'अगर पुलिस आपराधिक मुकदमों से मुक्त नहीं, तो वकील...'; गुजरात हाईकोर्ट का अहम फैसला
गुजरात हाईकोर्ट ने सूरत के वकील के खिलाफ ट्रैफिक पुलिस कॉन्स्टेबल द्वारा दर्ज कराई की गई एफआईआर रद्द करने से इनकार कर दिया है। वकील ने हाईकोर्ट में एक आवेदन दायर कर शिकायत रद्द करने की मांग की थी।
गुजरात हाईकोर्ट ने सूरत के वकील और सोशल वर्कर मेहुल बोगरा के खिलाफ ट्रैफिक पुलिस कॉन्स्टेबल द्वारा दर्ज कराई की गई एफआईआर रद्द करने से इनकार कर दिया है। इस मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस निरजर देसाई ने कहा, "अगर पुलिस आपराधिक अभियोजन से मुक्त नहीं है, तो वकील भी इससे मुक्त नहीं हैं।" बोगरा ने हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर एफआईआर रद्द करने की मांग की थी।
द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, बोगरा का कथित तौर पर यातायात प्रबंधन के लिए तैनात पुलिस कर्मियों के साथ अक्सर टकराव होता रहा है, जिन्हें अभी तक नियमित पुलिस कैडर में शामिल नहीं किया गया है।
ट्रैफिक पुलिस कर्मियों द्वारा कथित तौर पर की गई पिटाई के बाद सूरत के वकीलों द्वारा बोगरा के समर्थन में लामबंद होने के बाद विवाद और बढ़ गई था। बता दें कि, फरवरी में, पुना गाम पुलिस ने बोगरा पर गैरकानूनी तरीके से एकत्र होने, दंगा करने, पुलिस के काम में बाधा डालने और अधिकारियों के खिलाफ अपमानजनक शब्द कहने का मामला दर्ज किया था।
बोगरा ने एफआईआर रद्द करने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। गुरुवार को जब उनकी याचिका पर सुनवाई हुई तो जस्टिस निरजर देसाई ने कहा, "मैंने इस नाम को कम से कम 15 बार अखबारों में देखा है। हर बार ऐसी घटनाएं सिर्फ आपके साथ ही क्यों होती हैं? क्या आप ध्यान आकर्षित करने के लिए या पब्लिसिटी के भूखे हैं? आप पुलिस विभाग से जुड़े मामलों के अलावा कोई और मामला क्यों नहीं उठाते?"
बोगरा की मंशा पर सवाल उठाने के बाद जज ने स्पष्ट किया कि हालांकि कोर्ट ने पुलिस विभाग के खिलाफ आरोप लगाने वाली कुछ याचिकाओं पर विचार किया है, लेकिन आरोपों की प्रकृति, याचिकाकर्ताओं और उनके अतीत पर विचार किए बिना वह किसी मामले पर विचार नहीं करेगा।
बोगरा के वकील ने हाईकोर्ट में दलील दी कि बोगरा पर हमला किया गया था और उन्होंने पुलिस के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी, लेकिन पुलिस ने भी उनके खिलाफ “ढाल के तौर पर” एफआईआर दर्ज कर ली।
बोगरा को किसी भी तरह की राहत देने से इनकार करते हुए जज ने कहा, “सिर्फ इसलिए कि आप एक वकील और एक सोशल वर्कर हैं, क्या इसका मतलब यह है कि आपको कुछ भी करने का लाइसेंस मिल गया है? मुकदमे का सामना करें।”
हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद बोगरा के वकील ने अपनी याचिका वापस ले ली।
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