आधी आबादी को कमान का इंतजार, हरियाणा को अबतक मिलीं 87 महिला विधायक; कभी कोई महिला नहीं बनीं CM
हरियाणा में 5 अक्टूबर को विधानसभा चुनाव के लिए वोट डाले जाएंगे। वहीं 8 अक्टूबर को मतों की गिनती होगी। इसी बीच अगर आप विधानसभा चुनाव के दावेदारों पर नजर डालेंगे तो पता चलेगी की यहां पुरुषों का दबदबा है। चुनाव में केवल 51 महिला उम्मीदवारों को टिकट मिला है।
हरियाणा में 5 अक्टूबर को विधानसभा चुनाव के लिए वोट डाले जाएंगे। वहीं 8 अक्टूबर को मतों की गिनती होगी। यानी कुल मिलाकर सभी पार्टियां जोर-शोर से चुनाव में जुटी हुई हैं और सभी वोटर्स को लुभाने की पूरी कोशिश कर रही हैं। इसी बीच अगर आप विधानसभा चुनाव के दावेदारों पर नजर डालेंगे तो पता चलेगी की यहां पुरुषों का दबदबा है। चुनाव में केवल 51 महिला उम्मीदवारों को टिकट मिला है। इनमें से ज्यादार या तो किसी राजनीतिक परिवार से हैं या फिर सेलिब्रिटी हैं।
1966 में बना अलग राज्य
हरियाणा राज्य 1966 में पंजाब से अलग होकर अस्तित्व में आया था। यहां लिंगानुपात में असमानता की वजह से केवल 87 महिलाएं ही विधानसभा पहुंची हैं। हरियाणा की कमान कभी किसी महिला के हाथ में नहीं आई। उम्मीदवारों की सूची के विश्लेषण से पता चलता है कि मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने 12 महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है, जो इन चुनावों में सभी पार्टियों के मुकाबले सबसे ज्यादा है। गठबंधन में चुनाव लड़ रहे इंडियन नेशनल लोकदल (आईएनएलडी) और बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) ने संयुक्त रूप से 11 महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है, जबकि सत्तारूढ़ भाजपा ने केवल 10 महिलाओं पर भरोसा जताया है।
आप ने 10 महिलाओं को दिया टिकट
जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) और आजाद समाज पार्टी (एएसपी) का गठबंधन 85 सीटों पर चुनाव लड़ रहा है। उन्होंने सिर्फ आठ महिलाओं को टिकट दिया है। जबकि आप की 90 उम्मीदवारों की सूची में 10 महिलाएं हैं। हरियाणा विधानसभा के रिकार्ड पर नजर डालें तो साल 2000 से अबतक के पांच विधानसभा चुनावों में कुल 47 महिलाएं विधायक बनी हैं। हरियाणा अपने असमान लिंगानुपात के लिए जाना जाता है। यहां 2023 में प्रति 1,000 लड़कों पर 916 लड़कियों का जन्म हुआ।
2014 में सबसे ज्यादा महिलाएं जीतीं
2019 के चुनावों में, 104 महिला उम्मीदवार मैदान में उतरी थीं, जिनमें निर्दलीय उम्मीदवार भी शामिल थीं। 2014 के चुनावों में सबसे ज्यादा महिला उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की थी। तब 13 महिलाओं को जीत मिली थी। 2019 के चुनावों में यह संख्या घटकर नौ रह गई। 90 सदस्यीय हरियाणा विधानसभा के लिए चुनाव पांच अक्टूबर को होंगे और नतीजे 8 अक्टूबर को घोषित किए जाएंगे।
पूर्व सीएम की पोती भी मैदान में उतरीं
इस बार मैदान में केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह की बेटी आरती सिंह राव हैं, जो भाजपा के टिकट पर अटेली से अपना पहला चुनाव लड़ रही हैं। पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल की पोती श्रुति चौधरी, जो इस साल की शुरुआत में कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुई थीं, तोशाम से मैदान में हैं। चार बार की कांग्रेस विधायक और राज्य की पूर्व शिक्षा मंत्री गीता भुक्कल ने पीटीआई को बताया कि कांग्रेस ने अन्य पार्टियों की तुलना में सबसे ज्यादा महिला उम्मीदवारों पर भरोसा जताया है। उन्होंने कहा, 'संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने वाला विधेयक पारित किया गया, लेकिन इसे 2029 में लागू किया जाएगा, जो महिलाओं के साथ एक मजाक है।' भुक्कल झज्जर से चुनाव लड़ रही हैं।
