मोदी सरकार 3.0 के पहले आम बजट से खासी उम्मीदें, हर वर्ग की झोली में कुछ न कुछ डालने की चुनौती
- लोकलुभावन बजट की उम्मीदें: मौजूदा राजनीतिक समीकरण के बीच सभी की उम्मीदों पर खरा उतरने की चुनौती।आयकर छूट सीमा और स्लैब में बदलाव के साथ किसान सम्मान निधि बढ़ाए जाने की अटकलें
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार 3.0 के पहले आम बजट से खासी उम्मीदें हैं। निम्न और मध्यवर्ग को सरकार महत्वाकांक्षी योजनाओं के जरिये विशेष लाभ दे सकती है। नौकरीपेशा लोगों के लिए भी आयकर छूट सीमा बढ़ाए जाने और स्लैब में परिवर्तन किए जाने की चर्चाएं हैं। बदले हुए समीकरणों के बीच सरकार के लिए यह बजट सहयोगी दलों के अपने राज्यों की मांगों के चलते चुनौतियों से भरा भी है।
केंद्र की मोदी सरकार पर हर वर्ग की झोली में कुछ न कुछ डालने का दबाव है। चूंकि चार राज्यों के चुनाव सामने हैं, ऐेसे में इन राज्यों के लोगों की भी उम्मीदें टिकी हैं। राजनीतिक रूप से सरकार को मतदाताओं को साधने की भी कवायद करनी पड़ रही है। सरकार की कोशिश होगी कि वह अपने बिखरे जनाधार को समेटने और सहयोगी दलों के साथ तालमेल को बेहतर बनाए।
इसलिए 23 जुलाई को जब केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण लगातार सातवीं बार संसद में वित्त वर्ष 2024-25 का आम बजट प्रस्तुत करेंगी तो उसमें कुछ बड़ी घोषणाएं हो सकती हैं। इसमें बिहार और आंध्र प्रदेश के लिए कुछ अहम घोषणाएं हो सकती हैं। बजट से पूर्व विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों और उनसे जुड़े संगठन प्रमुखों के साथ वित्त मंत्री बैठकें कर चुकी हैं। अब बजट को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया तेजी से चल रही है।
ये बड़ी घोषणाएं संभव
आयकर स्लैब: अभी तक की बैठकों के बाद यह कयास लगाए जा रहे हैं कि सरकार आयकर छूट सीमा में बदलाव करेगी। इससे मध्यवर्ग और नौकरीपेशा लोगों को खासा लाभ होगा। इसके लिए आयकर रिटर्न दाखिल करने की पुरानी और नई व्यवस्था में कुछ अहम बदलाव हो सकते हैं।
किसान सम्मान निधि: किसानों के लिए सरकार किसान सम्मान निधि छह हजार रुपये से बढ़ाकर 10-12 हजार रुपये कर सकती है। कृषि उत्पादों पर कर की दरों को कम करने का फैसला भी हो सकता है।
मजदूरों और कर्मचारियों को ज्यादा लाभ: मनरेगा मजदूरी को 100 से बढ़ाकर 150 दिन किया जा सकता है। साथ ही, मनरेगा मजदूरों को कृषि क्षेत्र के साथ जोड़ने का फैसला भी लिया जा सकता है। इसके साथ ही न्यू पेंशन स्कीम को ज्यादा आकर्षक बनाया जा सकता है, जिसको लेकर अभी तक सरकारी कर्मचारी नाखुश हैं।
रोजगार: बदले समीकरणों के बीच सरकार के ऊपर सबसे ज्यादा दबाव रोजगार के अवसर पैदा करने का है। इसलिए इंफ्रास्ट्रक्चर से लेकर ऊर्जा को बढ़ावा देने के साथ रोजगार पैदा करने वाले क्षेत्रों का बजट बढ़़ाने की पूरी संभावना है। अग्निवीर जैसी योजना में भी सैनिकों को ज्यादा वित्तीय लाभ देने का ऐलान किया जा सकता है।
सरकार के सामने चुनौतियां भी कम नहीं
साझा बजट : यह बजट भले ही मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल का पहला बजट हो लेकिन एनडीए सरकार का पहला साझा बजट है। इसमें सरकार के सामने जेडीयू और टीडीपी की मांगों को पूरा करने की चुनौती है। दोनों ही पार्टियों ने बिहार और आंध्र प्रदेश को लेकर करीब एक लाख करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता की मांग रखी है।
