सुधा मूर्ति का वो लेटर, जिस वजह से टाटा को बदलनी पड़ी पॉलिसी
बता दें कि समाजसेवी और लेखिका सुधा मूर्ति को राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अलग-अलग क्षेत्रों में उनके योगदान की सराहना की।
Sudha murty latest news: अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर राइटर और सोशल वर्कर सुधा मूर्ति को राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर यह जानकारी दी है। सुधा मूर्ति देश की दिग्गज आईटी कंपनी इंफोसिस के फाउंडर एन. नारायणमूर्ति की पत्नी हैं। उन्होंने नारायणमूर्ति के साथ इंफोसिस की नींव रखने में बड़ी भूमिका निभाई है।
महिलाओं के लिए संघर्ष: सुधा मूर्ति की पहचान उनकी सादगी, सौम्य स्वभाव और मेहनत के लिए है। सुधा मूर्ति ने उस दौर में नौकरी की जब महिलाओं के लिए घर से बाहर निकला एक बड़ी चुनौती थी। महिलाओं के बराबरी के हक के लिए सुधा मूर्ति ने लंबी लड़ाई लड़ी है। महिलाओं के हक की लड़ाई में सुधा मूर्ति ने टाटा ग्रुप को अपना फैसला बदलने पर मजबूर कर दिया था। बीते साल सुधा मूर्ति सोनी टीवी के लोकप्रिय प्रोग्राम "द कपिल शर्मा शो" में आई थीं। इस मौके पर उन्होंने अपने जीवन से जुड़े कई दिलचस्प किस्से के बारे में बताया था। इसी दौरान उन्होंने बताया था कि कैसे टाटा ग्रुप की कंपनी में बतौर कर्मचारी महिलाओं की एंट्री के लिए उन्होंने जेआरडी टाटा को मनाया।
क्यों लिखा था पत्र: दरअसल, सुधा मूर्ति इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस से स्नातक की डिग्री पूरी करने के बाद नौकरी की तलाश कर रही थीं। तभी टाटा की कंपनी टेल्को (TELCO) में इंजीनियर की नौकरी के लिए एक विज्ञापन निकला था। इस विज्ञापन में पद के लिए सिर्फ पुरुष उम्मीदवार से आवेदन मांगे गए थे। इससे सुधा मूर्ति काफी आहत हुईं। सुधा मूर्ति कहती हैं- इस विज्ञापन से मुझे बहुत गुस्सा आया। तब मैं 23 साल की थी, आप इस उम्र में अधिक गुस्से में रहते हैं। नोटिस पढ़ने के बाद सुधा मूर्ति ने जेआरडी टाटा को पत्र लिखकर अपनी आपत्ति दर्ज कराई।
क्या कहा पत्र में
सुधा मूर्ति ने पत्र में लिखा कि आपने देश के अलग-अलग क्षेत्र में बहुत बेहतरीन काम किया है लेकिन मुझे इस बात की बहुत हैरानी है कि टाटा जैसी कंपनी में लिंग के आधार पर भेदभाव हो रहा है। अगर महिलाओं को मौका नहीं मिलेगा तो एक देश के रूप में भारत प्रगति नहीं कर पाएगा। सुधा मूर्ति बताती हैं कि इस पत्र को भेजने के कुछ दिनों बाद टाटा की ओर से इंटरव्यू के लिए बुलाया गया। सुधा ने उस इंटरव्यू को काफी गंभीरता ले लिया। उनका चयन भी हुआ और वो टाटा की पहली महिला इंजीनियर बनीं। सुधा मूर्ति के पत्र की वजह से ही टाटा ने अपनी पॉलिसी बदल दी और महिलाओं के लिए दरवाजे खोल दिए गए।
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