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अनिल विज कई बार के विधायक थे, तब नायब सैनी की हुई थी राजनीति में एंट्री; 15 साल में सब बदला

  • नायब सिंह सैनी 2009 में नारायणगढ़ विधानसभा सीट से उतरे थे, लेकिन उन्हें पराजय मिली थी और जमानत तक जब्त हो गई थी। अब हालात ऐसे हैं कि वह दूसरी बार सीएम पद की शपथ ले चुके हैं। वहीं अनिल विज, घनश्याम दास अरोड़ा जैसे दिग्गज नेता उनकी सरकार में मंत्री के तौर पर शामिल हैं।

Surya Prakash लाइव हिन्दुस्तान, चंडीगढ़Thu, 17 Oct 2024 01:42 PM
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राजनीति और क्रिकेट को उलटफेर वाला गेम कहा जाता है। कब किसका सितारा बुलंद हो जाए और किसके सितारे गर्दिश में जाएं, यह अनुमान से परे होता है। कुछ ऐसी ही कहानी हरियाणा के सीएम पद की दूसरी बार शपथ लेने वाले नायब सिंह सैनी की भी है। वह 2009 में नारायणगढ़ विधानसभा सीट से भी उतरे थे, लेकिन उन्हें पराजय मिली थी और जमानत तक जब्त हो गई थी। अब हालात ऐसे हैं कि वह दूसरी बार सीएम पद की शपथ ले चुके हैं। वहीं अनिल विज, घनश्याम दास अरोड़ा जैसे दिग्गज नेता उनकी सरकार में मंत्री के तौर पर शामिल हैं।

नायब सिंह सैनी का सफर इसलिए भी दिलचस्प है कि उनकी राजनीति में एंट्री उसी अंबाला से हुई थी, जहां अनिल विज लगातार जीतते रहे हैं। 1996 में नायब सिंह सैनी तत्कालीन आरएसएस प्रचारक मनोहर लाल खट्टर के संपर्क में आए थे। इसके बाद वह राजनीति में आगे बढ़ते गए। उन्हें 2002 में अंबाला जिले में भाजपा युवा मोर्चा का सचिव बनाया गया था। यह वह दौर था, जब अनिल विज लगातार कई बार विधायक रह चुके थे। इससे समझा जा सकता है कि अनिल विज कितने सीनियर नेता हैं। वह पहली बार 1990 में सुषमा स्वराज के इस्तीफे के बाद अंबाला से उतरे थे और फिर लगातार वहीं से जीतते रहे। बस 2005 का चुनाव उनके लिए अपवाद रहा था, जब अनिल विज हारे थे।

सैनी के पिता फौज में थे और 1962 एवं 1971 की जंग में भी हिस्सा लिया था। लॉ ग्रैजुएट नायब सिंह सैनी को मनोहर लाल खट्टर का वफादार माना जाता है। 1996 से ही यानी बीते 28 सालों से उनका खट्टर से नाता है। यही वजह है कि जब खट्टर इसी साल मार्च में सीएम पद से हटे तो उनकी ही सिफारिश पर सैनी को कमान सौंपी गई। माना जा रहा था कि यह चुनाव बेहद कठिन रहेगा और भाजपा सरकार की विदाई हो सकती है। लेकिन बड़े उलटफेर के साथ भाजपा ने सरकार बनाई। इस तरह वह दूसरी बार मुख्यमंत्री बने हैं।

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वह 2002 में भाजपा युवा मोर्चा के जिला सचिव बने थे। फिर युवा मोर्चा के ही जिलाध्यक्ष बने और बाद में अंबाला जिले के अध्यक्ष भी रहे। इस तरह उनका संगठन में लगातार प्रमोशन होता रहा। 2009 में नारायणगढ़ से लड़े तो जमानत ही जब्त हो गई थी, लेकिन उसी सीट से 2014 में बड़ी जीत पाई। इसी दौर में लंबे समय तक वह प्रदेश महासचिव भी रहे और फिर मनोहर लाल खट्टर सरकार के दौर में ही उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। इसके बाद 2019 में सांसद चुने गए तो इसी साल मार्च में करनाल विधानसभा से उपचुनाव में जीतकर मुख्यमंत्री बने। अब उन्हें फिर से सीएम बनने का मौका मिला है। इस तरह 2009 की हार से अब तक यानी 2024 तक उन्होंने लंबा सफर तय किया है।

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