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लाश के साथ सेक्स जघन्य लेकिन पॉक्सो के तहत रेप नहीं, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने ऐसा क्यों कहा?

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि किसी लाश के साथ यौन संबंध बनाना सबसे जघन्य कृत्यों में से एक है लेकिन ऐसी घटना में किसी को पॉक्सो एक्ट के तहत दुष्कर्म के आरोप में दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। जानें अदालत ने ऐसी टिप्पणी क्यों की…

Krishna Bihari Singh लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीMon, 23 Dec 2024 07:44 PM
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लाश के साथ सेक्स जघन्य लेकिन पॉक्सो के तहत रेप नहीं, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने ऐसा क्यों कहा?

आमतौर पर दुष्कर्म के आरोपियों को कड़ी सजाएं सुनाए जाते देखा जाता है लेकिन लाश के साथ यौन संबंध बनाने के एक मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के फैसले ने ध्यान खींचा है। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि किसी लाश के साथ यौन संबंध बनाना सबसे जघन्य कृत्यों में से एक है लेकिन यह अपराध अब समाप्त हो चुकी आईपीसी की धारा 376 या POCSO एक्ट के तहत नहीं आता है। इसके साथ ही अदालत ने नाबालिग की लाश के साथ दुष्कर्म के आरोप में दोषी को पॉक्सो में सजा नहीं देने के फैसले को कायम रखा। दोषी को दूसरे आरोपों में सात साल जेल की सजा सुनाई गई है।

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, यह वारदात 2018 की है जब छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में एक नौ साल की बच्ची की हत्या करने के बाद उसकी लाश से दुष्कर्म की वारदात हुई थी। पुलिस ने नीलकंठ उर्फ नीलू नागेश और नितिन यादव नाम के आरोपियों को गिरफ्तार किया था। आरोपी नीलू नागेश को गिरफ्तार कर के उसके खिलाफ हत्या एवं बच्ची की डेड बॉडी के साथ दुष्कर्म करने जैसे गंभीर आरोप लगाए थे। मामले में ट्रायल कोर्ट ने मुख्य आरोपी नितिन यादव को हत्या एवं अन्य आरोपों में उम्रकैद की सजा सुनाई थी।

ट्रायल कोर्ट ने नितिन यादव को दुष्कर्म, अपहरण और हत्या के आरोप में दोषी करार देते हुए उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई। वहीं नागेश को धारा 201 (साक्ष्य को गायब करना, गलत जानकारी देना) और 34 (साझा इरादे को आगे बढ़ाना) के तहत दोषी ठहराया गया। ट्रायल कोर्ट ने उसे पोक्सो एक्ट के तहत दुष्कर्म के आरोपों से बरी कर दिया लेकिन सबूत मिटाने के लिए उसको सात साल कैद की सजा सुनाई। इसके बाद अपील के तहत केस हाईकोर्ट पहुंचा।

नागेश की ओर से दलील में कहा गया कि आरोपी लाश के साथ दुष्कर्म (नेक्रोफीलिया) में लिप्त था। वहीं अभियोजन पक्ष ने अपनी दलील में कहा कि भले ही भारतीय कानून आईपीसी की धारा 376 के तहत लाश के साथ यौन संबंध को दुष्कर्म के रूप में वर्गीकृत नहीं करता है लेकिन संविधान के अनुच्छेद 21 में सम्मान के साथ मरने का अधिकार सुरक्षित है। यह अधिकार मृत्यु के बाद डेड बॉडी यानी लाश के साथ भी किए जाने वाले व्यवहार से भी संबंधित है।

इन दलीलों पर मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और जस्टिस बिभु दत्ता गुरु की पीठ ने कहा- अभियोजन पक्ष ने यह साबित कर दिया है कि दोनों आरोपी दोषी थे। इसके साथ ही बेंच ने दोषियों की संबंधित सजा को बरकरार रखा। अदालत ने कहा कि आज की तारीख में उक्त आरोपी को आईपीसी की धारा 363, 376 (3) पोक्सो अधिनियम 2012 की धारा 6 और 1989 के अधिनियम की धारा 3(2)(v) के तहत दंडनीय अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता है क्योंकि दुष्कर्म का अपराध डेड बॉडी के साथ किया गया था।

उच्च न्यायालय ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि आरोपी नीलकंठ उर्फ ​​नीलू नागेश का लाश के साथ दुष्कर्म किया जाना सबसे जघन्य अपराधों में से एक है। लेकिन आईपीसी की धारा 363, 376 (3) पोक्सो अधिनियम 2012 की धारा 6 और 1989 के अधिनियम की धारा 3(2)(v) के तहत अपराध के लिए दोषी ठहराए जाने के लिए पीड़िता का जीवित होना जरूरी है। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने नीलू नागेश को पोक्सो एक्ट के तहत दुष्कर्म के आरोपों से बरी किए जाने के फैसले को बरकरार रखा।

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