क्या GST स्लैब में होगा बदलाव? मंत्रियों का समूह इन दरों की कर रहा गहन समीक्षा
- GST Slab : बड़ी संख्या में चीजें 12% ब्रैकेट में हैं, इसके बावजूद इस स्लैब से ज्यादा रेवेन्यू नहीं आ रहा है। इसके उलट 73% टैक्स 18% ब्रैकेट से आते हैं।
GST Slab : मंत्रियों का समूह 12% और 18% ब्रैकेट में प्रोडक्ट्स सहित कई श्रेणियों में दरों की गहन समीक्षा कर रहा है और सितंबर के अंत तक कई उत्पादों और सेवाओं पर फैसला करेगा। जहां तक जीएसटी रेट की बात है तो इन्हें तर्कसंगत बनाने पर मंत्रियों के समूह ने स्लैब को फिर से तैयार करने की योजना को संभवत: टाल दिया है। सूत्रों के मुताबिक दरों की समीक्षा में हेल्थ इंश्योरेंस और रेस्टोरेंट जैसे सेक्टर्स के अलावा कुछ फूड प्रोडक्ट्स भी हो सकते हैं, जहां ब्रांडेड और पैक किए गए सामान और खुले सामानों के रेट अलग-अलग हैं।
सबसे अधिक वस्तु और सेवाएं 12% ब्रैकेट में
टीओआई के सूत्रों के मुताबिक बड़ी संख्या में चीजें 12% ब्रैकेट में हैं, इसके बावजूद इसस्लैब से ज्यादा रेवेन्यू नहीं आ रहा है। इसके उलट 73% टैक्स 18% ब्रैकेट से आते हैं। स्लैब में तीन प्रतिशत की कमी से भी रेवेन्यू में बड़ी गिरावट हो सकती है। टीओआई से सरकारी सूत्रों ने कहा कि मौजूदा राजनीतिक माहौल को देखते हुए मंत्रियों के लिए 12% की दर वाली वस्तुओं पर टैक्स बढ़ाना मुश्किल है।
स्लैब में कोई बदलाव नहीं होने के चांस
बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी के संयोजक के साथ दरों को तर्कसंगत बनाने पर गठित मंत्रिसमूह के अधिकतर मंत्रियों ने स्लैब में कोई बदलाव नहीं करने का विकल्प चुना। इस फैसले को 9 सितंबर को होने वाली जीएसटी परिषद की बैठक में बताए जाने की संभावना है। विशिष्ट वस्तुओं और सेवाओं पर केंद्रित अन्य दर परिवर्तनों पर आने वाले हफ्तों में काम किया जाएगा और फिर जीएसटी परिषद द्वारा विचार किया जाएगा।
ऑनलाइन गेमिंग कंपनियों की मांग
हालांकि , ऑनलाइन गेमिंग कंपनियों की ओर से 28% टैक्स की समीक्षा की मांग करने वाला एक मजबूत लॉबी है, जिस पर जीएसटी काउंसिल ने रेट तय करते समय चर्चा की थी। कई राज्यों और केंद्र द्वारा अपनाए गए रुख को देखते हुए तत्काल बदलाव की संभावना नहीं है, जिसमें तर्क दिया गया है कि कई गेमर्स बड़ी मात्रा में पैसा हार रहे हैं और टैक्स को निवारक के रूप में कार्य करना चाहिए।
इसी तरह, बेवरेज इंडस्ट्रीज की मांग कंपनसेशन सेस के भविष्य को तय करने के बड़े मुद्दे से जुड़ी हो सकती है। उद्योग जगत की मांग है कि बार-बार बदलाव करने के बजाय, दरों में बदलाव को वर्ष में दो बार तक सीमित रखा जाना चाहिए, ताकि सेलर को गुड्स एंड सर्विसेज की सप्लाई के बाद शुल्क में बदलाव के कारण नुकसान न उठाना पड़े।
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