मैंने फोन किया और...सचिन की रिक्वेस्ट पर वानखेड़े में खेला गया था उनका आखिरी मैच, जानें क्या थी वजह
- मास्टर ब्लास्टर ने बताया कि उनकी मां ने कभी मैदान पर बैठकर उन्हें खेलते हुए नहीं देखा था, उस समय उन्हें स्वास्थ्य संबंधित दिक्कतें भी थी जिस वजह से वह किसी और स्टेडियम पर मैच नहीं देख सकती थी।
वानखेड़े स्टेडियम में वेस्टइंडीज के खिलाफ आखिरी टेस्ट मैच खेलकर जब ‘क्रिकेट के भगवान’ कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर ने इंटरनेशनल क्रिकेट को अलविदा कहा था तो उस समय हर किसी की आंखें नम थी। 24 साल के अपने लंबे करियर को सचिन वानखेड़े स्टेडियम में अपनी मां के सामने खत्म करना चाहते थे, इसके लिए उन्होंने उस समय के बीसीसीआई अध्यक्ष से रिक्वेस्ट भी की थी। सचिन तेंदुलकर ने यह किस्सा हाल ही में मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम की 50वीं एनिवर्सरी के दौरान सुनाया।
मास्टर ब्लास्टर ने बताया कि उनकी मां ने कभी मैदान पर बैठकर उन्हें खेलते हुए नहीं देखा था, उस समय उन्हें स्वास्थ्य संबंधित दिक्कतें भी थी जिस वजह से वह किसी और स्टेडियम पर मैच नहीं देख सकती थी। इस वजह से सचिन की रिक्वेस्ट पर उनका फेयरवेल मैच वानखेड़े स्टेडियम में खेला गया।
सचिन तेंदुलकर ने कहा, ‘‘जब वेस्टइंडीज के खिलाफ सीरीज के शेड्यूल का ऐलान हुआ था तो मैंने एन श्रीनिवासन (तत्कालीन बीसीसीआई अध्यक्ष) को फोन किया और अनुरोध किया कि क्या सीरीज का दूसरा और आखिरी मैच वानखेड़े में खेला जा सकता है क्योंकि मैं चाहता हूं कि मेरी मां मुझे अपना आखिरी मैच खेलते हुए देखें।’’
उन्होंने कहा, ‘‘मेरी मां ने उससे पहले कभी भी स्टेडियम आकर मुझे खेलते हुए नहीं देखा था। उस समय उनका स्वास्थ्य ऐसा था कि वह वानखेड़े को छोड़कर किसी अन्य स्थान पर नहीं जा सकती थी। बीसीसीआई ने बहुत शालीनता से उस अनुरोध को स्वीकार कर लिया और मेरी मां और पूरा परिवार उस दिन वानखेड़े में थे। आज जब मैंने वानखेड़े में कदम रखा, तो मैं उन्हीं भावनाओं का अनुभव कर रहा हूं।’’
तेंदुलकर ने कहा कि 2003 में वनडे वर्ल्ड कप फाइनल में पहुंचने के बाद भारत ने इस स्थान पर ही वर्ल्ड कप जीता था। उन्होंने वर्ल्ड कप जीतने के बाद साथी खिलाड़ियों के द्वारा कंधे पर उठाकर मैदान का चक्कर लगाने के बारे में कहा, ‘‘वह निस्संदेह मेरे जीवन का सबसे अच्छा क्षण था।’’
इस दौरान वहां मौजूद सुनील गावस्कर ने कहा कि जब भी वह स्टेडियम जाते हैं तो उन्हें ‘घरेलू मैदान पर आने’ का एहसास होता है।
उन्होंने कहा, ‘‘जब 1974 में वानखेड़े स्टेडियम बनाया गया था, तो हमारा ड्रेसिंग रूम नीचे था। जब हमने अभ्यास सत्र के लिए पहली बार मैदान में कदम रखा तभी इससे प्यार हो गया था।’’
उन्होंने कहा, ‘‘इससे पहले हम ब्रेबॉर्न स्टेडियम में खेलते थे। वह एक क्लब (क्रिकेट क्लब ऑफ इंडिया) का मैदान था। लेकिन यहां आकर ऐसा लगा जैसे यह मुंबई क्रिकेट का घरेलू मैदान है। जब भी मैं कमेंट्री के लिए आता हूं तो मुझे वही अहसास होता है। मेरा सीना गर्व से चौड़ा हो गया है।’’
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