चुनावी अखाड़े में उतरीं विनेश फोगाट
जींद जिले के जुलाना से कांग्रेस ने विनेश फोगट को टिकट दिया है। वह कुश्ती की दिग्गज खिलाड़ी हैं, जो यौन उत्पीड़न के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का चेहरा बनीं और पेरिस 2024 ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने से चूक गईं। इससे आहत होकर उन्होंने संन्यास का ऐलान कर दिया और कांग्रेस में शामिल हो गईं। उनका मुकाबला आप की कविता दलाल से है, जो डब्ल्यूडब्ल्यूई में भाग लेने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान हैं। चुनाव लड़ने वाली सबसे प्रमुख महिला एशिया की सबसे अमीर महिला और ओपी जिंदल समूह की चेयरपर्सन सावित्री जिंदल हैं।
अनिल विज वर्सेज चित्रा सरवारा
जिंदल को भाजपा से टिकट मिलने की उम्मीद थी। अब 74 साल की बिजनेसवूमेन निर्दलीय के तौर पर चुनावी मैदान में उतरी हैं। उनका मुकाबला हरियाणा के मंत्री और मौजूदा हिसार विधायक कमल गुप्ता से है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के विश्वासपात्र निर्मल सिंह की बेटी चित्रा सरवारा कांग्रेस से टिकट नहीं मिलने पर अंबाला छावनी सीट से निर्दलीय के रूप में मैदान में उतरी हैं। सरवारा ने कांग्रेस द्वारा टिकट देने से इनकार किए जाने के बाद 2019 का चुनाव भी निर्दलीय के रूप में लड़ा और 44,000 से ज्यादा वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रही थीं।
हालांकि इस बार सरवारा का मुकाबला भाजपा के अनिल विज से है, जो छह बार के विधायक और पूर्व गृह मंत्री हैं। कांग्रेस के परविंदर सिंह पारी भी उनके खिलाफ मैदान में हैं। आप की राबिया किदवई मुस्लिम बहुल नूंह की पहली महिला उम्मीदवार हैं। किदवई का राजनीतिक इतिहास भी काफी पुराना है, क्योंकि वह हरियाणा के 13वें राज्यपाल अखलाक-उर-रहमान किदवई की पोती हैं। हरियाणा के सबसे बड़े निर्वाचन क्षेत्र बादशाहपुर में कुमुदनी राकेश दौलताबाद निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर उतरी हैं। उनके पति राकेश दौलताबाद ने 2019 में इस सीट से निर्दलीय के तौर पर चुनाव जीता था। इस साल की शुरुआत में दिल का दौरा पड़ने से उनकी मौत हो गई।
महिलाओं को कम ही मिला प्रतिनिधित्व
अशोका यूनिवर्सिटी के त्रिवेणी सेंटर फॉर पॉलिटिकल डेटा (टीसीपीडी) की एक स्टडी के अनुसार, हरियाणा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व हमेशा से ही चिंता का विषय रहा है, क्योंकि राज्य में महिलाओं के खिलाफ पक्षपात और अपराध का रहा इतिहास है। इसके अलावा लिंग-संबंधी अनुपात में भी असमानता देखी गई है। स्टडी में कहा गया है, 'पिछले कुछ सालों में विधानसभा चुनावों में महिला उम्मीदवारों की बढ़ती संख्या और वर्ष 2000 से लेकर 2019 तक राज्य चुनावों में पुरुषों को मात देने की उनकी क्षमता हरियाणा की राजनीति में महिलाओं के लिए एक सकारात्मक पहलू है। ये और बात है कि इस अवधि में निर्वाचित महिला विधायकों में से कई संपन्न राजनीतिक परिवारों से थीं, जिसपर गौर करें तो परिस्थितियां ज्यादा नहीं बदलीं।'
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