इसके साथ ही, बुनियादी ढांचे वाली परियोजनाओं के लिए उधार लेने की सीमा बढ़ाने की मांग की है। भाजपा के पास सरकार बनाने का पूर्ण बहुमत न होने के कारण दोनों ही राजनीतिक दल केंद्र सरकार पर दबाव बनाने की पूरी स्थिति में हैं, जिसका असर बजट में देखने को मिल सकता है। क्योंकि दोनों ही दल अपना मांग पत्र केंद्र की सरकार को सौंप चुके हैं।
आरएसएस के अनुषांगिक संगठनों का दबाव : अकेले दम पर पूर्ण बहुमत की सरकार न होने के कारण अब तमाम संगठन सरकार को घेरने में लगे हैं। सरकार पर दबाव है कि वो सभी वर्गों के हितों को ध्यान में रखकर बजट लाए। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के अनुषांगिक भारतीय किसान संघ, भारतीय मजदूर संघ और स्वदेशी जागरण मंच के प्रतिनिधियों ने वित्त मंत्री से मिलकर किसान, मजदूर, मध्यवर्ग और समाज के सभी तबकों की मांगों को रखा है।
इसलिए सरकार के सामने चुनौती है कि इन संगठनों की मांगों के साथ तालमेल बैठाते हुए बजट पेश किया जाए। मजदूर संघ ने पुरानी पेंशन बहाली तक का मुद्दा उठाया है। वहीं, किसान संघ ने कृषि उपकरणों से जीएसटी हटाने या फिर इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ सीधे किसानों को दिए जाने और किसान सम्मान निधि बढ़ाने जैसी 12 मांगें रखी हैं।
आगामी विधानसभा चुनाव: इस वर्ष के अंत तक झारखंड, महाराष्ट्र, हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में चुनाव होने हैं। इन राज्यों में युवा रोजगार को लेकर तो महिलाएं महंगाई के मुद्दे पर सरकार से नाराज हैं। बीते लोकसभा चुनाव में पार्टी के चुनावी नतीजे उम्मीद के अनुरूप नहीं रहे हैं। इस कारण से माना जा रहा है कि आगामी विधानसभा चुनावों में पार्टी चाहेगी कि नतीजे बेहतर रहें, इसलिए जानकार मानते हैं कि आम बजट के जरिये सरकार चुनावी समीकरणों को साधने की कोशिश करेगी।
मध्यवर्ग: लोकसभा चुनाव में नतीजे भाजपा की उम्मीदों के अनुरूप न आने के पीछे एक वजह यह भी मानी जाती है कि देशभर में निम्न और मध्य आय वर्ग का वोट बैंक पार्टी से छिंटका है। इसके पीछे कारण है कि सरकार ने मध्य आय वर्ग से आने वाले लोगों को राहत देने के लिए कोई बड़ा काम नहीं किया।
खासकर नौकरीपेशा लोगों की आयकर छूट सीमा और करों की दरों (स्लैब) में भी कोई बदलाव नहीं हुआ। जबकि इस दौरान महंगाई में इजाफा हुआ है। इससे लोग खासे नाराज बताए जाते हैं। इसलिए इस बार के बजट में मध्य के वोट बैंक को थामे रखने की चुनौती भी सरकार के ऊपर होगी।
युवा: सरकार के लिए एक चुनौती युवा भी है। क्योंकि चुनावी नतीजे बताते हैं कि युवा मतदाता पार्टी से हट रहे हैं। खासकर उत्तर भारत में जहां युवाओं को पार्टी का पक्का समर्थक माना जाता था, वहां भी युवाओं ने पार्टी को उम्मीद के अनुरूप वोट नहीं दिया। युवाओं में नाराजगी की मुख्य वजह रोजगार के अवसर सीमित होने और अग्निवीर जैसी योजना को बताया जाता है। पार्टी से जुड़े संगठन भी इस बात को उठा रहे हैं कि अगर रोजगार के अवसर नहीं बढ़ाए गए तो पार्टी को बड़ा नुकसान होगा। इस लिहाज से बजट में युवाओं को साधने की चुनौती भी होगी।
बिहार और आंध्र प्रदेश की मुख्य मांगें
बिहार: नौ हवाई अड्डे, चार नई मेट्रो लाइंस और सात मेडिकल कॉलेज के साथ 200 अरब रुपये का थर्मल पावर प्लांट लगाने के लिए पैसा मांगा है। 20,000 किलोमीटर से अधिक लंबाई की सड़कों की मरम्मत के लिए अलग से पैकेज की मांग रखी है।
आंध्र प्रदेश: विजयवाड़ा, विशाखापट्टनम और अमरावती में मेट्रो रेल परियोजनाओं के साथ विजयवाड़ा से मुंबई और नई दिल्ली तक वंदे भारत ट्रेन चलाने की मांग रखी गई है। वहीं, राज्यों के पिछड़े जिलों में शामिल रामायपटनम बंदरगाह और कडप्पा में एक इस्पात संयंत्र भी मांगा है।
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