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यूक्रेन-सीरिया के बाद आर्कटिक में खुला नया मोर्चा, रूस-चीन की जुगलबंदी ने अमेरिका की उड़ाई नींद

रिपोर्ट में कहा गया है कि आर्कटिक क्षेत्र में रूस का सहयोगी बन जाने से चीन की इस क्षेत्र में अभूतपूर्व पहुंच बन गई है, जो अमेरिका के लिए सामरिक दृष्टिकोण से खतरे की घंटी है। चीन लंबे समय से इस क्षेत्र में पहुंच बनाने की कोशिशों में जुटा था

Pramod Praveen लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीMon, 9 Dec 2024 03:02 PM
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एक तरफ रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध छिड़ा हुआ है तो दूसरी तरफ मध्य-पूर्व के देश सीरिया में तख्ता पलट से दुनिया भर में खलबली है। चीन यूक्रेन के खिलाफ लड़ाई में रूस की सैन्य और अन्य तरह से मदद कर रहा है। इस बीच चीन ने इस हालात का फायदा उठाकर आर्कटिक क्षेत्र में अपनी पैठ मजबूत करना शुरू कर दिया है। आर्कटिक क्षेत्र में चीन और रूस ने मिलकर सैन्य गतिविधियों को बढ़ा दिया है। इससे अमेरिका बेचैन हो उठा है। बता दें कि इस क्षेत्र पर रूस का पारंपरिक रूप से प्रभाव रहा है।

पेंटागन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने खुलासा किया है कि चीन रूस को यूक्रेन युद्ध में मदद पहुंचाकर आर्कटिक क्षेत्र में सैन्य गतिविधियों को बढ़ा रहा है। पिछले दो वर्षों में इस क्षेत्र में चीन और रूस ने संयुक्त सैन्य अभियान चलाए हैं, जिसमें युद्धपोतों, फाइटर जेट विमानों और तटरक्षक जहाजों के ज्वाइन्ट ड्रिल शामिल हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि जुलाई में, दोनों देशों ने अलास्का के निकट अंतर्राष्ट्रीय हवाई क्षेत्र में एक प्रमुख हवाई गश्त की, जिसमें दोनों देशों के चार सामरिक बमवर्षक विमानों ने चुक्ची और बेरिंग सागर के ऊपर उड़ान भरी।

सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज के रक्षा उप सहायक सचिव आइरिस ए फर्ग्यूसन ने एक रिपोर्ट में आर्कटिक क्षेत्र में रूस-चीन की बढ़ती साझेदारी का उल्लेख किया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पहली बार, चीनी और रूसी विमानों ने पूर्वोत्तर रूस में एक ही बेस से उड़ान भरी, जो परिचालन एकीकरण के एक नए स्तर का संकेत है। फर्ग्यूसन के मुताबिक, रूस-चीन की इस संयुक्त साझेदारी ने क्षेत्रीय भू-राजनीति में अहम बदलाव होने के संकेत दिए हैं क्योंकि यूक्रेन युद्ध की वजह से रूस यूरोप और पश्चिमी देशों से कट चुका है और इसी का फायदा चीन उठा रहा है।

फर्ग्यूसन ने कहा कि इस तरह के सहयोग की अनुमति देने की रूस की इच्छा ने उसकी आर्कटिक रणनीति को बदल दिया है। ऐतिहासिक रूप से, मॉस्को इस क्षेत्र में चीन की उपस्थिति की अनुमति देने के बारे में अलर्ट रहा है, जिसे वह "मुकुट के रत्नों में से एक" मानता है लेकिन बदलते वैश्विक परिदृश्य में चीन ने मास्को को इस क्षेत्र में अपना दखल बढ़ाने देने को मजबूर कर दिया है। यूरेशियन टाइम्स के मुताबिक, उन्होंने कहा, "सैन्य दृष्टिकोण से, यह नया और अनूठा है। मैं वास्तव में इस बात पर भी जोर देना चाहती हूं कि यह जरूरी नहीं कि एक गठबंधन हो जैसा कि हम पारंपरिक रूप से इसे एक गठबंधन के रूप में सोचते हैं।"

रिपोर्ट में कहा गया है कि आर्कटिक क्षेत्र में रूस का सहयोगी बन जाने से चीन की इस क्षेत्र में अभूतपूर्व पहुंच बन गई है, जो अमेरिका के लिए सामरिक दृष्टिकोण से खतरे की घंटी है। चीन लंबे समय से इस क्षेत्र में पहुंच बनाने की कोशिशों में जुटा था क्योंकि ऐसा कर वह अमेरिका पर दवाब बनाना चाहता है। इतना ही नहीं आर्कटिक क्षेत्र में अहन नौवहन मार्ग होने की वजह से चीन की महत्वाकांक्षाएं इस इलाके में अपान प्रभुत्व बनाने के लिए जोर मार रही थी। अब वह हर पोत की निगरानी भी कर सकेगा।

इसके अलावा चीन की नजर इस क्षेत्र के संसाधनों पर है। आर्कटिक क्षेत्र तेल, गैस और समुद्री जीव समेत अन्य संसाधनों की वजह से भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा का केंद्र बना हुआ है। यह क्षेत्र ऐतिहासिक रूप से प्रमुख शक्तियों के बीच संघर्ष के एक संभावित फ्लैशपॉइंट के रूप में भी जाना जाता रहा है। पिघलती बर्फ के कारण इस क्षेत्र में नई संभावनाओं ने सामरिक और व्यापारिक महत्व को बढ़ा दिया है।

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