Hindi Newsगैजेट्स न्यूज़here is why smartphones use many camera lenses and how does the multi camera setup work

Explained: स्मार्टफोन में क्यों मिलते हैं एक से ज्यादा कैमरा लेंस? कैसे काम करता है मल्टी-कैमरा सेटअप

लेटेस्ट स्मार्टफोन्स में यूजर्स को एक से ज्यादा कैमरा लेंस मिलते हैं। अगर आपको नहीं समझ आता कि फोन में कई लेंस मिलने की जरूरत क्या है तो आइए समझाते हैं कि मल्टी कैमरा सेटअप कैसे काम करता है।

Pranesh Tiwari लाइव हिन्दुस्तानMon, 13 Jan 2025 10:21 PM
share Share
Follow Us on

बदलते वक्त के साथ स्मार्टफोन केवल एक कॉलिंग डिवाइस नहीं, बल्कि एक मल्टीमीडिया हब बन चुके हैं। इनमें फोटोग्राफी और कैमरा एक बेहद जरूरी फीचर है और इसे बेहतर बनाने के लिए कंपनियां कई साल से मल्टी-कैमरा सेटअप इस्तेमाल कर रही हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि एक छोटे से फोन में कई कैमरे क्यों होते हैं? या फिर क्या एक ही कैमरा काफी नहीं है? आइए जानते हैं कि मल्टी-कैमरा सेटअप कैसे काम करता है, इसके फायदे क्या हैं और ये कैसे हमारे फोटोग्राफी एक्सपीरियंस को बेहतर बनाता है।

स्मार्टफोन में इसलिए मिलते हैं कई कैमरे

किसी भी स्मार्टफोन में जगह की कमी एक बड़ा चैलेंज होती है और नए फोन पतले होते हैं। ऐसे में कैमरों के बड़े और भारी लेंस को इनमें फिट करना संभव नहीं होता। हाई क्वॉलिटी वाली फोटोज क्लिक करने के लिए अलग-अलग तरह के लेंस की जरूरत पड़ती है, जैसे कि वाइड-एंगल लेंस, टेलीफोटो लेंस और मैक्रो लेंस। चूंकि केवल एक सेंसर इन तीनों का काम नहीं कर सकता, इसलिए इन सभी लेंस को एक डिवाइस में शामिल करने का सबसे कारगर तरीका है, मल्टी-कैमरा सेटअप। यह टेक्नोलॉजी यूजर्स को अलग-अलग तरह के ऐसे शॉट्स क्लिक करने की सुविधा देती है, जो पहले सिर्फ प्रोफेशनल कैमरे के जरिए क्लिक किए जा सकते थे।

ये भी पढ़ें:ये हैं बेस्ट कैमरा वाले टॉप-10 स्मार्टफोन, Dxomark की ओर से मिली है रैंकिंग

यह है मल्टी-कैमरा सेटअप का फायदा

मल्टी-कैमरा सेटअप के कई फायदे हैं। सबसे पहले तो यह यूजर को अलग-अलग तरह के शॉट्स कैप्चर करने का विकल्प देता है। वाइड-एंगल लेंस से आप किसी बड़े एरिया को एक ही फ्रेम में कैप्चर कर सकते हैं, जैसे कि लैंडस्केप या ग्रुप फोटोग्राफी के लिए यह परफेक्ट है। वहीं टेलीफोटो लेंस के जरिए दूर के सबजेक्ट को बिना क्वॉलिटी-लॉस के जूम किया जा सकता है। यह फीचर खासकर तब काम आता है, जब किसी दूर के सबजेक्ट की साफ फोटो क्लिक करनी हो। इसी तरह मैक्रो लेंस हमें छोटे ऑब्जेक्ट्स की क्लोज-अप फोटोज कैप्चर करने में मदद करता है।

मिलती है सामान्य से बेहतर जूम क्षमता

कई लेंस के साथ मल्टी-कैमरा सेटअप यूजर्स को बेहतर जूम क्षमता भी ऑफर करता है। दरअसल ऑप्टिकल जूम, जो लेंस के फिजिकल स्ट्रक्चर के चलते से काम करता है, डिजिटल जूम की तुलना में कहीं बेहतर क्वॉलिटी देता है। डिजिटल जूम में किसी फोटो को क्रॉप करके बड़ा किया जाता है, जिससे उसकी क्वॉलिटी खराब हो जाती है। मल्टी कैमरा सेटअप में टेलीफोटो लेंस होने से ऑप्टिकल जूम मिलता है, जिससे बिना क्वॉलिटी खोए दूर की चीजें साफ देखी जा सकती हैं। वहीं, कुछ स्मार्टफोन हाइब्रिड जूम भी इस्तेमाल करते हैं, जो ऑप्टिकल और डिजिटल जूम दोनों को मिलाकर काम करता, जिससे और भी बेहतर जूम क्षमता मिल सकती है।

