कलमा पढ़ो, नहीं सुनाने पर रायपुर बिजनेसमैन को 13 साल की बेटी के सामने मारी गोली; परिवार की सरकार से क्या मांग
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकवादियों ने छत्तीसगढ़ के व्यवसायी दिनेश मिरानिया को उनकी 13 साल की बेटी के सामने ही तब गोली मार दी जब वह 'कलमा' पढ़ने में नाकाम रहे। मिरानिया रायपुर के रहने वाले थे।

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकवादियों ने छत्तीसगढ़ के व्यवसायी दिनेश मिरानिया को उनकी 13 साल की बेटी के सामने ही तब गोली मार दी जब वह 'कलमा' पढ़ने में नाकाम रहे। मिरानिया रायपुर के रहने वाले थे। 18 साल के बेटे शौर्य के मुताबिक जब उनके पिता और बहन बैसरन घाटी के मैदान में थे तभी आतंकवादी वहां पहुंचे। उन्होंने बताया कि आतंकवादियों ने उनके पिता से कलमा पढ़ने को कहा और जब वह ऐसा करने में विफल रहे तो उन्हें गोली मार दी गई।
दूसरे शख्स ने बचाई बहन की जान
शौर्य ने बताया कि ठीक ऐसा ही आतंकवादियों ने एक अन्य व्यक्ति के साथ किया। उन्होंने बताया कि इस दौरान कलमा पढ़ने में समर्थ एक व्यक्ति को जब आतंकवादियों ने छोड़ दिया तब उसने ही मेरी बहन की जान बचाई। दिनेश मिरानिया की पत्नी नेहा और बेटे शौर्य ने मंगलवार को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले में परिवार के साथ हुई भयावहता को याद किया। नेहा ने उम्मीद जताई है कि सरकार उनके पति को शहीद का दर्जा देगी।
ट्रैंपोलिन का आनंद लेना चाहती थी बहन
शौर्य ने पत्रकारों से कहा, "हम दोपहर में बैसरन घाटी के मशहूर घास के मैदान में थे और वहां से गुलमर्ग जाने की योजना थी। मेरी बहन ‘जिपलाइन’ की सवारी करना चाहती थी, इसलिए मैं उसे इसके शुरुआती प्वाइंट पर ले गया जो घास के मैदान के एंट्री गेट से बहुत दूर था। वहां वह डर गई और उसने यह कहते हुए मना कर दिया कि यह बहुत ऊंचा है। फिर उसने कहा कि मैं ‘ट्रैंपोलिन’ का आनंद लेना चाहती हूं। मैंने उसे पिता के पास जाने के लिए कहा जो ट्रैंपोलिन के पास खड़े थे और मैं खाने के काउंटर पर चला गया। मैंने उससे कहा कि हम कुछ खाने के बाद नीचे उतरेंगे।"
गोली चलने की आवाज पर ध्यान नहीं दिया
शौर्य ने बताया, "जब मैं काउंटर पर था तो मैंने पीछे से गोली चलने की आवाज सुनी लेकिन मैंने इस पर ध्यान नहीं दिया। फिर बगल में खड़े एक अंकल गोली लगने से गिर गए और उनके खून के छींटे मेरे चेहरे पर पड़े। इस दौरान किसी ने मुझे धक्का दिया और फिर मैं मेज के नीचे छिप गया। मैं रेंगता हुआ एंट्री गेट पर पहुंचा जहां टट्टू खड़े थे। मैं वहां इंतजार कर रहा था और अपने परिवार के सदस्यों को फोन करने की कोशिश कर रहा था। लेकिन फोन नहीं लग पा रहा था। कुछ देर बाद बहन से बात हुई तब उसने बताया कि पिताजी को गोली लगी है।"
कलमा नहीं पढ़ने पर मारी गोली
शौर्य ने बताया, "मेरी बहन ने मुझे बताया कि वह पिताजी के साथ थी, तभी एक बंदूकधारी वहां पहुंचा और उसने मेरे पिताजी से कलमा पढ़ने को कहा। मेरे पिताजी ऐसा नहीं कर सके। जैसे ही मेरे पिताजी ने अपनी टोपी और चश्मा निकाला, उन्हें आतंकवादियों ने गोली मार दी। मेरे पिताजी के पीछे खड़े एक अन्य व्यक्ति ने मेरी बहन को पकड़ लिया, लेकिन कलमा पढ़ने में विफल रहने पर उसे भी गोली मार दी गई। वहां मौजूद एक तीसरे व्यक्ति को आतंकवादियों ने इसलिए बख्श दिया, क्योंकि उसने कलमा पढ़ा था।"
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