स्नान, दान और ध्यान का महापर्व मकर संक्रांति
- आकाश की पंचायत के सरपंच हैं सूर्य। एक ऐसे सरपंच, जो प्रकृति के संविधान के तहत युगों-युगों से अग्नि व प्रकाश के ‘पावर हाउस’ बने हुए हैं। यही कारण है - विज्ञान इनके रहस्य खोलने की कोशिश में जुटा रहता है, ज्ञान इनको बांचता रहता है और ध्यान इनकी महिमा बतलाता रहता है…
अजहर हाशमी, कवि व सूफी चिंतक
आकाश की पंचायत के सरपंच हैं सूर्य। एक ऐसे सरपंच, जो प्रकृति के संविधान के तहत युगों-युगों से अग्नि व प्रकाश के ‘पावर हाउस’ बने हुए हैं। यही कारण है - विज्ञान इनके रहस्य खोलने की कोशिश में जुटा रहता है, ज्ञान इनको बांचता रहता है और ध्यान इनकी महिमा बतलाता रहता है। आकाशीय पंचायत के अकेले सरपंच सूर्य दिव्य हैं और भव्य भी। दिव्य रूप यह अध्यात्म के अधिवक्ता हैं और भव्य रूप में ऊर्जा के प्रवक्ता।
सूर्य की ऊर्जा की पूंजी, मेष से मीन तक, बारह राशियों के बही-खाते में जमा रहती है, जिसे सूर्य संक्रांति के अवसर पर जांचते हैं। ज्योतिष की भाषा में कहें, तो आकाश की पंचायत में बृहस्पति, शुक्र, बुध, मंगल इत्यादि ग्रह पंच की तरह होते हैं, जिनके सरपंच सूर्य होते हैं। राहु-केतु जैसे छायाग्रह यानी छाया-पंच उस सरपंच सूर्य के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का भरसक प्रयास करते हैं, किंतु सूर्य के साथ गुरु, शुक्र, बुध, मंगल जैसे ग्रहों का समर्थन होने के कारण अविश्वास प्रस्ताव बार-बार गिर जाता है। शनि महाराज इस प्रक्रिया में तटस्थ रहते हैं।
आकाशीय पंचायत के सरपंच सूर्य का कार्य सृष्टि के लिए कल्याणकारी है, इसलिए जागृत अक्षय ऊर्जा स्रोत के रूप में सूर्य कल भी थे, आज भी हैं और सदा रहेंगे। सूर्य की महिमा अपरंपार है। अथर्ववेद में सूर्य के बारे में कहा गया है : प्रकट होते हुए आप सदैव नए-नवेले प्रतीत होते हैं। इसी प्रकार की बात सूर्योपनिषद में भी कही गई है : सूर्य अर्थात् आदित्य आनंदमय, ज्ञानमय और विज्ञानमय हैं। सूर्य सदैव हमारे ज्ञान चक्षु को खोल देते हैं। सूर्य की महिमा के गुणगान से हमारे अनेक ग्रंथ धनवान हैं। मैंने एक जगह पढ़ा है कि हनुमान जी सूर्य को निगलने में इसलिए सफल हो गए थे, क्योंकि हनुमान जी स्वयं ही ऊर्जा के स्रोत थे। सूर्य को ऊर्जा प्रिय है। सूर्य नमस्कार के बारह मंत्र वास्तव में बारह महीनों और बारह राशियों का प्रतीक हैं। सूर्य को हमने कुछ-कुछ जान लिया है, पर अभी भी बहुत जानना शेष है।
आज मकर संक्रांति है और बताते हैं कि यह विशेष है। कहा जा रहा है कि 144 वर्षों बाद ऐसा संयोग और सुयोग बना है और महाकुंभ की शुरुआत भी हो गई है। यहां मुझे काव्य की पंक्तियां याद आ रही हैं- शुभ्रता-धारक मकर संक्रांति का सूरज/ पुण्य का कारक मकर संक्रांति का सूरज/ उत्तरायण की महत्ता, गुण को बतलाता/ तेज-संचारक मकर संक्रांति का सूरज।
मकर संक्रांति के सूर्य अर्थात् उत्तरायण के सूर्य की महिमा को समझने के लिए भीष्म पितामह का एक दृष्टांत पर्याप्त है। धनुर्धर अर्जुन ने अपने तीक्ष्ण बाणों से भीष्म पितामह के लिए जब शर-शैया बनाई थी, तब सूर्य दक्षिणायन थे। भीष्म पितामह उत्तरायण के सूर्य में देह त्यागना चाहते थे, ताकि पुण्य की प्राप्ति हो। इसीलिए शर-शैया पर लेटे हुए वह उत्तरायण के सूर्य यानी मकर संक्रांति के सूर्य की प्रतीक्षा करते रहे।
मकर संक्रांति को दान-पर्व भी कहा जाता है। यदि पुराणों से आगे निकलकर इतिहास के पृष्ठों को पलटें, तो सम्राट हर्षवर्धन से हमारा साक्षात्कार होता है। मकर संक्रांति और महाकुंभ के अवसर पर उनकी दानशीलता प्रसिद्ध थी। हमें भी अपने जीवन में स्नान, दान और ध्यान के व्यावहारिक महत्व को समझने की जरूरत है। स्नान का अर्थ अंदर और बाहर की स्वच्छता से है, तो दान का महत्व समाज में समानता और सद्भाव से है। ध्यान का अर्थ अच्छे चिंतन, सत्संग, अध्ययन, स्वाध्याय और मुक्ति से है। आज जरूरतमंदों को दान देने की बड़ी महिमा है। चाणक्य नीति दर्पण में यह कहा गया है कि हाथों की शोभा सोने के कंगन से नहीं होती, अपितु दान करने से होती है।
सूर्य की शक्ति से भरपूर संपन्न भारत में मकर संक्रांति का पर्व राज्यों में अलग-अलग नाम से मनाया जाता है। दक्षिण में पोंगल, पंजाब में लोहड़ी, असम में माघ बीहू खास प्रसिद्ध हैं। यह नए अन्न, तिल, तेल, चावल के व्यंजनों का भी महोत्सव है। इस दिन अपने देश में पतंगबाजी की मनोरम छटा से भी हमारा सामना होता है।
मकर संक्रांति दरअसल मौसम के माथे पर परिवर्तन की पगड़ी है। मकर संक्रांति से ही बसंत ऋतु के आगमन की आहट सुनाई देने लगती है, सूरज की धूप किरणों के क्रोशिए से ऊर्जा के कशीदे काढ़ने लगती है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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