Hindi Newsओपिनियन नजरियाHindustan nazariya column 08 January 2025

भूकंप का घातक प्रहार झेलने के लिए हम कितने तैयार

  • मंगलवार सुबह चीन में आए भूकंप की वजह से 60 से ज्यादा लोगों की मौत बहुत दुखद है और इससे भूकंप के मामलों में हमारी लाचारी का भी पता चलता है। यह भूकंप एक बार फिर संवेदनशील माने जाने वाले देशों के लिए चेतावनी है…

Hindustan लाइव हिन्दुस्तानTue, 7 Jan 2025 10:48 PM
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अतींद्र कुमार शुक्ला, भूकंप विज्ञानी

मंगलवार सुबह चीन में आए भूकंप की वजह से 60 से ज्यादा लोगों की मौत बहुत दुखद है और इससे भूकंप के मामलों में हमारी लाचारी का भी पता चलता है। यह भूकंप एक बार फिर संवेदनशील माने जाने वाले देशों के लिए चेतावनी है। भूकंप के जोखिम और उससे जुड़े तमाम इंतजामों को फिर परख लेना समय की मांग है।

यह बात हम ठीक से जानते हैं कि भारतीय भूभाग का 59 प्रतिशत हिस्सा भूकंप की दृष्टि से ज्यादा संवेदनशील है। भूगर्भीय प्लेट की वजह से ही भूकंप आते हैं और हिमालय खास तौर पर संवेदनशील है। साल 1975 से अब तक अगर देखें, तो छह मैग्नीट्यूड या उससे ऊपर के आठ भूकंप आ चुके हैं। इनमें से कच्छ का भूकंप 6.9 मैग्नीट्यूड का था। पांच दशक के समय में ही आठ बड़े भूकंपों ने लोगों की चिंता बढ़ा रखी है।

कुछ चिंताएं हैं, क्या भूकंप सुबह के समय ज्यादा आते हैं? क्या ठंड के दिनों में ज्यादा आते हैं? वैसे भूकंप का कोई तय समय या मौसम नहीं है, फिर भी यह ध्यान आता है कि भुज का भूकंप 26 जनवरी, 2001 को आया था, तो बिहार-नेपाल में 1934 का खतरनाक भूकंप 15 जनवरी को आया था। वैसे, सावधान रहना चाहिए कि भूकंप कभी भी आ सकता है। बड़ा सवाल यह है कि नुकसान कितना होगा? नुकसान से जुड़ा एक अध्ययन साल 2013 में ही बिहार में किया गया था। यह जानने की कोशिश की गई थी कि साल 1934 में बिहार-नेपाल में 8.4 मैग्नीट्यूड का भूकंप आया था, वैसा ही भूकंप अगर फिर आए, तो क्या होगा? अध्ययन में देखा गया था कि अगर रात के समय भूकंप आता है, तो कितना नुकसान होगा और दिन में आया भूकंप कितना घातक होगा? दस करोड़ से ज्यादा की आबादी वाले बिहार में अगर रात के समय भूकंप आता है, तो दो लाख 22 हजार से ज्यादा मौत का अनुमान है। यही अगर दिन में आए, तो 72 हजार से ज्यादा मौतें हो सकती हैं।

अब सवाल है कि हम बचाव के लिए क्या करें? वास्तव में, आज अपने घरों और भवनों को भूकंप सहने लायक बनाने की जरूरत सबसे बड़ी है। पर्याप्त वैज्ञानिक अध्ययन हुए हैं, भूकंपरोधी निर्माण के मापदंड बने हैं, पर क्या उनकी पालना हो रही है? यह केवल सरकारों को ही नहीं, बल्कि आम लोगों को भी सोचना चाहिए। एक बड़ा सवाल यह भी है कि क्या हम समय पूर्व चेतावनी का कोई तंत्र बना सकते हैं? भूकंप से जो ऊर्जा पैदा होती है, वह विभिन्न लहरों या वेव के माध्यम से विभिन्न जगह पहुंचती है। मुख्य लहर को हम प्राथमिक या प्राइमरी लहर और द्वितीय या सेकेंडरी लहर के नाम से जानते हैं। इन लहरों के समय में अंतर होता है। इस अंतर को ध्यान में रखकर हम चेतावनी जारी कर सकते हैं।

जब कोई भूकंप होता है, तो प्राइमरी लहर बहुत जल्दी आती है, उसकी गति ज्यादा होती है, जबकि सेकेंडरी लहर कुछ देर से आती है, इसकी गति कुछ धीमी होती है। प्राइमरी लहर जब आती है, तब एक धक्का सा महसूस होता हैै। सेकेंडरी लहर से भूमि में कंपन होता है, वह ऊपर-नीचे होने लगती हैै। अगर घर या भवन मजबूती से न खड़े हों, तो सेकेंडरी लहर में गिर जाते हैं। अगर भूकंप की पहली लहर के आते ही अगर लोगों को सूचित कर दिया जाए, तो जान-माल के नुकसान से बचा जा सकता है। यहां यह महत्वपूर्ण है कि आप भूकंप के केंद्र से कितनी दूर हैं, उसी हिसाब से आप तक चेतावनी को पहुंचाया जा सकता है। आप भूकंप के केंद्र से दूर हैं, तो फिर प्राइमरी वेव के बाद आपके पास कुछ सेकंड या मिनट भर का समय रहता है, जब आप बचाव कर सकते हैं।

प्राइमरी वेव के बाद मेट्रो परिचालन को तत्काल रोका जा सकता है। अन्य जोखिम भरी सेवाओं को रोका जा सकता है। ऐसे चेतावनी तंत्र का इस्तेमाल मैक्सिको, कैलिफोर्निया इत्यादि में किया जाता है। चेतावनी मिलते ही लोग तत्काल घर-भवन से बाहर आ जाते हैं। भारत में भी ऐसा चेतावनी तंत्र बनाने का समय आ गया है। जैसे हिमालय में भूकंप आए, तो बिहार में कम से कम तीस-चालीस सेकंड का समय बचाव के लिए मिल सकता है।

मिसाल के लिए, चीन में अभी जो भूकंप आया है, उसे बिहार में ज्यादा महसूस किया गया। अगर चीन अपने यहां चेतावनी तंत्र को पुख्ता करे और तत्काल भारत को सचेत कर दे, तो हमें बचाव में मदद मिल सकती है।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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