ऑपरेशन सिंदूर: तय टारगेट को ऐसे तबाह करती हैं मिसाइलें, जानें पीछे की पूरी टेक्नोलॉजी
भारतीय सेना ने पाकिस्तान में करीब 9 आतंकी ठिकानों पर मिसाइल अटैक किया है। आइए आपको बताते हैं कि मिसाइलें किसी टारगेट को सटीकता से कैसे निशाना बनाती हैं और इसके पीछे का साइंस क्या है।

बीते दिनों पहलगाम में पर्यटकों पर हुए आतंकी हमले की प्रतिक्रिया के तौर पर भारतीय सेना ने मंगलवार रात बड़ी कार्रवाई करते हुए 'ऑपरेशन सिंदूर' को अंजाम दिया है। बिना अंतरराष्ट्रीय सीमा या LOC का उल्लंघन किए भारत ने पाकिस्तान में 9 आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया और मिसाइलों के अटैक में दर्जनों आतंकियों को मार गिराया गया है। ऐसे में कई लोग समझना चाहते हैं कि कैसे कई किलोमीटर दूर से मिसाइलें तय ठिकाने को सटीकता से तबाह कर सकती हैं। आइए इसके पीछे की पूरी टेक्नोलॉजी विस्तार से समझते हैं।
मिसाइल में होते हैं चार मुख्य हिस्से
युद्ध की स्थिति में इस्तेमाल की जाने वाली मिसाइलों को इस तरह तैयार किया जाता है कि वे टारगेट को निशाना बनाने के बाद ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचा सकें। इस ऑटोमेटेड वेपन के चार मुख्य हिस्से होते हैं। पहले प्रपल्शन सिस्टम के साथ इसे गति मिलती है और दूसरा गाइडेंस सिस्टम रास्ता दिखाता है और इसे टारगेट तक पहुंचाने का काम करता है।
तीसरा हिस्सा कंट्रोल सिस्टम होता है, जो मिसाइल की दिशा से लेकर ऊंचाई को नियंत्रित करता है। इसके अलावा आखिरी और सबसे जरूरी हिस्सा वारहेड होता है, जो टारगेट को नुकसान पहुंचाने का काम करता है। मिसाइल को उसके टारगेट तक पहुंचाने और सटीकता के लिए इसका गाइडेंस सिस्टम जिम्मेदार होता है।
पांच तरह का हो सकता है गाइडेंस सिस्टम
अलग-अलग साइज और टेक्नोलॉजी वाली मिसाइलें अलग-अलग तरह के गाइडेंस सिस्टम पर काम करती हैं। इनके बारे में आप नीचे विस्तार से पढ़ सकते हैं।
1. इनर्शियल गाइडेंस सिस्टम: गाइडेंस का यह तरीका मिसाइल में लगे सेंसर्स- जायरोस्कोप या एक्सेलोमीटर वगैरह का इस्तेमाल करता है। ये सेंसर तय करते हैं कि मिसाइल की रफ्तार, टारगेट से दूरी और दिशा क्या है। यह सिस्टम बिना किसी बाहरी सहायता के भी काम कर सकता है।
2. GPS बेस्ड गाइडेंस: मिसाइल में GPS रिसीवर लगाया जाता है, जो सैटेलाइट्स से मिलने वाले सिग्नल के आधार पर लोकेशन को ट्रैक करता है। लंबी दूरी के लिए यह तरीका सबसे कारगर है और भारत की कई मिसाइलें भी इस गाइडेंस सिस्टम की मदद लेती हैं।
3. ऐक्टिव रडार होमिंग: कुछ मिसाइलों में पहले से ही एक छोटा रडार लगा होता है, जो टारगेट से टकराकर लौटने वाले सिग्नल्स के आधार पर उसकी पोजीशन का पता लगाता है। यह गाइडेंस सिस्टम हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलों में इस्तेमाल किया जाता है।
4. पैसिव होमिंग: बेहद काम की यह गाइडेंस टेक्नोलॉजी टारगेट से निकलने वाली गर्मी (उदाहरण के लिए इंजन की हीट) या रेडियो सिग्नल्स को निशाना बनाती है। इंफ्रारेड गाइडेड मिसाइल इसी गाइडेंस सिस्टम का इस्तेमाल करती हैं।
5. लेजर गाइडेंस: ज्यादा दूरी पर अटैक ना करना हो तो इसका इस्तेमाल किया जाता है। इसमें टारगेट पर लेजर बीम डाली जाती है और मिसाइल इसी बीम को फॉलो करते हुए अटैक करती है। टारगेट लॉक करने का काम जमीन पर मौजूद बेस या फिर ड्रोन से किया जा सकता है।
आखिर में लॉक किया जाता है टारगेट
मिसाइल लॉन्च होने से पहले या फिर इस दौरान कंप्यूटर सिस्टम में टारगेट की लोकेशन सेट की जाती है और उसे लॉक कर दिया जाता है। जब टागरेट की एकदम सटीक लोकेशन पता हो, तो प्री-लॉन्च लॉक कर दिया जाता है और सही को-ऑर्डिनेट्स मिसाइल में फीड किए जाते हैं। वहीं, अगर अचानक टारगेट की पोजीशन में बदलाव की संभावना हो तो मिसाइल खुद उसकी पहचान कर सकती है और पोस्ट-लॉन्च टारगेट एक्विजिशन किया जाता है।
सेना ने किया इन एडवांस्ड मिसाइलों का इस्तेमाल
भारत ने SCALP (Storm Shadow) का इस्तेमाल किया है, जो 250 किलोमीटर की रेंज तक टारगेट को निशाना बना सकती है और यह लॉन्ग रेंज मिसाइल हवा से लॉन्च की जाती है। इसके अलावा सेना ने HAMMER (Highly Agile Modular Munition Extended Range) स्मार्ट बम यूज किया है, जो 50 से 70 किलोमीटर तक की रेंज में टारगेट को खत्म कर सकता है। यह भी एक प्रिसिजन-गाइड (जिसमें पहले से टारगेट सेट किया जा सके) वेपन है।
बता दें, ऑपरेशन सिंदूर में प्री-लॉन्च लॉक सिस्टम इस्तेमाल किया गया और सभी ठिकानों की लोकेशन का पता पहले ही लगा लिया गया था। एडवांस्ड मिसाइलें अब AI की मदद ले रही हैं और ऑटोनॉमस होती हैं। ये असली और नकली टारगेट में फर्क कर सकती हैं और खुद टारगेट की पहचान करने में भी सक्षम हैं।
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