धार्मिक नहीं, नैतिक हैं भगवद्गीता की शिक्षाएं; गुजरात हाईकोर्ट ने किस याचिका पर ऐसा कहा
गुजरात हाईकोर्ट ने गुरुवार को कहा कि भगवद् गीता की शिक्षाएं मूल रूप से नैतिक और सांस्कृतिक हैं, धार्मिक नहीं। कोर्ट ने यह टिप्पणी स्कूलों में भगवद् गीता की शिक्षाओं को शामिल करने के राज्य सरकार के प्रस्ताव को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए कही।
गुजरात हाईकोर्ट ने गुरुवार को कहा कि भगवद् गीता की शिक्षाएं मूल रूप से नैतिक और सांस्कृतिक हैं, धार्मिक नहीं। कोर्ट ने यह टिप्पणी स्कूलों में भगवद् गीता की शिक्षाओं को शामिल करने के राज्य सरकार के प्रस्ताव को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए कही। याचिकाकर्ताओं के वकील ने तर्क दिया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में कहा गया है कि धर्मनिरपेक्षता की भावना में सभी धर्मों के सिद्धांतों को पढ़ाया जाना चाहिए और राज्य को ऐसा कोई प्रस्ताव जारी करने का अधिकार नहीं है क्योंकि पाठ्यक्रम के लिए विशिष्ट प्राधिकारी मौजूद हैं।
इसपर अदालत ने कहा कि राज्य सरकार की पहल केवल शिक्षाओं को शुरू करने के लिए है। मामले पर कुछ देर तक सुनवाई के बाद अदालत ने इसे अगले महीने के लिए सूचीबद्ध कर दिया है। चीफ जस्टिस सुनीता अग्रवाल और जस्टिस प्रणव त्रिवेदी की पीठ ने राज्य सरकार के शिक्षा विभाग द्वारा जारी 2022 के प्रस्ताव के खिलाफ एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में 'एकेडमिक इयर 2022-23 से कक्षा 6 से 12 तक के छात्रों के लिए गीता के मूल्यों और सिद्धांतों का सीखना अनिवार्य किया गया है।'
याचिकाकर्ता संगठनों- जमीयत उलमा-ए-हिंद गुजरात और जमीयत उलमा वेलफेयर ट्रस्ट ने भी प्रस्ताव पर रोक लगाने की मांग करते हुए कोर्ट में एक आवेदन दायर किया था। याचिकाकर्ता के वरिष्ठ वकील ने दलील दी कि मुख्य याचिका सरकार के प्रस्ताव को चुनौती देते हुए दायर की गई है, जिसमें स्कूलों की पढ़ाई में भगवद् गीता और उसके श्लोकों एवं प्रार्थनाओं के सिद्धांतों को शामिल करने का आदेश दिया गया है।
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