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सचिन तेंदुलकर की ये सलाह पृथ्वी शॉ जैसे खिलाड़ियों के आएगी बड़े काम, जानिए क्या कह दिया

  • कोच आचरेकर की ट्रेनिंग में बिताए दिनों को याद करते हुए सचिन तेंदुलकर ने कहा कि जो खिलाड़ी उनसे कोचिंग ले चुके हैं, वे मैच के दौरान कभी तनाव में नहीं रहते थे। सचिन ने युवा क्रिकेटर्स से अपने किट पर गुस्सा ना उतारने की सलाह दी।

Himanshu Singh लाइव हिन्दुस्तानWed, 4 Dec 2024 05:49 PM
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भारतीय टीम के लिए खेल चुके पृथ्वी शॉ के लिए पिछले कुछ साल बेहद खराब गुजरे हैं। उनके बल्ले से रन नहीं निकल रहे हैं और गलत कारणों की वजह से वह सुर्खियों में भी रहे। पिछले महीने हुई आईपीएल नीलामी में मौजूद सभी 10 टीमों ने उनको नजरअंदाज किया और वह अनसोल्ड रहे। शॉ को लेकर हाल में कई दिग्गज क्रिकेटर्स ने अपनी प्रतिक्रिया दी है और उनका सपोर्ट करते हुए उन्हें वापसी के लिए प्रेरित किया है। भारत के महान क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर ने एक प्रोग्राम के दौरान उन जैसे तमाम युवाओं को खास सलाह दी है, जिससे वह अपने करियर में वो सब हासिल कर सकते हैं, जो वह चाहते हैं।

सचिन तेंदुलकर ने प्रतिष्ठित शिवाजी पार्क में महान कोच आचरेकर के स्मारक का अनावरण करने के बाद कहा, ''सर ने हमें अपने किट का सम्मान करना भी सिखाया, संन्यास लेने के बाद से, मैं कई खिलाड़ियों से कह चुका हूं और मैंने कई खिलाड़ियों को देखा है। जब वे अंदर जाते हैं (आउट होने के बाद) तो अपना बैट और अन्य चीजें फेंक देते हैं। उस बैट की वजह से तुम आज ड्रेसिंग रूम में बैठे हो। इसलिए इसे कभी न फेंके।''

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उन्होंने आगे कहा, ''मैं यहां कई युवा क्रिकेटर्स को देख सकता हूं, हमेशा याद रखिए, अपने किट को कभी भी मत फेंकना, चाहे वह बल्ला हो या ग्लव्स या कुछ और। हमेशा उसका सम्मान करें। उन्हें रखने के लिए एक जगह है, और यह वहीं होनी चाहिए। असफलता का गुस्सा अपने खुद के किट पर मत उतारें। सर ने हमें बचपन से यही ट्रेनिंग दिया है और हम बस इतना वादा कर सकते हैं कि हम उनका मैसेज अगली पीढ़ी तक पहुंचाएंगे। मैं यह काम उनकी तरह अच्छी तरह कर पाऊंगा या नहीं, मुझे नहीं पता। हममें से कोई भी उनके स्तर तक नहीं पहुंच सकता।"

उन्होंने कहा, ''उन्होंने हमें चीजों को महत्व देना सिखाया। हम रोलिंग करते थे, पानी छिड़कते थे, नेट्स लगाते थे और अभ्यास करते थे। उन्होंने हमें ट्रेनिंग दी।'' उन्होंने कहा, ‘‘सर अपनी आंखों से बहुत कुछ बता देते थे। हम उनकी भाव भंगिमा समझ जाते थे। उन्होंने मुझे कभी ‘अच्छा खेला’ नहीं कहा।''

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