सैटेलाइट जोड़ने से अंतरिक्ष बाजार में बढ़ी भारत की साख
- भारत ने अंतरिक्ष में एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के स्पैडेक्स मिशन ने ऐतिहासिक ‘डॉकिंग’ में सफलता हासिल की है। भारत यह उपलब्धि हासिल करने वाला चौथा देश बन गया है…
निरंकार सिंह, पूर्व सहायक संपादक, हिंदी विश्वकोश
भारत ने अंतरिक्ष में एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के स्पैडेक्स मिशन ने ऐतिहासिक ‘डॉकिंग’ में सफलता हासिल की है। भारत यह उपलब्धि हासिल करने वाला अमेरिका, रूस और चीन के बाद चौथा देश बन गया है। इसरो ने पहले पृथ्वी की कक्षा में दो उपग्रहों को सफलतापूर्वक स्थापित किया, फिर दोनों को आपस में जोड़ दिया। यह एक बड़ी कामयाबी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वाभाविक ही इस ऐतिहासिक उपलब्धि के लिए इसरो को बधाई देते हुए कहा कि आने वाले वर्षों में भारत के महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष मिशनों के लिए यह एक महत्वपूर्ण कदम है।
इससे पहले 7 और 9 जनवरी को तकनीकी कारणों से इसे टाल दिया गया था। 12 जनवरी को इसरो ने एक परीक्षण किया, जिसमें उपग्रहों को तीन मीटर की दूरी तक लाया गया और फिर आगे के विश्लेषण के लिए उनको सुरक्षित दूरी पर ले जाया गया। इसरो ने स्पैडेक्स मिशन के तहत अंतरिक्ष में दो उपग्रहों को जोड़ने का चौथा प्रयास किया था, जो सफल रहा। इसरो ने अपने बयान में कहा कि दो उपग्रहों को जोड़ने के बाद, दोनों को एक ही वस्तु के रूप में नियंत्रित करने में उसे सफलता मिली है। आने वाले दिनों में उपग्रहों को अलग करने व विद्युत हस्तांतरण की जांच की जाएगी।
भारत ने यह मिशन पूरा करके शून्य गुरुत्वाकर्षण में जटिल तकनीकी उपलब्धि हासिल की है। इस ऐतिहासिक उपलब्धि के बाद इसरो ने सोशल मीडिया ‘एक्स’ पर अपने हैंडल से पोस्ट किया- ‘भारत ने अंतरिक्ष अभियान के इतिहास में अपना नाम दर्ज कर लिया है। इस क्षण का गवाह बनकर गर्व हो रहा है’। यह इसलिए भी बड़ी बात है, क्योंकि इससे पहले केवल अमेरिका, चीन और रूस ही अंतरिक्ष में सैटेलाइट डॉकिंग कर पाए हैं। अब भारत ने भी इस छोटी, लेकिन महत्वपूर्ण सूची में अपना नाम दर्ज करा लिया है। वास्तव में, डॉकिंग बहुत ही जटिल प्रक्रिया होती है, जिसमें उपग्रहों को आगे-पीछे ले जाया जाता है, जिसे इसरो ने अंतरिक्ष में दो उपग्रहों के ‘रोमांचक हैंडशेक’ के रूप में वर्णित किया। यह तकनीक तब आवश्यक होती है, जब सामान्य मिशन के लिए कई रॉकेट लॉन्च करने की जरूरत पड़ती है। चूंकि यह एक कठिन प्रक्रिया है, इसलिए इसके लिए इसरो ने ट्रायल भी किए।
इस मिशन की कामयाबी से चंद्रयान-4, गगनयान और भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन जैसे मिशनों की राह आसान हुई है। चंद्रयान-4 मिशन में चंद्रमा की मिट्टी के सैंपल पृथ्वी पर लाए जाएंगे, वहीं गगनयान मिशन में इंसान को अंतरिक्ष में भेजा जाएगा। इसरो के लिए इस मिशन का सफल होना बहुत जरूरी था, क्योंकि इसका उपयोग उपग्रहों की सर्विसिंग, अंतरिक्ष स्टेशन संचालन और ग्रहों के बीच आपस में चल रहे मिशनों में खूब होता है। भारत की यह सफलता अंतरिक्ष में छिपे कई रहस्यों और जानकारियों के उद्घाटन में बहुत काम आएगी। उल्लेखनीय है कि इसरो ने पीएसएलसी-सी 60 की मदद से इन दोनों उपग्रहों को श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया था। रॉकेट ने उड़ान भरने के करीब 15 मिनट बाद 220 किलोग्राम वजन वाले इन दोनों उपग्रहों को 475 किलोमीटर ऊपर की कक्षा में स्थापित किया था।
तकनीकी दक्षता के साथ-साथ इस मिशन के जरिये भारत वैश्विक व्यावसायिक अंतरिक्ष बाजार में अपनी जगह सुनिश्चित कर रहा है। 2030 तक यह बाजार एक ट्रिलियन डॉलर का हो सकता है। फिलहाल इसमें भारत की हिस्सेदारी सिर्फ आठ अरब डॉलर की है। सरकार का लक्ष्य 2040 तक इसे बढ़ाकर 44 अरब डॉलर करना है। इस लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए ही सरकार ने श्रीहरिकोटा में तीसरे लॉन्च पैड के निर्माण को मंजूरी दी है। इस प्रोजेक्ट की लागत 3,985 करोड़ रुपये है और इसके 48 महीने में पूरा होने का अनुमान है। फिलहाल यहां दो लॉन्च पैड मौजूद हैं। नया लॉन्च पैड इन दोनों लॉन्च पैड से अधिक क्षमता वाला होगा। नए लॉन्च पैड को अंतरिक्ष क्षेत्र की भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए बनाया जाएगा। इस पैड के बनने पर अंतरिक्ष में भेजे जाने वाले सैटेलाइट और स्पेस्क्रॉफ्ट के प्रक्षेपण में तेजी लाई जा सकेगी। इससे भारत अपनी जरूरत के मिशन को अंजाम देने के साथ-साथ विश्व की मांग भी पूरी कर सकेगा। सरकार के ताजा फैसले से नई पीढ़ी के लॉन्च व्हीकल प्रोग्राम को आगे बढ़ाने में भी मदद मिली है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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