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रुपये की गिरावट अर्थव्यवस्था को पहुंचा रही चोट

  • डॉलर के मुकाबले रुपया मंगलवार को अब तक के सबसे निचले स्‍तर 83.53 पर बंद हुआ था। जानकार बताते हैं कि रुपये की गिरावट को रोकने के लिए केंद्रीय बैंक ने हस्‍तक्षेप किया। डॉलर के मुकाबले रुपया के नए निचले स्तर पर पहुंचना निर्यात के लिए लाभदायक है, लेकिन आयात महंगा हो गया है।

Drigraj Madheshia नई दिल्ली, हिन्दुस्तान संवाददाताFri, 19 April 2024 06:07 AM
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ईरान और इजरायल के बीच बढ़े तनाव ने डॉलर की मांग बढ़ा दी है। इससे रुपये पर दबाव बढ़ा है। डाॅलर के मुकाबले रुपया मंगलवार को अब तक के सबसे निचले स्‍तर 83.53 पर बंद हुआ था। जानकार बताते हैं कि रुपये की गिरावट को रोकने के लिए केंद्रीय बैंक ने हस्‍तक्षेप किया। डॉलर के मुकाबले रुपया के नए निचले स्तर पर पहुंचना निर्यात के लिए लाभदायक है, लेकिन आयात महंगा हो गया है। 

रुपया एशियाई अर्थव्यवस्थाओं के बीच बेहतर प्रदर्शन करने वाली मुद्राओं में से एक था। इंडोनेशियाई रुपिया में दो फीसदी, ताइवानी डॉलर में 0.34 फीसदी, दक्षिण कोरियाई वोन में 0.76 फीसदी, येन में 0.28 फीसदी, थाई बात में 0.21 फीसदी और युआन में 0.18 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। हालांकि, मध्यावधि में पिछले दो वर्षों में रुपये में नौ फीसदी से अधिक की गिरावट आई है।

गिरावट के कारण

भू-राजनीतिक अस्थिरता से निवेशकों पर बड़ा प्रभाव पड़ता है। अभी इजराइल-फिलिस्तीन, रूस-यूक्रेन युद्ध, ईरान-इजराइल संघर्ष संभावित रूप से वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं को बाधित कर सकता है। इससे वस्तुओं की कीमतों में बढ़ोतरी होगी, जिससे मुद्रास्फीति बढ़ेगी। 

इसके परिणामस्वरूप अमेरिकी फेड एवं केंद्रीय बैंकों द्वारा उपभोक्ता खर्च पर अंकुश लगाने के लिए ब्याज दरों में कटौती की संभावना कम हो जाती है। अमेरिका में ऊंची दरें निवेशकों को भारत समेत दुनिया के विभिन्न हिस्सों से अमेरिका में पैसा स्थानांतरित करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं।

तेल की कीमतों पर असर

कमजोर रुपया आयात को महंगा बनाता है जबकि, निर्यातकों को फायदा पहुंचता है। दरअसल, भारत वस्तुओं और सेवाओं का शुद्ध आयातक है। वित्त वर्ष 2023-24 की पहली छमाही में इसका चालू खाता घाटा 9.2 बिलियन डॉलर है। रुपये में गिरावट के चलते इलेक्ट्रॉनिक्स और मशीनरी से लेकर प्लास्टिक और रसायनों आदि कई उत्पादों पर व्यापक असर पड़ता है। इसका सबसे ज्यादा प्रभाव तेल की कीमतों पर पड़ रहा है।

डिमांड-सप्लाई  पर मूल्य निर्भर

मुद्रा का मूल्य डिमांड-सप्लाई पर निर्भर करता है, जो निवेश के लक्ष्य के रूप में किसी देश के समग्र आकर्षण पर निर्भर करता है। अगर, विदेशी निवेशक विनिर्माण इकाइयां (एफडीआई) स्थापित करने के लिए आते हैं, बाजारों और कंपनियों में निवेश करते या निर्यात बढ़ता है तो रुपये का मूल्य बढ़ता है। 

यदि रुपये का मूल्य चिंताजनक रूप से गिरता है तो आरबीआई अपने विदेशी मुद्रा भंडार से डॉलर बेचकर हस्तक्षेप कर सकता है। इसके अतिरिक्त यूएस फेड के साथ प्रतिस्पर्धा करने और निवेशकों को अच्छा रिटर्न देने के लिए ब्याज दरें भी बढ़ा सकता है।

हालात बेहतर होने की संभावना

ऐसे समय में रुपये में गिरावट आई है, जब भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 648.56 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर है। पांच अप्रैल को समाप्त सप्ताह में विदेश मुद्रा भंडार में 2.98 मिलियन डॉलर का इजाफा हुआ। इसमें लगातार सात सप्ताह तक वृद्धि हुई है। 

इससे आरबीआई को रकम खर्च के लिए काफी गुंजाइश मिलती है। मंगलवार को उसने रुपये को और नीचे जाने से रोकने के लिए अनुमानित 100-200 मिलियन डॉलर को बेचने के लिए हस्तक्षेप किया। उसने ऐसा यूक्रेन युद्ध और यूएस फेड द्वारा दरें बढ़ाए जाने के बाद साल 2022 में भी किया था। विशेषज्ञों को उम्मीद है कि आरबीआई आगे की गिरावट को रोकने के लिए हस्तक्षेप करेगा।

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