ये भी पढ़ें:Great Republic Day Sale: इन स्मार्टफोन्स पर सबसे बड़ा डिस्काउंट, टॉप-10 डील्स

बेहतर होती है लो-लाइट फोटोग्राफी

लो-लाइट फोटोग्राफी एक और एरिया है, जहां मल्टी कैमरा सेटअप काम का साबित होता है। कुछ स्मार्टफोन्स में मोनोक्रोम सेंसर होता है, जो सिर्फ ब्लैक एंड वाइट फोटोज क्लिक करता है। यह सेंसर कलर सेंसर्स की तुलना में ज्यादा लाइट कैप्चर कर सकता है, जिससे लो-लाइट में बेहतर फोटोज आती हैं। कुछ फोन्स में नाइट मोड जैसे फीचर्स भी होते हैं, जो मल्टिपल एक्सपोजर लेकर और उन्हें सॉफ्टवेयर की मदद से कंबाइन करते हुए लो-लाइट में बेहतर फोटो क्लिक कर पाते हैं।

 

multi camera setup

 

आखिर में पोर्ट्रेट मोड एक और लोकप्रिय मोड है जो मल्टी कैमरा सेटअप के बिना संभव नहीं है। इस मोड में बैकग्राउंड को ब्लर किया जाता है, जिससे फोकस सबजेक्ट पर होता है और फोटो ज्यादा प्रोफेशनल लगती है। यह इफेक्ट डेप्थ सेंसर या मल्टिपल लेंस यूज करके हासिल किया जा सकता है। डेप्थ सेंसर किसी फोटो में डेप्थ इन्फॉर्मेशन कैप्चर करता है, जिससे सॉफ्टवेयर को पता चलता है कि बैकग्राउंड को कितना ब्लर करना है।

 

ये भी पढ़ें:दुनिया के 10 सबसे महंगे स्मार्टफोन, कीमत और खासियत जानकर रह जाएंगे हैरान

ऐसे काम करता है मल्टी-कैमरा सेटअप

मल्टी-कैमरा सेटअप में मिलने वाला हर लेंस एक खास मकसद के लिए दिया जाता है। जब यूजर कोई फोटो क्लिक करता है, तो हर लेंस एक अलग एंगल से उसे कैप्चर करता है और उसके जरिए अलग इन्फॉर्मेशन इकट्ठा की जाती है। फिर इन अलग-अलग फोटोज या लेयर्स को सॉफ्टवेयर की मदद से एक साथ जोड़ दिया जाता है। बिनिंग की यह प्रक्रिया इतनी तेजी से होती है कि इसका पता भी नहीं चलता। इमेज प्रोसेसिंग सॉफ्टवेयर यह तय करता है कि किस लेंस को किस स्थिति में यूज करना है। उदाहरण के लिए, अगर यूजर वाइड-एंगल शॉट ले रहा है तो सॉफ्टवेयर वाइड-एंगल लेंस यूज करेगा। वहीं, अगर वह जूम कर रहा है तो टेलीफोटो लेंस प्रभावी हो जाता है।

अलग-अलग तरह के लेंस के अलावा कुछ स्मार्टफोन्स में अलग-अलग तरह के सेंसर्स भी होते हैं। सेंसर कैमरा का वह हिस्सा होता है जो रोशनी को डिजिटल डाटा में बदलता है। ये अलग-अलग सेंसर अलग-अलग क्वॉलिटी की फोटोज ले सकते हैं। कुछ सेंसर ज्यादा लाइट कैप्चर कर सकते हैं, जिससे लो-लाइट में बेहतर फोटोज आती हैं। वहीं कुछ सेंसर ज्यादा रेजॉल्यूशन वाली फोटो क्लिक करते हैं, जिनमें ज्यादा बेहतर डीटेल्स होती हैं। इन सेंसर्स और लेंस के स्विच होने का यूजर को पता तक नहीं चलता और कई कैमरा लेंस मिलकर एक बेहतरीन कैमरा की तरह काम करते हैं।

फिलहाल, स्मार्टफोन मेकर्स के बीच कैमरा टेक को बेहतर बनाने की होड़ लगातार देखने को मिल रही है, जिससे हमें आने वाले वक्त में और भी बेहतर कैमरा फीचर्स और इनोवेशंस देखने को मिल सकते हैं।

लेटेस्ट   Hindi News ,    बॉलीवुड न्यूज,   बिजनेस न्यूज,   टेक ,   ऑटो,   करियर , और   राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।

अगला लेखऐप पर पढ़ें