डॉलर के सामने रेंग रहा रुपया, ऑल टाइम लो पर भाव, क्यों बने ये हालात, समझें
तरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया 9 पैसे टूटकर 83.33 प्रति डॉलर के सर्वकालिक निचले स्तर पर है। बीएसई सेंसेक्स 283.60 अंक की गिरावट के साथ 63,591.33 अंक पर बंद हुआ।
डॉलर के मुकाबले भारतीय करेंसी रुपया की हालत खराब होती जा रही है। सप्ताह के तीसरे कारोबारी दिन यानी बुधवार को रुपया ऑल टाइम लो पर आ गया। अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया 9 पैसे टूटकर 83.33 प्रति डॉलर के सर्वकालिक निचले स्तर तक आया। इस बीच, डॉलर सूचकांक 0.04% बढ़कर 106.75 पर कारोबार कर रहा था।
इस हफ्ते रुपया की चाल: अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया मंगलवार को दो पैसे की तेजी के साथ 83.24 प्रति डॉलर के भाव पर बंद हुआ। कारोबार के दौरान रुपया ने 83.25 के उच्च स्तर एवं 83.27 के निम्न स्तर को भी छुआ। इससे पहले रुपया सोमवार को 83.26 प्रति डॉलर के भाव पर बंद हुआ था।
गिरावट की वजह: डॉलर के मुकाबले रुपया में गिरावट के कई कारण हैं। मसलन, वैश्चिक स्तर पर तनाव के अलावा घरेलू इक्विटी में कमजोर रुख, लगातार विदेशी फंड की निकासी और कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी का असर पड़ा है।
अमेरिकी ट्रेजरी नोट यील्ड का फैक्टर: रुपया के कमजोर होने का एक बड़ा फैक्टर अमेरिका का 10 साल वाला ट्रेजरी नोट है। इस ट्रेजरी नोट की यील्ड 5 फीसदी के पार जा पहुंच गई है। साल 2007 के बाद पहली बार अमेरिकी ट्रेजरी नोट यील्ड 5 फीसदी के पार गई है। इसके अलावा इजरायल और गाजा के बीच तनाव की वजह से भी निवेशकों का सेंटीमेंट प्रभावित हुआ है। इस बीच, बुधवार को बीएसई सेंसेक्स 283.60 अंक की गिरावट के साथ 63,591.33 अंक और एनएसई निफ्टी 90.45 अंक कमजोर होकर 18,989.15 अंक पर बंद हुआ।
इकोनॉमी पर क्या असर: रुपया का कमजोर होना देश की इकोनॉमी के लिए ठीक नहीं है। इस वजह से भारत का आयात बिल बढ़ सकता है। आसान भाषा में समझें तो भारत को आयात के लिए पहले के मुकाबले ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ेंगे। वहीं, जो कंपनियां आयात पर निर्भर हैं उनका मार्जिन कम हो जाएगा। ऐसे में कंपनियां भरपाई के लिए आइटम्स के दाम बढ़ाएंगी। इससे महंगाई बढ़ने की आशंका है।
भारत अपने पेट्रोलियम उत्पाद का एक बड़ा हिस्सा आयात करता है। ऐसे में रुपया के कमजोर होने का असर इस पर दिख सकता है। इसके अलावा विदेश घूमना, विदेश से सर्विसेज लेना आदि भी महंगा हो जाएगा। रुपया को मजबूत करने के लिए रिजर्व बैंक विदेशी मुद्रा भंडार से खर्च करेगा, जिससे खजाना कमजोर होने की आशंका बनी रहेगी।
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