छत्तीसगढ़ लाएगा माओवादियों के आत्मसमर्पण की नई योजना, 12 लाख के इनामी नक्सलियों ने किया सरेंडर
गृह मंत्री अमित शाह ने साल 2026 तक देश को नक्सलियों की हिंसा से मुक्त करने का वादा किया है। इसी के चलते छत्तीसगढ़ सरकार माओवादियों के आत्मसमर्पण से जुड़ी नई योजना लाने वाली है। आज 12 लाख के इनामी नक्सलियों ने सरेंडर किया और इसके पीछे की एक वजह ये भी बताई…
गृह मंत्री अमित शाह बीते माह छत्तीसगढ़ के दौरे पर थे। तब उन्होंने कहा था कि राज्य सरकार नई योजना पर काम कर रही है। इससे भारत साल 2026 तक माओवादी हिंसा से मुक्त हो जाएगा। जानकारों ने बताया है कि सरकार आने वाले दो महीना में माओवादियों के लिए नई सरेंडर पॉलिसी (आत्मसमर्पण नीति) लाने वाली है, यानी हथियार और हिंसा छोड़कर सामान्य जीवन अपनाने की योजना। इन योजनाओं के जमीनी प्रभाव दिखने लगे हैं। आज ही छत्तीसगढ़ के कांकेर जिला में 12 लाख के इनामी नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया। इसके पीछे की वजह भी बताई है।
सरकारी योजनाओं से प्रेरित होकर किया समर्पण
पुलिस ने सूचना दी है कि छत्तीसगढ़ के कांकेर जिला में चार नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है। चारो पर 12 लाख रुपए का इनाम था। अधिकारियों ने बताया कि वे राज्य सरकार की नक्सली उन्मूलन नीति और कल्याणकारी योजनाओं से भी प्रभावित हैं।
कैंप में होगा माओवादियों का कायाकल्प
इस नीति में तीन साल तक के लिए माओवादी से प्रभावित इलाकों में रिहैबिलेशन कैंप यानी पुनर्वास शिविर लगाए जाएंगे। ये कैंप माओवादियों को सामान्य जीवन में दाखिल करने के लिए जरूरी सहायता दिलाएंगे,जैसे इन लोगों के कौशल विकास पर ध्यान दिया जाएगा।
जिला प्रशासन चलाएंगे ऐसे शिविर
एक अधिकारी ने नाम उजागर ना करने की शर्त पर बताया है कि नई नीति में तीन साल तक मासिक भत्ता देने का प्रावधान होगा। इसमें 3 साल तक 10000 रुपए मासिक वित्तीय सहायता मुहैया कराई जाएगी। हालांकि इससे पहले वाली नीतियों में भी इस तरह के प्रयास किए गए थे, लेकिन इस बार इसमें अधिक कठोरता से ध्यान दिया जाएगा। उन्होंने बताया कि जिला प्रशासन इन कैंपो को स्थापित और संचालित करेगा।
तत्काल अनुदान के बावजूद तीन साल का इंतजार
एक अन्य अधिकारी ने बताया कि हाई रैंक कैडर माओवादियों के आत्मसमर्पण करने पर 5 लाख रुपए दिए जाएंगे। वहीं मीडियम और लो रैंक कैडर वाले माओवादियों को 2.5 लाख रुपए तत्काल अनुदान के तौर पर दिए जाएंगे। हालांकि इसमें सरकार की एक शर्त है, इसकी वजह से पैसा व्यक्ति के हाथ में पहुंचने में तीन साल का समय लग जाता है। आत्मसमर्पण करने वाले माओवादी को नामित किए गए अधिकारी की देख-रेख में तीन साल गुजारने होंगे। इसके बाद आचरण और व्यवहार के आधार पर उसे पैसे दिए जाएंगे।
इसमें पीटीआई के इनपुट भी शामिल हैं।
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