डॉलर की धाक होगी कम, डी-डॉलराइजेशन पर ब्रिक्स का जोर
- अमेरिका समेत यूरोपीय मुल्क कई चीजों के लिए ब्रिक्स देशों पर निर्भर हैं। ब्रिक्स देश खुद की मुद्रा में व्यापार को बढ़ावा देना चाहते हैं जिससे डॉलर पर निर्भरता खत्म हो सके।
रूस के कजान में ब्रिक्स देशों की बैठक पर दुनिया की नजर है। ब्रिक्स देश खुद को दुनिया के संपन्न मुल्कों के बराबर खड़ा करना चाहते हैं। दुनिया मौजूदा समय में मुद्रा के लिए डॉलर पर निर्भर है। 90 फीसदी लेनदेन डॉलर में ही होते हैं। ब्रिक्स देश खुद की मुद्रा में व्यापार को बढ़ावा देना चाहते हैं, जिससे डॉलर पर निर्भरता खत्म हो सके। अमेरिकी बाजार एक्सचेंज नैस्डैक के अनुसार ब्रिक्स देश डॉलर की बजाए खुद की मुद्रा पर जोर दे रहे हैं। जानकार इस प्रक्रिया को डी-डॉलराइजेशन का नाम दे रहे।
डॉलर की धाक कम होगी
अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व के अनुसार वर्ष 1999 से 2019 के बीच अंतरराष्ट्ररीय व्यापार में 96 फीसदी डॉलर का प्रयोग होता था। एशिया प्रशांत क्षेत्र में व्यापार के लिए 74 जबकि दुनिया के अन्य भागों में इसका 79 फीसदी इस्तेमाल होता था। ब्रिक्स देश तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है। ऐसे में ब्रिक्स मुद्रा से डॉलर की धाक को धक्का जरूर लगेगा।
सब तलाश रहे विकल्प
अमेरिकी बाजार एक्सचेंज नैस्डैक के अनुसार दुनिया के सभी देश डॉलर का विकल्प तलाश रहे। चीन और रूस अपनी मुद्रा में कारोबार करते हैं। भारत भी कई देशों के साथ अपनी मुद्रा में काम के लिए समझौते कर रहा। केन्या, मलयेशिया समेत कई देश डी-डॉलराइजेशन को बेहतर मान रहे हैं क्योंकि उससे उन्हें आर्थिक रूप से कई तरह के लाभ मिलेंगे।
खुद की मुद्रा का लाभ
1.दुनिया को अमेरिकी नियमों के तहत व्यापार से आजादी।
2.ब्रिक्स देशों के पास खुले बाजार में अवसर का पूरा मौका।
3.व्यापारिक लेनदेन के लिए डॉलर- यूरो पर निर्भरता खत्म।
4.अमेरिकी नीतियों के कारण बंदिशों पर विराम लग सकेगा।
5.विकासशील देशों के लिए व्यापार के अवसर तेजी से बढ़ेंगे।
अमेरिका समेत यूरोपीय मुल्क कई चीजों के लिए ब्रिक्स देशों पर निर्भर हैं। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा है कि ब्रिक्स देशों की अर्थव्यवसथा 60 ट्रिलियन डॉलर से अधिक है। अमेरिका की 29, जबकि यूरोपीय देशों की कुल अर्थव्यवस्था 19.35 ट्रिलियन डॉलर है। आइए जानते हैं दुनिया के संपन्न मुल्कों के लिए ब्रिक्स देश कितना अहम और उपयोगी हैं।
भारत: अमेरिका और यूरोप को रत्न- आभूषण, फॉर्मा और पेट्रोलियम उत्पाद के साथ इलेक्ट्रिकल इलेक्ट्रॉनिक और इंजीनियरिंग से जुड़े सामान निर्यात करता है। अमेरिका को 78 जबकि यूरोपीय देशों को 124 अरब डॉलर की जरूरी वस्तुएं सालाना निर्यात करता है।
चीन: यूरोप चीन पर मशीनों वाहनों से जुड़े कलपुर्जों के लिए निर्भर है। केमिकल और दवा बनाने में इस्तेमाल होने वाले तत्वों का निर्यात करता है। अमेरिका रेलवे के कलपुर्जे खरीदता है। चीन 200 अरब डॉलर का सामान अमेरिका को सालाना बेचता है।
रूस: अमेरिका पेट्रोलियम पदार्थ, गैस, प्लेटीनम, और खाद खरीदता था। सालाना 20 अरब डॉलर के उत्पाद रूस अमेरिका को बेचता रहा। यूरोपीय देश खनिज, ईंधन, तेल, गैस, स्टील, रबर, प्लास्टिक उत्पाद, अनाज खरीदते हैं। कुल कारोबार 195 अरब डॉलर का है।
दक्षिण अफ्रीका: खनिज उत्पाद का 24 फीसदी हिस्सा अमेरिका खरीदता है। सब्जी, कपड़ा, पैक फूड, उपकरण और मशीनों का बड़े पैमाने पर निर्यात होता है। सालाना दस अरब डॉलर का कारोबार। यूरोप करीब 27 अरब डॉलर की जरूरी वस्तुएं खरीदता है।
यूएई: अमेरिका तेल, केमिकल, लग्जरी वाहन, बॉयलर्स आदि के लिए निर्भर है। सालाना 12 अरब डॉलर का सामान यूएई ने अमेरिका को बेचा। यूरोप तेल, लुब्रिकेंट और अन्य पेट्रो पदार्थों के लिए पूर्ण रूप से निर्भर है। कुल करीब 15 अरब डॉलर का कारोबार होता है।
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