Hindi Newsकरियर न्यूज़School fees issue: Child education should not be affected - High Court

स्कूल फीस मामला : बच्चे की शिक्षा प्रभावित न हो - हाईकोर्ट

कोरोना महामारी के करण खराब हुई आर्थिक हालत के चलते स्कूल फीस न भर पाने वाले अभिभावक की याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट ने अहम फैसला दिया। माननीय न्यायालय ने पैरेंट्स को राहत देते हुए किस्तों में फीस भरने की

Alakha Ram Singh हेमलता कौशिक, नई दिल्लीSun, 28 Jan 2024 08:00 AM
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Private School Fees : दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक कारोबारी के बच्चे को बड़ी राहत दी है। उच्च न्यायालय ने कोविड-19 में लगे लॉकडाउन के कारण कारोबार ठप होने के कारण नवीं कक्षा में पढ़ने वाले बच्चे की शिक्षा को जारी रखने के निर्देश निजी स्कूल को दिए हैं। उच्च न्यायालय ने कहा है कि छात्र के पिता किस्तों में बकाया फीस भरने को तैयार हैं। इसे स्वीकार किया जाए।

न्यायमूर्ति सी हरीशंकर की पीठ ने अपने आदेश में कहा कि कोविड-19 में बड़ी संख्या में लोगों का कारोबार ही नहीं नौकरियां भी प्रभावित हुई हैं। ऐसे में छात्रों के परिजनों को भारी आर्थिक हानि हुई है, लेकिन इस वजह से बच्चों का भविष्य प्रभावित नहीं होना चाहिए। पीठ ने निजी स्कूल को कहा है कि वह बच्चे की शिक्षा को जारी रखें।

वहीं, छात्र के पिता के उस आग्रह को भी स्वीकार कर लिया है, जिसमें कहा गया है कि वह किस्तों में अपने बच्चे की फीस का भुगतान कर देंगे। साथ ही, पीठ ने स्कूल के लिए टिप्पणी करते हुए कहा कि उन्हें पूरी उम्मीद है कि कोविड-19 के उस मुश्किल दौर में सभी वर्गों को आई परेशानी से स्कूल प्रबंधन वाकिफ है। इसलिए वह छात्र की शिक्षा को जारी रखेंगे। बच्चा नवीं कक्षा का छात्र है। शिक्षा का यह स्तर बेहद संवेदनशील होता है। अगले वर्ष छात्र की बोर्ड की परीक्षा होगी। लिहाजा उसकी पढ़ाई में कोई व्यवधान ना आए। इसका ख्याल रखा जाना चाहिए।

छात्र ने पिता के माध्यम से दायर की थी याचिका
नौवीं कक्षा के छात्र ने अपने पिता के मार्फत उच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई थी। छात्र का कहना था कि कोविड कॉल में पिता के व्यवसाय को भारी हानि हुई। आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण उसके पिता पिछले कुछ समय से उसकी फीस भर पाने में असमर्थ रहे हैं। जिसकी वजह से स्कूल उन पर फीस भरने का दबाव बना रहा है। हालांकि याचिका में ही छात्र के पिता की तरफ से किस्तों में फीस भरने का आग्रह किया गया, तो उच्च न्यायालय ने इसे सही रास्ता बताया। 

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