकार होने लगा। 8 से 16 साल के बीच के लड़कों को लड़कियों के कपड़े पहनाकर और मेकअप कराकर नचाने की प्रथा शुरू हुई। इसमें यह प्रथा सिर्फ नाचने तक ही सीमित नहीं रही, रसूखदार लोग इन मासूमों को खरीदकर यौन शोषण भी करने लगे। एक रिपोर्ट के अनुसार, 2016 तक करीब 78 फीसदी वे अफगान लोग इस कुकर्म में शामिल थे, जो शादीशुदा थे और अपनी पत्नियों के साथ रह रहे थे।
इस कुप्रथा में गरीब तबके के बच्चों को फंसाया जाता है। उनके परिवारवालों को अच्छी पढ़ाई और पैसे का लालच दिया जाता है। जो परिवार नहीं मानता, उन्हें धमकाकर या जबरदस्ती उनसे उनके बच्चे छीन लिए जाते हैं।
मासूम लड़कों को बच्चा बेरिश बनाने के लिए चमकीले रंग-बिरंगे महिलाओं के कपड़े पहनाए जाते हैं। हाथों और पैरों में छोटी-छोटी चांदी की घंटियां लगाई जाती है ताकि जब वे नाचना शुरू करें तो घंटियां बजे और देखने वाले इनपर आकर्षित हों। कई लोग इसे अफगान संस्कृति का हिस्सा मानते हैं। हालांकि साल 2017 में अफगानिस्तान की तत्कालीन सरकार ने इस कुप्रथा को बंद करने का आदेश दिया था। उससे पहले इस पर उसके मानवाधिकार आयोग ने बाल यौन शोषण का मुद्दा उठाते हुए इसे बेहद घृषिण कार्य बताया था और सरकार से सिफारिश की थी कि इसमें पकड़े जाने वाले तो मौत की सजा सुनाई जाए।
कैसे सामने आया घिनौना सच
बात 2002 की है, जब तालिबान से रक्षा करने के लिए अमेरिकी सैनिकों की अफगानिस्तान में तैनाती थी। अफगान नेशनल पुलिस (ANP) के एक बड़े अफसर पर एक मासूम लड़के को अपने घर में तीन दिनों तक बेड़ियों में बांधने और लगातार यौन शोषण करने का आरोप लगा था। तब अमेरिकी सैनिकों ने परिवार की शिकायत पर अधिकारी के घर रेड की और बच्चे को बरामद किया। उस अधिकारी को बुरी तरह पीटा गया। हालांकि इस मामले में अमेरिकी सैनिक पर ही मुकदमा चला और बड़ी मुश्किल से वो दोषमुक्त हो पाया। इस घटना के बाद अमेरिकी सैनिकों ने भी इस कुप्रथा पर अंकुश लगाने के प्रयास छोड़ दिए।
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