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बलात्कारी के बच्चे को जन्म नहीं देना चाहती थी, HC पहुंची नाबालिग पीड़िता; क्या फैसला

छत्तीसगढ़ की एक नाबालिग रेप पीड़िता बलात्कारी के बच्चे को जन्म नहीं देना चाहती थी। जब उसने गर्भपात के लिए डॉक्टरों से संपर्क किया तो गर्भ की अवधि 24 सप्ताह से अधिक होने के कारण डॉक्टरों ने ऐसा करने से इंकार कर दिया। उसके बाद पीड़िता ने हाई कोर्ट में इसके लिए गुहार लगाई।

Subodh Kumar Mishra लाइव हिन्दुस्तान, रायपुरFri, 3 Jan 2025 06:45 PM
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छत्तीसगढ़ की एक नाबालिग रेप पीड़िता बलात्कारी के बच्चे को जन्म नहीं देना चाहती थी। जब उसने गर्भपात के लिए डॉक्टरों से संपर्क किया तो गर्भ की अवधि 24 सप्ताह से अधिक होने के कारण डॉक्टरों ने ऐसा करने से इंकार कर दिया। उसके बाद पीड़िता ने हाई कोर्ट में इसके लिए गुहार लगाई।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक नाबालिग रेप पीड़िता को उसके 24 सप्ताह 6 दिन के भ्रूण का गर्भपात कराने की अनुमति दे दी। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के जस्टिस विभू दत्त गुरु की एकल पीठ ने एक रेप पीड़िता की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि उसे बलात्कारी के बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने पीड़िता को उसके 24 सप्ताह 6 दिन के भ्रूण को खत्म करने की अनुमति दे दी। कोर्ट ने कहा कि बलात्कार की पीड़िता को यह तय करने की इतनी आजादी और अधिकार दिया जाना चाहिए कि उसे गर्भावस्था जारी रखनी चाहिए या उसे गर्भपात की अनुमति दी जानी चाहिए।

याचिकाकर्ता नाबालिग लड़की के साथ आरोपी ने जबरन यौन संबंध बनाए, जिससे वह गर्भवती हो गई। पीड़िता बलात्कार से पैदा हुए बच्चे को जन्म देने के लिए तैयार नहीं थी। उसने भ्रूण को खत्म करने की इजाजत देने की मांग करते हुए याचिका दायर की थी। कोर्ट ने 31 दिसंबर 2024 के एक आदेश में रायगढ़ के सिविल सर्जन से इस संबंध में एक रिपोर्ट मांगी थी। उस आदेश के अनुपालन में संबंधित प्राधिकारी ने पीड़िता का मेडिकल जांच कर कोर्ट के समक्ष रिपोर्ट प्रस्तुत किया।

शुरुआत में कोर्ट ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 की धारा 3 की जांच की। यह रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर्स द्वारा गर्भावस्था को समाप्त करने का प्रावधान करता है। इसमें सुचिता श्रीवास्तव और अन्य बनाम चंडीगढ़ प्रशासन मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित मिसालों का भी उल्लेख किया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने 22 साल की एक महिला को गर्भावस्था के 25वें से 26वें सप्ताह में गर्भपात की अनुमति दे दी थी, क्योंकि गर्भावस्था को जारी रखने से गर्भपात हो सकता है। अगर उसे गर्भपात की अनुमति दी जाती है तो उसके जीवन को कोई अतिरिक्त खतरा नहीं होगा।

इन सबसे ऊपर, जस्टिस गुरु ने एक्स बनाम प्रधान सचिव, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग, एनसीटी दिल्ली सरकार और अन्य के ऐतिहासिक मामले पर भी भरोसा किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से माना है कि प्रजनन स्वायत्तता, गरिमा और अनुच्छेद 21 के तहत गोपनीयता एक अविवाहित महिला को एक विवाहित महिला के समान, बच्चे को जन्म देने या नहीं देने के बारे में पसंद का अधिकार देती है।

मेडिकल रिपोर्ट से पता चला कि याचिकाकर्ता के गर्भ में 24 सप्ताह 6 दिन का भ्रूण था। इसके अलावा, यह कहा गया कि अगर उसे गर्भावस्था जारी रखने की अनुमति दी गई, तो उसका मानसिक स्वास्थ्य खराब हो सकता है। साथ ही प्रसव के बाद मानसिक बीमारी होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है।

इसलिए पीड़िता के हित में और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उसकी शारीरिक स्वायत्तता को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने माना कि उसे यह निर्णय लेने की स्वतंत्रता और अधिकार दिया जाना चाहिए कि क्या उसे गर्भावस्था जारी रखनी चाहिए या नहीं। मामले के तथ्यों के अनुसार याचिकाकर्ता की गर्भावस्था 24 सप्ताह का समय पार कर चुकी है और जब तक गर्भपात का निर्देश देने वाला न्यायिक आदेश उपलब्ध नहीं होता, तब तक डॉक्टरों के लिए गर्भपात के साथ आगे बढ़ना भी संभव नहीं होगा।

इसके बाद पीड़िता द्वारा बताई गई परिस्थितियों, उसकी गर्भकालीन आयु और न्यायिक उदाहरणों पर विचार करने के बाद कोर्ट ने आदेश दिया कि उसे किरोड़ीमल सरकारी जिला अस्पताल, रायगढ़ में (आईसीयू सुविधाओं के साथ) भर्ती कराया जाए। साथ ही याचिकाकर्ता के गर्भ को खत्म करने के लिए रजिस्टर्ड डॉक्टरों को नियुक्त करने का निर्देश दिया गया।

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