महाभारत काल में छत्तीसगढ़ की इस पहाड़ी पर था पांडवों का डेरा, यहां होती है माता खल्लारी की पूजा, पांडव ने भी की थी यहां अराधना
छत्तीसगढ़ का वह दैव स्थान जहां पहाड़ी पर चड़कर पांडवों ने माता की पूजा की थी। छत्तीसगढ़ का खल्लारी मंदिर में नवरात्र के समय हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ लगी हुई है। यह मंदिर की अपनी एक अलग मान्यता है।
आज आपको बताते छत्तीसगढ़ के उस धार्मिक स्थल के बारे में जहां पांडवों में ऊंची पहाड़ी चड़कर माता के मंदिर में पूजा करने पहुंचे हुए थे। छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में स्थिल माता खल्लारी का मंदिर प्रसिद्ध मंदिर है। यह मंदिर ऊंची पहाड़ी पर स्थित है, कहा जाता है कि महाभारत काल के दौरान यहां पांडव पहुंचे हुए थे। यहां उन्होंने माता की पूजा भी की थी।
नवरात्र का पावन पर्व की शुरूआत हो गई है और राजमाता खल्लारी के दर्शन के लिए हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है। राजमाता खल्लारी का अपना एक अलग विशेष महत्व है। राजमाता खल्लारी का ये मंदिर छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिला मुख्यालय से करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर खल्लारी पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है। प्राचीन काल में इस स्थान को खलवाटिका के नाम से जाना जाता था। बतादें कि माता के दर्शन के लिए भक्तों को करीब 850 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है। लेकिन अब लोगों के सुविधा के लिए रोप-वे लगाया जा चुका है। जिसके माध्यम से लोग माता के दर्शन के लिए पहुंच रहें हैं। यहां श्रद्धालु अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए लोग दूर दूर से माता के दर्शन करने के लिए पहुंच रहें हैं। ऐसा माना जाता है कि जो दंपत्ति संतान सुख से वंचित हैं वह संतान प्राप्ति की मनोकामना के लिए ना सिर्फ माता के दर्शन करती हैं बल्कि यहां पर मनोकामना ज्योति प्रज्वलित कर जातें हैं।
खल्लारी माता मंदिर में प्रतिवर्ष शारदीय नवरात्र और चैत्र नवरात्र में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। नवरात्रि के दिनों में मंदिर में माता के दर्शन के लिए आसपास के भक्तों के साथ ही दूसरे राज्यों से भी लगभग 30 से 35 हजार श्रद्धालु हर रोज पहुंचते हैं। चैत्र पूर्णिमा के दिन खल्लारी में मेला महोत्सव का आयोजन किया जाता है। जिसमें लोग लाखों की संख्या में पहुंचते हैं। खल्लारी को प्राचीन काल में खलवाटिका के नाम से जाना जाता था, खालवाटिका हैंयवंश राजा ब्रह्मदेव की राजधानी थी। जिसका उल्लेख रायपुर और खल्लारी में मिले शिलालेख में मिलता है। राजा ब्रह्मदेव के शासन काल में चौदहवीं शताब्दी में 1415 ईस्वी में बनाया गया था। वहीं इतिहास में वर्णित यह स्थान अपनी वैभवशाली इतिहास के लिए जाना जाता है।
वहीं स्थानीय लोगों की मानें तो मां खल्लारी महासमुंद के बेमचा में निवास करती थी और माता यहां कन्या का रूप धारण करके खल्लारी में लगने वाले हाट बाजार में आती थी। इसी दौरान खल्लारी बाजार में आया एक बंजारा माता के रूप पर मोहित हो गया और उनका पीछा करते हुए पहाड़ी पर पहुंच गया। जिससे माता बुरी तरह से क्रोधित हो गई और उन्होंने बंजारे पर अपने शास्त्र से प्रहार किया जिससे वह बंजारा पत्थर में परिवर्तित हो गया जिसके बाद माता खुद भी वहां विराजमान हो गई।
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