MBBS : एमबीबीएस डॉक्टरों का टोटा, 30 फीसदी चयनितों ने नहीं किया जॉइन, क्या कम सैलरी है वजह
- चयनित अभ्यर्थियों में से करीब 30 प्रतिशत अभ्यर्थियों ने जॉइन ही नहीं किया। विभाग ने कार्यभार ग्रहण करने की अंतिम तिथि 12 जनवरी तक बढ़ा दी है। पहले 3 जून की डेडलाइन थी।
बड़े-बड़े दावों के बावजूद पंजाब सरकार को एमबीबीएस डॉक्टरों को सरकारी नौकरी की ओर खींचने में संघर्ष करना पड़ रहा है। हाल ही में हुई मेडिकल ऑफिसरों की भर्ती में करीब 30 फीसदी डॉक्टरों ने जॉइन ही नहीं किया। इनके पद पर जॉइन करने की डेडलाइन 3 जनवरी थी, लेकिन ये नहीं आए। अब मजबूरन विभाग ने कार्यभार ग्रहण करने की अंतिम तिथि 12 जनवरी तक बढ़ा दी है। मेडिकल ऑफिसर (जनरल) के 400 पदों पर भर्ती निकाली गई थी जिसके लिए 304 उम्मीदवारों को 3 दिसंबर, 2024 को नियुक्ति पत्र जारी किए गए। इन्हें कार्यभार ग्रहण करने के लिए एक महीने का समय दिया गया था। हालांकि निर्धारित समय सीमा तक केवल 218 डॉक्टर ही ड्यूटी पर आए।
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण निदेशक डॉ. हितिंदर कौर के मुताबिक करीब 30 चयनित डॉक्टरों ने प्राइवेट सेक्टर में अपनी मौजूदा प्रतिबद्धताओं का हवाला देते हुए सेवा विस्तार का अनुरोध किया है। उन्होंने कहा, 'हमने अनुपस्थित डॉक्टरों को नोटिस जारी कर उनसे जॉब में शामिल न होने का कारण पूछा है। अधिकांश ने जवाब दिया है और हम इस सप्ताह के अंत तक अंतिम फैसला ले लेंगे।'
3 जनवरी को विभाग ने समाचार पत्रों में एक सार्वजनिक नोटिस भी जारी किया जिसमें चेतावनी दी गई कि 12 जनवरी तक कार्यभार ग्रहण न करने वाले डॉक्टरों का चयन रद्द कर दिया जाएगा।
सैलरी में असमानता और नौकरी की स्थिति भी कारण
पंजाब सरकार नए एमबीबीएस डॉक्टरों को शुरुआती सैलरी 53100 रुपये (लगभग 1 लाख रुपये कुल सैलरी) देती है। यह हरियाणा और दिल्ली जैसे पड़ोसी राज्यों से कम है। पड़ोसी राज्यों में न सिर्फ पैसा ज्यादा है बल्कि करियर की तरक्की की तेज संभावना भी है। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि दिल्ली में नए भर्ती किए गए एमबीबीएस डॉक्टरों का वेतन 1.5 लाख रुपये और हरियाणा में 1.35 लाख से शुरू होता है। आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि इन सबके अलावा सुरक्षित कार्य माहौल की कमी, तनावग्रस्त वर्क कल्चर और पदोन्नति के अवसरों की कमी जैसी चुनौतियां डॉक्टरों को सरकारी क्षेत्र में शामिल होने से हतोत्साहित कर रही हैं।
पंजाब सिविल मेडिकल सर्विसेज एसोसिएशन (पीसीएमएसए) ने स्वास्थ्य विभाग में चल रहे संकट के बारे में चिंता जताई है। पीसीएमएसए के अध्यक्ष डॉ अखिल सरीन ने कहा कि पिछले कुछ महीनों में लगभग 60 डॉक्टरों, जिनमें से अधिकांश विशेषज्ञ हैं, ने विभाग से इस्तीफा दे दिया है। डॉ. सरीन ने कहा, 'नए डॉक्टर जॉइन करने में अनिच्छुक हैं, जबकि अनुभवी डॉक्टर जा रहे हैं। विभाग बिखर रहा है।'
उन्होंने पे स्केल के रिवाइज होने की प्रकिया रुकने की ओर भी इशारा किया जिसे प्रमोशन में देरी की भरपाई के लिए बनाया गया था। उन्होंने कहा, "डॉक्टर वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी के पद पर अपनी पहली पदोन्नति के लिए लगभग 20 साल तक इंतजार करते हैं । तब तक वे सेवानिवृत्ति के करीब होते हैं। 4, 9 और 14 साल की सेवा पर वेतन वृद्धि की बहाली के बिना स्थिति और खराब हो जाएगी।"
चार साल के अंतराल के बाद की गई यह भर्ती पिछले कुछ दशकों में स्वास्थ्य विभाग द्वारा की गई सबसे बड़ी भर्ती है। आखिरी भर्ती 2020 में की गई थी, जब 2009 से 2020 के बीच चरणबद्ध तरीके से करीब 400 डॉक्टरों की भर्ती की गई थी।
बाबा फरीद यूनिवर्सिटी ऑफ लाइफ साइंसेज, फरीदकोट ने पिछले साल अगस्त में इस भर्ती के लिए एक विज्ञापन जारी किया गया था, जिसमें नौकरी के लिए आवेदन करने की अंतिम तिथि 4 सितंबर, 2024 निर्धारित की गई थी। रिक्तियों के बारे में स्थिति इतनी गंभीर है कि वर्तमान में मेडिकल ऑफिसर के 2,300 स्वीकृत पदों में से लगभग 1,250 (54%) खाली पड़े हैं। जब सरकारी सुविधाओं में विशेषज्ञों की बात आती है, तो स्थिति और भी गंभीर है क्योंकि 2,700 स्वीकृत पदों में से 1,590 (लगभग 55%) खाली पड़े हैं।
विशेषज्ञ डॉक्टरों को सरकारी जॉब की तरफ खींचने की बात करें तो सरकार इस मोर्चे पर भी कोई खास कमाल नहीं कर पाई है। एचटी द्वारा प्राप्त आधिकारिक रिकॉर्ड से पता चलता है कि 2022 में किए गए भर्ती अभियान में इस अभियान में विज्ञापित 634 पदों के मुकाबले मात्र 271 (42 फीसदी) ही शामिल हुए और उनमें से भी लगभग 80 पहले ही नौकरी छोड़ चुके हैं। इस विज्ञापन में 634 पदों के लिए केवल 592 आवेदकों ने ही नौकरी के लिए आवेदन किया था।
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