Hindi Newsब्रांड स्टोरीज़ न्यूज़Tender Palm Multi Speciality Hospital For the first time not a cow but a human pericardium used in the heart valve

टेंडर पाॅम मल्टी स्पेशलिटी हॉस्पिटल : हार्ट वॉल्व में पहली बार गाय नहीं, बल्कि इंसान के पेरीकार्डियम का हुआ इस्तेमाल

टेंडर पाॅम मल्टी स्पेशलिटी हॉस्पिटल उत्कृष्ट चिकित्सकीय सुविधायें प्रदान करने के लिए जाना जाता है।

Anant Joshi joshi Brand Post, Fri, 28 July 2023 02:59 PM
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टेंडर पाॅम मल्टी स्पेशलिटी हॉस्पिटल उत्कृष्ट चिकित्सकीय सुविधायें प्रदान करने के लिए जाना जाता है। यहां कुशल एवं अनुभवी चिकित्सकों की टीम हमेशा मरीजों के बेहतरीन इलाज के लिए मौजूद रहती है। यहां आने वाले मरीजों का इलाज इतने बेहतरीन ढंग से किया जाता है कि मरीज स्वस्थ और खुश होकर ही घर लौटते हैं। ऐसा ही एक केस है बलरामपुर के राजमन चौहान का जिन्हें सीने के एरोटिक वॉल्व में दिक्कत थी। टेंडर पाम हॉस्पिटल के अनुभवी और कुशल चिकित्सकों की टीम ने पेरीकार्डियम का इस्तेमाल कर उन्हें स्वस्थ जीवन प्रदान किया।

पेरीकार्डियम का इस्तेमाल

बलरामपुर के राजमन चौहान को कुछ महीनों से सांस लेने में बहुत ज्यादा कठिनाई और सीने में तेज दर्द की शिकायत थी। उन्होंने जांच कराई तो पता चला कि उनके सीने के एरोटिक वॉल्व में दिक्कत हैं, जिसे बदलना ही एक मात्र रास्ता है। लेकिन अब तक भारत में इस गंभीर समस्या का इलाज भी पूरी तरह सफल नहीं हुआ था, क्योंकि नेचुरल वॉल्व की जगह जिस कृत्रिम वॉल्व का इस्तेमाल किया जाता है, वह धातु की होती है और उसे बनाने में गाय या सुअर के हृदय के पेरीकार्डियम का इस्तेमाल होता है। साथ ही इस बेहद खर्चीले इलाज के बाद भी यह अधिकतम 3 से 10 साल तक हृदय को सही तरह से काम करने में मदद करता है।

कार्डियो सर्जन डॉ. विजय अग्रवाल के नेतृत्व में हुआ ऑपरेशन

इन समस्याओं से निपटने के लिए लखनऊ के टेंडर पाॅम हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने कमर कसी। मरीज के साथ बातचीत के बाद विख्यात कार्डियो सर्जन डॉ. विजय अग्रवाल के नेतृत्व में एक विशेष ऑपरेशन का फैसला लिया गया, जिसे "ओजाकी रिपेयर" कहा जाता है। इसमें मरीज के हृदय के पेरीकार्डियम का ही इस्तेमाल करके नयी एरोटिक वॉल्व बनाई जाती है और बदला जाता है।

बेहद जटिल ऑपरेशन

उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार और झारखण्ड में यह ऑपरेशन पहले कभी नहीं हुआ था। डॉ. विजय अग्रवाल के नेतृत्व में हुए इस ऑपरेशन में डॉ. सुनील गुंडुमाला, डॉ. संजीव सिंह और डॉ. विष्णु की विशेषज्ञता का भी उपयोग किया गया।  डॉ. विजय अग्रवाल ने बताया कि ऐसा ऑपरेशन पहली बार सफलतापूर्वक किया गया है। उन्होंने कहा, 'इस कृत्रिम वॉल्व को हम 'हैंडमेड दर्जी' वॉल्व भी कहते हैं, क्योंकि इसमें मरीज के स्वस्थ वॉल्व का इस्तेमाल किया जाता है। यह तकनीकी रूप से बेहद जटिल ऑपरेशन होता है, क्योंकि नया वॉल्व बनाते समय इसके आकार का विशेष ध्यान देना होता है।'  

6 से 7 घंटे तक चला ऑपरेशन

6 से 7 घंटे तक चले इस ऑपरेशन के बाद मरीज पूरी तरह स्वस्थ है और उसकी उम्र भी बढ़ेगी, क्योकि इस कृत्रिम वॉल्व में उसी मरीज के वॉल्व का उपयोग किया गया है। डॉ. विजय अग्रवाल ने बताया कि देश में सिर्फ दिल्ली या दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में ही यह ऑपरेशन किया जाता है। उन्होंने बताया कि यह ऑपरेशन आम ऑपरेशन के मुकाबले सस्ता भी पड़ता है और इससे मरीज की जीवन प्रत्याशा कम से कम 10 साल के लिए बढ़ जाती है।

ऑपरेशन के पश्चात स्वस्थ महसूस कर रहा मरीज

वहीं, मरीज राजमन चौहान ने बताया कि उन्हें सिर्फ 6 दिनों में टेंडर पाॅम हॉस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया गया। वे पहले से स्वस्थ महसूस कर रहे हैं। टेंडर पाॅम हॉस्पिटल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी श्री विनय शर्मा में बताया कि "टेंडर पाॅम हॉस्पिटल की टीम नित नए प्रयोग करते हुए, कई तरह के विशिष्ट ऑपरेशन को सफलतापूर्वक अंजाम दे चुकी है। टेंडर पाॅम हॉस्पिटल में बच्चों और बुजुर्गों के लिए बेहतर हार्ट सर्जरी की सुविधा उपलब्ध है। यहां हमारी कोशिश रहती है कि हम मरीजों पर आर्थिक बोझ कम से कम डालें और उन्हें स्वस्थ जीवन प्रदान करें।

महत्वपूर्ण बिंदु एक नजर में

• लखनऊ के टेंडर पाॅम हॉस्पिटल में पहली बार हुआ "ओज़ाकी" तकनीक से हार्ट वॉल्व का ऑपरेशन

•  उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार और झारखण्ड में पहले कभी नहीं हुआ था यह ऑपरेशन

• अमूमन गाय या सुअर के हृदय के पेरीकार्डियम का इस्तेमाल करके होता था ऑपरेशन

• पहली बार मरीज के स्वयं के हृदय के पेरीकार्डियम का इस्तेमाल करके पाई सफलता

 

अस्वीकरण  : इस लेख में किए गए दावों की सत्यता की पूरी जिम्मेदारी संबंधित व्यक्ति/ संस्थान की है ।

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